उदय प्रकाश और आनंद स्‍वरूप वर्मा की टिप्‍पणी: संदर्भ अरविन्‍द गौड़


(”समकालीन रंगमंच” पत्रिका के हंगामाखेज़ लोकार्पण के बाद इसके संपादक राजेश चंद्र के दो पत्रों (एक एनएसडी निदेशक के नाम और दूसरा मित्रों के, दोनों जनपथ पर शाया) से शुरू  हुई बहस के क्रम में दो अहम प्रतिक्रियाएं आई हैं। नेपाल विशेषज्ञ वरिष्‍ठ पत्रकार आनंद स्‍वरूप वर्मा ने एक पत्र जनपथ के मॉडरेटर के नाम भेजा है और हिंदी के इकलौते ग्‍लोबल लेखक उदय प्रकाश ने राजेश चंद्र के पोस्‍ट पर सीधे टिप्‍पणी की है। ये दोनों प्रतिक्रियाएं बहस को पर्सपेक्टिव में लाने के लिहाज से अहम हैं क्‍योंकि राजेश चंद्र ने पिछले पत्र में अरविन्‍द गौड़ के हवाले से जिन तीन व्‍यक्तियों का नाम लिया है, उनमें आनंद स्‍वरूप वर्मा जी और उदय प्रकाश जी भी हैं। ये दोनों प्रतिक्रियाएं एक के बाद एक नीचे प्रकाशित की जा रही हैं- मॉडरेटर) 


आनंद स्‍वरूप वर्मा जी की प्रतिक्रिया 

अभिषेक जी,
आनंद स्‍वरूप वर्मा 
साथी राजेश चंद्र का पत्र देखा जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की है। मुझे लगता है कि लोकार्पण के दिन जो कुछ हुआ उसे लेकर वह जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं। उनका यह सोचना बिल्कुल गलत है कि उस दिन की घटना से गहरे रंगमंचीय विमर्श की असीम संभावनाओं के साथ सामने आयीपत्रिका के भविष्य पर कुठाराघात हुआ।जब भी कोई ऐसा कार्यक्रम होगा जिसमें एकदम विपरीत धाराओं के लोग एक मंच पर होंगे और उन्हें बोलने का अवसर मिलेगा तो इस तरह की घटनाएं स्वाभाविक हैं। यह कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि जिस पत्रिका का लोर्कापण हो रहा है, उसमें छपी सामग्री पर ही बातचीत होगी और विषय से संबंधित अन्य मुद्दों पर किसी विमर्श की गुंजाइश नहीं रहेगी। इसके अलावा दो विरोधी विचारों के लोगों के मन में एक-दूसरे के काम के प्रति पूर्वाग्रह होते ही हैं और उनकी अभिव्यक्ति अगर किसी रूप में होती है तो यह अस्वाभाविक नहीं है। यह कहना कि वक्ताओं को केवल पत्रिका तक अपने को केन्द्रित रखना चाहिए था अनुचित और असंभाव्य है। बेशक, अभिव्यक्ति के तरीके पर बातचीत हो सकती है और होनी भी चाहिए। संजय उपाध्याय ने शालीन ढंग से और अरविंद गौड़ ने उग्र ढंग से एक-दूसरे पर प्रहार किया था, इस पर भी आपने ध्यान दिया होगा। दोनों का कांटेंट एक जैसा था, अभिव्यक्ति के तरीके भिन्न थे। व्यक्तिगत तौर पर मैं मानता हूं कि अरविंद गौड़ अगर अपनी बात को थोड़ा शांत ओर सहज ढंग से रखते तो ज्यादा अच्छा होता। लेकिन हर व्यक्ति की अपनी शैली होती है और उस पर किसी दूसरे की शैली नहीं थोपी जा सकती।
राजेश चंद्र ने अपने पत्र में लिखा है कि मैंने बकौल अरविंद गौड़ उनके वक्तव्य और बर्ताव को बिल्कुल जायज़ ठहराया हैऔर उनसे कहा है कि इसके लिए अफसोस ज़ाहिर करने की ज़रूरत नहीं है। लोकार्पण वाली घटना के तीसरे दिन अरविंद गौड़ का मेरे पास फोन आया था और उनसे लंबी बातचीत हुई। किसी वेबसाइट पर उनके खिलाफ जो कुछ आया था उस पर ही वे बात कर रहे थे और उसे लेकर वे बेहद आहत और गुस्से में थे। मैंने उक्त वेब साइट को तब तक नहीं देखा था। उन्होंने बताया कि उक्त वेबसाइट में उनके चरित्र पर कीचड़ उछाला गया है और यह भी बताया कि किस तरह की अनर्गल बातें कहीं गयी हैं (यहां मीडियाखबर और भड़ास4मीडिया पर छपी खबरों का जि़क्र है- मॉडरेटर)। मेरी बातचीत जितनी देर भी हुई, केवल वेबसाइट की सामग्री पर केन्द्रित रही और मैंने उन्हें सलाह दी कि इससे वे उत्तेजित न हों। लोकार्पण वाली घटना के बारे में या उस दिन के उनके व्यवहार के बारे में न तो चर्चा हुई और न मैंने अपनी कोई राय दी। वेबसाइट में जो कुछ छपा था और जिसकी मुझे जानकारी दी गयी उसके आधार पर मैंने निश्चित तौर पर अरविंद गौड़ का समर्थन किया था।
अरविंद गौड़ को मैं पिछले तकरीबन 25 वर्षों से जानता हूं और उनकी पत्रकारिता (पहले वह इस पेशे से जुड़े थे) और रंगकर्म से अच्छी तरह परिचित हूं। अतीत में कई मोर्चों पर हम लोगों ने साथ-साथ काम किया है और मैं उन्हें एक संघर्षशील, जनपक्षीय और ईमानदार व्यक्ति मानता हूं। उनके कुछ नाटक भी मैंने देखे हैं और मैं उन नाटकों से काफी प्रभावित हुआ हूं। मैंने उनकी मुफलिसी के दिन भी देखे हैं जब उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि नाटकों के रिहर्सल के लिए वह जगह ले सकें और इधर-उधर भटकते रहते थे। इन सबके बावजूद उन्होंने अपना रंगकर्म जारी रखा और अपने ग्रुप को एक सम्मानित स्थान दिलाया। व्यस्तताएं बढ़ने के साथ-साथ हम दोनों का मिलना उस तरह नहीं रहा जैसा 10-15 वर्ष पहले होता था इसलिए मुझे यह नहीं पता कि आज वह अपने थियेटर को कैसे चला रहे हैं लेकिन उनके नाटकों को मैंने अभी हाल तक देखा है। जो लोग इस तरह काम करते हैं उनके स्वभाव और व्यवहार में एक तल्खी आ जाती है क्योंकि उन्हें लगता है कि यह सिस्टम नकली लोगों को हर तरह की सुविधाएं पहुंचा रहा है और उन जैसे लोग निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। चूंकि यह संघर्ष करने वाले व्यक्ति का खुद का च्वायस होता है इसलिए उसके अंदर पैदा इस तल्खी को मैं सही नहीं मानता। यह सारा कुछ कहने के बाद मैं यह कहना चाहूंगा कि लोकार्पण के अवसर पर अगर अरविंद गौड़ ने अपनी तल्खी को व्यक्त करने में थोड़ा संयम से काम लिया होता तो ज्यादा अच्छा होता। उन्होंने अगर ऐसा नहीं किया तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ा जिसे लेकर आप सब लोग इतने उत्तेजित हैं। साथ ही राजेश चंद्र एक जनपक्षीय रंगकर्मी हैं और उनका यह संकल्प लेना कि अब अरविंद गौड़ के साथ व्यक्तिगत या सार्वजनिक जीवन में किसी भी किस्म का कोई संबंध नहीं रखेंगे’, मेरे लिए दुखद खबर है। समान सोच के लोगों के बीच में एकता होनी चाहिए लेकिन यहां बिल्कुल विपरीत स्थिति दिखायी दे रही है। अरविंद जी से भी मैं कहूंगा कि अगर केवल उनके खेद व्यक्त करने से राजेश जी को संतोष होता है तो वह अपने को सही बताने की ही जिद पर क्यों अड़े हैं।
मैं एक बार फिर यही चाहूंगा कि इस विवाद को यहीं समाप्त किया जाए और दोनों मित्र ठंडे दिमाग से एक दूसरे को समझने की कोशिश करें।
आनंद स्वरूप वर्मा

