मार्क्‍स के बहाने: मेरी गेब्रियल की पुस्‍तक ”प्रेम और पूंजी”

कार्ल मार्क्‍स के निजी जीवन प्रसंगों पर विश्‍वदीपक की टिप्‍पणी और रामजी यादव व विष्‍णु शर्मा की प्रतिक्रियाओं के संदर्भ में एक पुस्‍तक का जि़क्र ज़रूरी जान पड़ता है जिसे …

Read More

‘दाग अच्‍छे हैं’, बशर्ते मानवता के हित में हों!

मार्क्‍स पर लिखे विश्‍वदीपक के लेख और रामजी यादव द्वारा उस पर उठाए गए सवालों की कड़ी में पत्रकार विष्‍णु शर्मा ने मूल लेख की मंशा को ऐतिहासिक बदलावों के …

Read More

पूंजीवाद विरोधी संघर्ष में निजी प्रसंगों की अहमियत कैसे है?

रामजी यादव  कार्ल मार्क्‍स पर लिखे विश्‍वदीपक के लेख पर अपेक्षित प्रतिक्रियाएं आई हैं। लेखिका अनिता भारती को छोड़कर शेष सभी प्रतिक्रियाएं इस लेख को ‘संदर्भहीन’ और ‘कीचड़-उछालू’ बता रही हैं। …

Read More

मार्क्‍स के बहाने: एक थी हेलन और एक था फ्रेडी

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, खासकर 2008 में आई वैश्विक मंदी के बाद से कार्ल मार्क्‍स को खूब याद किया गया है। जिसकी जैसी चिंताएं, उसके वैसे आवाहन। एक बात …

Read More

मराठवाड़ा यात्रा: आखिरी किस्‍त

(गतांक से आगे) पैसा बोलता है नागरगोजे का संकट दरअसल पैसे में छुपा है। विकल्प और विकल्प की राजनीति की राह में यहां धनबल और वोट की जातिवादी व सांप्रदायिक …

Read More

मराठवाड़ा यात्रा: चौथी किस्‍त

(गतांक से आगे)  सूखे की जड़ें कल की उपेक्षा करने और वर्तमान में जीने का संकट अकेले दुष्काल का संकट नहीं है। यह संकट समूचे देश-काल का केंद्रीय संकट है। …

Read More

मराठवाड़ा यात्रा: तीसरी किस्‍त

(गतांक से आगे)  ऐसे टूटते हैं बंध आज 14 अप्रैल है: बाबासाहेब आंबेडकर के बैनरों-पोस्‍टरों की कोई कमी नहीं है  नेता और जनता के सपनों में बहुत फर्क नहीं होता, …

Read More

मराठवाड़ा यात्रा: दूसरी किस्‍त

(गतांक से आगे)  कब्र पर सपने अट़ठाईस साल के बाबासाहेब जिगे का बाकी इतिहास भी इतना ही रहस्यमय है। शुरुआती दिनों में अपने चाचा से प्रभावित होकर वे 2007 से …

Read More