आशंका के अनुरूप आज भी सरकार और किसानों के बीच की बातचीत नाकाम रही और 15 जनवरी की अगली तारीख दे दी गयी। उससे पहले कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर सभी याचिकाओं पर 11 जनवरी को सुनवाई होनी है और सरकार अदालत के भरोसे है, जिसने हाल ही में किसानों के आंदोलन की तुलना तबलीगी जमात से करते हुए कोरोना के प्रसार पर सुरक्षात्मक उपायों के बारे में अपनी जिज्ञासा जाहिर की थी।
आज की बैठक से एक किसान नेता की ये तस्वीर खूब वायरल हो रही है जो कहती है- मरेंगे या जीतेंगे। इसका आशय ये है कि किसानों को कानून वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं, जो पहले दिन से उनकी मांग रही है। बिलकुल यही बात बैठक के बाद राकेश टिकैत से लेकर तमाम नेताओं ने दुहरायी है और किसान नेता डॉ. दर्शन पाल भी साफ़ कह चुके हैं कि उनकी मांग नॉन-नेगोशिएबल हैं यानी इन पर कोई समझौता संभव नहीं। इस तरह पहले ही दिन से सरकार के साथ बातचीत के लिए बीच की ज़मीन गायब रही है, जिसे सभी वार्ताओं के बेनतीजा रहने के रूप में हमने देखा।
दिक्कत ये है कि अगली गेंद अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और एक विवादास्पद बयान इस संदर्भ में आज शाम ट्विटर पर वायरल हुआ है। वार्ता खत्म होने के तुरंत बाद डॉ. दर्शन पाल का एक बयान बहुत तेज़ी से सोशल मीडिया पर घूमा है जिसमें वे कह रहे हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट उन्हें आंदोलन खत्म करने को कहे तब भी वे बैठे रहेंगे। बयान का मूल स्रोत पता नहीं चल सका है लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स के एक रिपोर्टर ने इसे बिना कोई स्रोत दिये ट्वीट किया है।
वार्ता समाप्त होने के तुरंत बाद किसान नेता डॉ. सुनीलम ने जनपथ से फोन पर बातचीत में कहा कि इस वार्ता को भी सरकार ने ही विफल किया है, किसानों ने नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।
अगर दर्शन पाल का बयान सही है तो डॉ. सुनीलम के बयान का वह विरोधाभासी है। चूंकि अब तक संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से कोई आधिकारिक बयान आज की वार्ता की विफलता के बाद अगली रणनीति के सम्बंध में नहीं आया है इसलिए कोई भी नतीजा निकालना जल्दबाजी होगी।
वार्ता समाप्त होने के बाद किसान सभा के नेता हन्नान मोल्ला ने कहा:
सरकार ने हमें कहा कि कोर्ट में चलो. हम ये नहीं कह रहे कि ये नए कृषि क़ानून गैर-क़ानूनी है। हम इसके खिलाफ हैं। इन्हें सरकार वापिस ले, हम कोर्ट में नहीं जाएंगे। हम अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।
आज की बैठक में क्या हुआ है, इस बारे में किसान एकता मोर्चा के पेज से नेताओं का एक विस्तृत वीडियो प्रसारित किया गया है जिसे नीचे देखा जा सकता है।
सरकार 26 जनवरी को होने वाली किसानों की समानांतर परेड को लेकर चिंतित है। किसान अपने कार्यक्रम पर अड़े हुए हैं। मरेंगे या जीतेंगे का नारा अपनी जगह ठीक है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश ऐसे में अगर 11 जनवरी को सरकार के लिए राहत बनकर आता भी है, तो सवाल उठता है कि किसान नेता उस पर क्या कदम उठाएंगे। अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।