बाबा की मेज़ पर मोदी की शील्‍ड? (ये मामला इंडिविजुअल है, मीटिंग बुला लेते हैं)


श्री शिवमंगल सिद्धांतकर ”बाबा”

मंगलेश डबराल के राकेश सिन्‍हा के साथ मंच साझा करने का विवाद अभी थमा भी नहीं था (आज ही जनसत्‍ता में मंगलेश जी की लंबी टिप्‍पणी भी छपी है) कि प्रगतिशील बिरादरी के एक वयोवृद्ध बुद्धिजीवी से जुड़ा एक विवाद पैदा हो गया है। दिल्‍ली से लेकर झारखंड तक इस तस्‍वीर को लोग ”बाबा” के नाम से जानते हैं- बाबा यानी श्री शिवमंगल सिद्धांतकर, सीपीआई-एमएल (न्‍यू प्रोलितारियन) के कर्ता-धर्ता, नव-सर्वहारा के हिंदुस्‍तानी सिद्धांतकार और साहित्‍य के क्षेत्र में अपनी स्‍वर्गीया पत्‍नी के नाम से शीला सिद्धांतकर पुरस्‍कार देने वाले राग-विराग संस्‍था के जनक।

बीते 6 मई को गुजरात के सूरत में एक आयोजन हुआ। बिहार के शताब्‍दी वर्ष समारोहों की श्रृंखला में हुए इस आयोजन के मुख्‍य अतिथि थे एसआईटी के मुताबिक गुजरात-2002 नरसंहार में कोई भूमिका नहीं निभाने वाले मुख्‍यमंत्री नरेंद्रभाई मोदी। आयोजक संस्‍था का नाम है समस्‍त बिहार झारखंड समाज ट्रस्‍ट, सूरत जिसके मुखिया हैं श्री अजय चौधरी। इस समारोह में बिहार की 26 ”विभूतियों” को सम्‍मानित किया गया। पूरी खबर आप यहां देख सकते हैं (http://www.jagran.com/bihar/patna-city-9219899.html)

नृत्‍य प्रदर्शन करतीं पुनीता शर्मा और पीछे बैठे नरेंद्र मोदी

सम्‍मानितों में एक नाम है कथक नृत्‍यांगना पुनीता शर्मा का। पुनीता शर्मा बाबा सिद्धांतकर की भतीजी हैं, दिल्‍ली में उन्‍हीं के साथ रहती हैं और उसी राग-विराग संस्‍था  को चलाती हैं जिसने अब तक सात लेखक-लेखिकाओं को शीला सिद्धांतकर स्‍मृति सम्‍मान से नवाज़ा है। इस बार यह सम्‍मान युवा कवियत्री रजनी अनुरागी को मिला था (http://www.bhaskar.com/article/DEL-rajni-fan-honor-the-memory-of-sheila-siddhantkr-3052676.html)
इससे पहले नीलेश रघुवंशी, पवन करण, निर्मला पुतुल, मंजरी दुबे, अनीता वर्मा, पंजाबी कवि नीतू अरोड़ा को यह सम्‍मान मिल चुका है।

नरेंद्र मोदी के हाथों पुनीता शर्मा के सम्‍मानित होने की खबर आने के बाद दिल्‍ली में रहने वाले तीन लेखकों ने बाबा की संस्‍था से अपना रिश्‍ता तोड़ने की खबर भेजी है- रंजीत वर्मा, जो बाबा की पत्रिका ”देशज समकालीन” का संपादन कर रहे थे, मदन कश्‍यप, जो शीला सिद्धांतकर सम्‍मान कमेटी में थे और रामजी यादव, जो नव-सर्वहारा सांस्‍कृतिक मंच से जुड़े हुए थे।

प्रशस्ति पत्र: जनता ने दिया है, मोदी तो गेस्‍ट थे

इस घटना के बारे में बाबा का कहना है, ”समस्‍त बिहार झारखंड समाज ट्रस्‍ट ने, ज्‍यूरी जो भी रहा हो, पुनीता शर्मा, प्रकाश झा, मनोज तिवारी और ऐसे चालीस-पचास लोगों को सम्‍मानित करने का फैसला लिया था…अब इन लोगों ने सम्‍मानित करने का फैसला लिया, लेकिन पुरस्‍कार किसके हाथ से दिया जा रहा है, ये तो जानकारी थी नहीं। तो ये कन्‍फ्यूज़न है।” बाबा ने कहा, ”…और हमने, चाहे पुनीता ने नरेंद्र मोदी को सम्‍मानित तो किया नहीं है, उस समाज ने पुनीता शर्मा को सम्‍मानित किया। इस पर हम लोग बैठ कर फैसला ले सकते हैं। कोई छिपा हुआ थोड़े है, सामने है सारा कुछ। अब ये सोच लेना होगा कि कोई समाज अगर सम्‍मानित करता है तो सम्‍मान लिया जाए या नहीं।”