उदय प्रकाश जी की प्रतिक्रिया 

उदय प्रकाश 
मैं जहाँ एक तरफ पाकिस्तान के नाटक और कलाकारों के साथ अपमानजनक बर्ताव के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का विरोध करता हूँ वही दूसरी तरफ दोहरे आचरण और जीवन मूल्यों की वकालत करने वाले तथा नैतिकता को राजनीति के बरक्स कोरी भावुकता से अधिक नहीं मानने वाले श्री अरविन्द गौड़ जी का भी विरोधी हो गया हूँ। आज के बाद मेरा उनसे व्यक्तिगत या सार्वजनिक जीवन में किसी भी किस्म का कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा।यह कहना है आपका तो क्या आप यही उद्घोषणा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए भी कर सकते हैं? इसी से यह भी स्पष्ट होगा कि रंगकर्म के प्रति आपके समर्पण और निष्ठा में कितनी गहराई और सच्चाई है।
(यह टिप्‍पणी राजेश चंद्र के दूसरे पत्र पर थी- मॉडरेटर)  
यह घटना जैसी भी रही हो, (मैंने भरसक पूरा प्रसंग देखा) …मैं अरविंद गौड़ के पक्ष में हूँ। शायद 1986-87 से उन्हें जानता हूँ, निकट से। पीटीआई में वे मेरे सहयोगी भी थे। उनके संघर्षों और उपलब्धियों को मैं ही नहीं, हर वह रंगकर्मी जानता है, जो सरकारी संस्थानों पर नहीं, अपनी मेहनत , प्रतिभा, लगन और जागरूकता की वजह से अपनी जगह बनाता है। वे रंगमंच के बाबा नागार्जुन हैं और मेरे साथी हैं। भले ही उनके इंडिया अगेंस्ट करप्शनआन्दोलन में अन्ना हजारे या अरविन्द केजरीवाल की टीम में उनके सम्मिलित होने से मेरा इत्तिफ़ाक न हो। अरविन्द का रंगकर्म एनएसडी के बिना है।

(यह टिप्‍पणी राजेश चंद्र के पहले पत्र पर थी- मॉडरेटर) 


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