अश्वत्थामा
‘हू इज़ प्रोड्यूसर ऑफ़ 8 पीएम शो?’ जी…जी मैं. ‘यू’… ‘दिस इज़ बिगेस्ट शो प्लैन्ड टुडे, शो मी व्हॉट हैव यू डन?’
घड़ी पौने 8 बजा रही थी, और आंखों में खून का कतरा लिए नए बॉस न्यूज़रूम में दाखिल थे.
‘ये क्या कूड़ा लिखा है? रबिश… तुम्हारी डिक्शनरी में बस इतने शब्द हैं, तुम्हें प्रोग्राम किसने दे दिया?’
वो मन ही मन बुदबुदाया— स्क्रिप्टिंग में अगर 2 गुणा 2 चार ही होते, तो बताता क्या लिखा है?
वो कुछ और सोचता, उससे पहले बॉस ने अगला सवाल दागा— ‘गेस्ट लिस्ट कहां है?’
‘सर, नोएडा से मसूद-उल-हसन काज़मी, इमाम काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन…’
‘ओके…’
‘सर, दिल्ली से शिबानी कश्यप, फर्स्ट वुमैन गिटारिस्ट ऑफ़ इंडिया।’
‘हू डज़न्ट नो हर प्रोफाइल?’, घूरती आंखों से बॉस ने कहा. ‘और कौन?’
‘सर, मुंबई से सोना महापात्रा…’
‘हूं..’ बॉस ने कुछ सोचने के अंदाज़ में सिर झुकाया. मिनट भर बाद खामोशी टूटी तो अगला सवाल था कि, ‘कौन है ये सोना महापात्रा?’
‘सर, सिंगर…’
‘कौन सा गाना गाया है?’ अगले ही पल बिना जवाब का इंतज़ार किए हुए बॉस फिर बोले- ‘तुमने तो नाम ही पहली बार सुना होगा…’
बस बॉस ने मैदान मार लिया था. बॉस अगर उस वक़्त पूछ लेते कि लता मंगेशकर कौन है, और उन्होंने कौन से गाने गाए हैं, तो वो उसका भी जवाब नहीं दे पाता. न्यूज़रूम की दमकती रोशनी में, बॉस की बिलौटे सी चमकती आंखों को देखकर उसे रतौंधी सी हो रही थी.
‘ये देखो, प्रोड्यूसर हैं, और इन्हें प्रोग्राम के गेस्ट्स के बारे में पता ही नहीं’, बॉस चीखे, लेकिन पता नहीं क्यों चीख में कुछ हंसी मिली हुई थी. न्यूज़रूम में मानो हवा से बातें करते हुए बॉस अबकी बार बोल पड़े, ‘ये शॉट-बाइट कटाने लायक है, और शॉट-बाइट कटाने के लिए हमको प्रोड्यूसर नहीं चाहिए. अब आगे से इसे किसी ने काम दिया, तो इसकी नौकरी तो जानी ही है, उसकी नौकरी भी जाएगी. ’
‘दिस शो मस्ट बी फेयरवेल ऑफ़ हिम.’
बॉस 10 साल के करियर पर माटी पोत कर जा चुके थे. वो माथे पर हाथ रखकर सोच रहा था-बीवी-बच्चे का पेट कैसे पालेगा, मकान की ईएमआई कहां से भरी जाएगी?
… लेकिन वो अकेला नहीं है. न्यूज़रूम की जब से सत्ता बदली है, हुवां-हुवां लोमड़ियां चीख रही हैं, सिटिर-पिटिर मधुमक्खियां कानों में बज रही हैं, कलेजे में कुत्ते भूंक रहे हैं, और लाल बुझक्कड़ों को छोड़ बाकी सब लथपथ हैं पसीने से- सिर से पांव तक. हर कोई जानता है कि न्यूज़रूम इन दिनों कुरुक्षेत्र का मैदान बना हुआ है, जहां नए बॉस धर्मयुद्ध खेल रहे हैं.
आवाज़ आती है- ‘अर्जुन’, हर कोई ऐसे चौंकता है कि मानो कोई आग्नेय कीड़ा शिराओं पर रेंग गया हो. ‘इज़ इट ऑल ओके, एनी प्रॉब्लम?’ ‘नो-नो… सर…’, सीनियर-जूनियर के बीच न्यूज़रूम में इन दिनों ऐसा ही वार्तालाप हो रहा है. जूनियर जानता है कि सीनियर अपनी फटी को सिलने के लिए इस जुमले को हैबिट में ला चुका है.
नए बॉस क़ातिल हो चुके हैं, वो न्यूज़रूम में घुसते हैं, तो हर कोई एक-दूसरे को देखकर आंखों ही आंखों में पूछता है—‘कालिया, आज किसका नंबर?’
पिछले दिनों स्वेट इक्विटी को स्वीट इक्विटी कह जाने के गुनाह पर 12 साल, और 3 चैनलों का एक्सपीरियंस रखने वाले एंकर की एंकरिंग ख़त्म हो चुकी है.
गैंग रेप के मामले में मोज़ैक होने के बावजूद, ठीक से चेहरा मोज़ैक न करने के ज़ुर्म में प्रोड्यूसर और स्पेशल करस्पॉन्डेंट को नौकरी गंवानी पड़ी है.
एक कैचलाइन अच्छी न लगने पर बॉस ने एक सीनियर प्रोड्यूसर को कुछ यूं बेइज़्ज़त किया, कि न्यूज़रूम में इंटर्न से लेकर एडिटर तक की पोस्ट वालों को बुला-बुलाकर उस कैचलाइन का मर्म पूछते रहे, और अपने सामने चुप रहने में भलाई समझने वाले हर एक चेहरे की ख़ामोशी को अपने ज्ञान और सीनियर प्रोड्यूसर की बेवकूफ़ी की नुमाइश मान बैठे. ये और बात है कि बॉस ने भी कोई दूसरी कैचलाइन नहीं सुझाई. हालांकि वो भरे न्यूज़रूम में कह चुके हैं, कि बस वो और चंद और उनके जैसे ही पत्रकार हैं, बाकी सब कंघी-चूड़ी बेचने वाले.
बॉस अपनी पैनी निगाहों से इन दिनों तथाकथित नकारों को छांट रहे हैं, और पहले से दोगुनी कीमत पर नए प्रोड्यूसर, सीनियर प्रोड्यूसर भर्ती करते जा रहे हैं.
बॉस पिछले दिनों जेल में थे. उनके मुताबिक उनकी गिरफ़्तारी आपातकाल जैसी थी. उनके ऊपर 100 करोड़ की रंगदारी के आरोप हैं तो क्या, वो माननीय संपादक हैं, कहीं भाग थोड़े जाते? बहरहाल, ये खीज कैसी है, पता नहीं, लेकिन सब कुछ बदल डालूंगा के अंदाज़ में बॉस ने न्यूज़रूम को हिला रखा है.
(घटनाएं सौ फीसदी सच्ची हैं, लेखकीय स्वतंत्रता ली गई है)
(लेखक ज़ी न्यूज़ में प्रोड्यूसर हैं)
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प्राइवेट कम्पनियों में भी अक्सर ऐसा ही होता है !!
महान पत्रकार सुधीर चौधरी अमर रहे
Do char lagaiye is ahmak ko. Bihar men badi achhi pratha hai kambal odhakar de dana dan karne ki. Delhi men bahut logon ko iski jaroorat hai.