आयोजक संस्‍था के बारे में बाबा बोले, ”वो इंडिपेंडेंट है… जैसे गेस्‍ट नहीं बुलाते हैं, अगर बिहार में उन्‍होंने किया होता तो नीतिश को बुलाते, तो उस प्रदेश में उन्‍होंने किया…वहां गुजराती लोगों का डॉमिनेंस है… तो उन्‍होंने नरेंद्र मोदी को बुलाया पुरस्‍कार देने के लिए… तो ये सारी चीज़ें पहले से पता थीं नहीं। ये तो उनका अधिकार है न कि किसे बुलाएं।”

आयोजक संस्‍था के अध्‍यक्ष अजय चौधरी ने बातचीत में बताया कि भले ही उनकी संस्‍था गुजरात में रहने वाले बिहारियों-झारखंडियों के बीच काम करती हो, लेकिन बिहार शताब्‍दी समारोह का आयोजन गुजरात सरकार के साथ मिल कर किया गया था। इसके अलावा 6 मई की सुबह दैनिक जागरण में पहले ही खबर (http://www.jagran.com/bihar/patna-city-9219899.html) छप गई थी कि नरेंद्र मोदी कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करेंगे, वैसे भी मुख्‍यमंत्री का कार्यक्रम पहले से तय होता है। इस बारे में जब बाबा से पूछा गया, तो उन्‍होंने कहा, ”हां, तो उन सारी चीज़ों की जानकारी मुझे तो नहीं थी न… और राग-विराग को तो सम्‍मानित किया नहीं जा रहा था, सम्‍मानित तो किया जा रहा था पुनीता शर्मा इंडिविजुअल को, प्रकाश झा इंडिविजुअल को, मनोज तिवारी इंडिविजुअल को… और कोई ज्‍यूरी होगी जिसने नाम सुझाया होगा… गलतियां किसी से भी हो सकती हैं, उस पर बात होनी चाहिए।”

…लेकिन शील्‍ड पर नरेंद्रभाई मोदी लिखा है

बहरहाल, इस मसले पर बैठक की तारीख तय करने का काम बाबा सिद्धांतकर के मुताबिक रंजीत वर्मा को उन्‍होंने दिया है, हालांकि नाराज़ लेखकों का कहना है कि बैठक से क्‍या होगा, घटना पर सीधे कार्रवाई होनी चाहिए। बाबा बैठक पर इसलिए भी ज़ोर दे रहे हैं क्‍योंकि उनके मुताबिक इस नाराज़गी और अनावश्‍यक के विवाद के पीछे असल मामला कुछ और है। उन्‍होंने पिछले माह आयोजित शीला सिद्धांतकर पुरस्‍कार समारोह में मदन कश्‍यप द्वारा प्रशस्ति पत्र पढ़ने से इनकार किए जाने की अप्रत्‍याशित घटना की ओर इशारा ज़रूर किया, लेकिन बोले कि इसकी जड़ में जो बातें हैं, वे बैठक में ही खुलें तो बेहतर है।

बाबा ने कहा, ”मन ही मन में कुढ़ते रहने से कुछ थोड़े होगा, बैठ कर बात करें।”

पुनीता शर्मा ने फोन पर बातचीत में बगैर किसी हिचक के स्‍वीकार किया कि नरेंद्र मोदी ने उन्‍हें सम्‍मानित किया है। बाबा ने भी बेहिचक माना कि नरेंद्रभाई मोदी का नाम लिखी हुई शील्‍ड तो उनकी मेज़ पर ही रखी है, अगर वे छुपाना चाहते तो ऐसा क्‍यों करते।

बहरहाल, राजधानी के साहित्यिक गिरोहों पर निजी आरोप-प्रत्‍यारोप का जैसा माहौल आजकल तारी है, उसमें अचानक इस ताज़ा विवाद के भी निजी प्रसंग खोज निकाले गए हैं। पुनीता शर्मा के एक पुराने जानकार और कभी बाबा के करीबी रहे एक लेखक ने ग्रेटर नोएडा में बाबा के करोड़ों के एक फ्लैट, अकूत संपत्ति और रायपुर में पुनीता के लाखों के प्‍लॉट पर भी सवाल उठाया। उनके मुताबिक पुरस्‍कार के लिए पुनीता शर्मा के नाम की सिफारिश बिहार के संस्‍कृति मंत्रालय में सचिव एक अधिकारी ने की थी। जनपथ ने जब पुनीता से बात की, तो वे रायपुर में ही थीं।

बाबा के निजी फंड से चलने वाली संस्‍था राग-विराग से पुनीता शर्मा को अलग किए जाने के अलावा यह मांग भी अब ज़ोर पकड़ रही है कि जिन सात लेखकों को शीला सिद्धांतकर सम्‍मान मिल चुका है, वे भी अपना पक्ष रखें।

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