इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गैरकानूनी धर्मांतरण अध्यादेश पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। ‘लव जिहाद’ के नाम पर धर्मांतरण को रोकने सम्बंधी बीते नवंबर में राज्यपाल द्वारा मंजूर अध्यादेश को चुनौती देती कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह नोटिस जारी किया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने नोटिस जारी कर के सरकार से इस मामले में 4 जनवरी तक एक काउंटर एफिडेविट दाखिल करने को कहा है और सुनवाई की तारीख 7 जनवरी रखी है। इस बीच याचिकाकर्ताओं को 6 जनवरी तक रिजॉन्डर देने का वक्त दिया गया है।
बेंच ने स्टे आर्डर जैसी कोई राहत देने से इनकार कर दिया है।
सभी याचिकाकर्ताओं की समान दलील है कि यह अध्यादेश चयन और धार्मिक आस्था की आज़ादी के मूलभूत अधिकार का हनन करता है।
इस साल नवंबर में यूपी सरकार द्वारा ‘लव जिहाद’ के नाम पर धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए पारित विवादास्पद अध्यादेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इससे पहले अधिवक्ता सौरभ कुमार ने भी एक याचिका दायर की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
दो रिट याचिकाओं में से एक को अजीत सिंह यादव ने, एडवोकेट केके रॉय और रमेश कुमार के माध्यम से दायर किया है, जबकि दूसरी याचिका रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी आनंद मालवीय ने एडवोकेट तल्हा अब्दुल रहमान के माध्यम से दायर किया है। याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया है कि राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत अपनी कानून बनाने की शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कोई आकस्मिक आधार नहीं था।