- लाखों कर्मचारियों व पेंशनरों के महंगाई भत्ता व महंगाई राहत को रोके जाने पर योगी सरकार से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मांगा जवाब, पूछा किस कानून के तहत रोका डीए, जारी किया नोटिस, 16 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
- केंद्रीय वित्त मंत्रालय से भी मांगा जवाब
- लोकमोर्चा प्रवक्ता अनिल कुमार की याचिका पर हो रही है सुनवाई
- चर्चित अधिवक्ता रमेश कुमार ने कर्मचारियों की ओर से की बहस
प्रयागराज, 23 जून 2020: लाखों कर्मचारियों व पेंशनरों के महंगाई भत्ता व महंगाई राहत को रोके जाने पर योगी सरकार से इलाहाबाद हाइकोर्ट ने जवाब मांगा है और पूछा है किस कानून के तहत रोका डीए। माननीय उच्च न्यायालय ने योगी सरकार के साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है। अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी।
उक्त आदेश आज उच्च न्यायालय इलाहाबाद में माननीय न्यायमूर्ति जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने लोकमोर्चा के प्रवक्ता व शिक्षक कर्मचारी नेता अनिल कुमार की रिट याचिका संख्या 4445 / 2020 पर सुनवाई के दौरान पारित किया है।
याचिकाकर्ता की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के चर्चित अधिवक्ता रमेश कुमार ने बहस की और राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी ने बहस की।
उक्त जानकारी आज जारी बयान में याचिकाकर्ता व लोकमोर्चा प्रवक्ता अनिल कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि याचिका में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के आदेश दिनांक 24 अप्रैल 2020 को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई है जिसके द्वारा सभी राज्य कर्मचारियों और पेंशनभोगियो को दिया जाने वाले महंगाई भत्ता और महंगाई राहत के जनवरी 2020 से जून 2021 तक के भुगतान पर रोक लगा दी थी।
शासन का कहना है कि कोविड-19 से उत्पन्न वित्तीय संकट के चलते राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों (शिक्षण संस्थानों, शहरी निकायों समेत) व पेंशनभोगियो के अनुमन्य महंगाई भत्ते महंगाई राहत की किश्तों का भुगतान नहीं किया जायेगा। उन्होंने चर्चित अधिवक्ता रमेश कुमार व वरिष्ठ अधिवक्ता केके राय को उच्च न्यायालय में याचिका पर पैरवी करने को नियुक्त किया है।
आज हाइकोर्ट में हुई बहस में कर्मचारियों की ओर से अधिवक्ता रमेश कुमार ने कहा कि महंगाई भत्ता (डीए) और महंगाई राहत (डीआर) के भुगतान को रोकने का अधिकार सरकार को वित्तीय आपातकाल लगाकर संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत ही प्राप्त हो सकता है और इस बाबत राष्ट्रपति के द्वारा यह आदेश पारित कराया जा सकता है। बिना वित्तीय आपातकाल लगाये केवल शासनादेश द्वारा मंहगाई भत्ते व मंहगाई राहत पर रोक असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 11 मार्च 2020 को नोटिफाइड डिजास्टर (अधिसूचित आपदा) घोषित किया जा चुका है और वित्तीय संकट का समाधान डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के प्राविधानों में निहित होना चाहिए, लेकिन इस एक्ट में सरकार को डीए और डीआर पर रोक का कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
ऐसे में सरकार द्वारा कर्मचारियों व पेंशनरों के मंहगाई भत्ते और मंहगाई राहत पर रोक का शासनादेश संविधान और कानून के प्रावधानों के विरुद्ध है।
इस आदेश के द्वारा प्रदेश के 16 लाख से अधिक राज्य कर्मचारियों और लाखों पेंशनभोगियो के सामने आर्थिक संकट का खतरा उतपन्न हो गया है। किसी शासनादेश अथवा राजाज्ञा के द्वारा अथवा प्रशासनिक आदेश से इस प्रकार के आदेश नही जारी किए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि योगी सरकार का आदेश कानून के शासन और संवैधानिक व्यवस्था व संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 21 का उल्लंघन भी है।
बहस सुनने के बाद माननीय न्यायमूर्ति जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय को नोटिस जारी कर जबाब मांगने का आदेश पारित किया और अगली सुनवाई को 16 जुलाई की तारीख निर्धारित की है।
याचिकाकर्ता अनिल कुमार ने बताया कि महंगाई भत्ते व महंगाई राहत पर रोक के योगी सरकार के आदेश को रद्द करने को इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, याचिका पर 18 जून को जस्टिस विवेक बिरला की कोर्ट में सुनवाई हुई थी। याची की ओर से अधिवक्ता रमेश कुमार ने बहस की थी। बहस के बाद जस्टिस विवेक बिरला ने 23 जून को याचिका की सुनवाई करने का आदेश पारित किया था। आज 23 जून को याचिका पुनः फ्रेश केस के बतौर सुनवाई के लिए जस्टिस जेजे मुनीर की कोर्ट में 8 नंबर पर लिस्ट हुई थी।
कोरोना महामारी से उत्पन्न आपात स्थिति का हवाला देकर योगी सरकार ने 24 अप्रैल को मंहगाई भत्ते पर रोक लगा दी थी जिससे 16 लाख से अधिक राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों और लाखों पेंशन भोगी रिटायर्ड कर्मचारियों को कोरोना संकट से समय भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। उनके हितों की रक्षा के लिए लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव की सलाह पर इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि योगी सरकार का महंगाई भत्ता रोकने का शासनादेश असंवैधानिक है। महंगाई भत्ता कर्मचारियों के वेतन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चौथे वेतन आयोग की रिपोर्ट में मंहगाई भत्ते पर अलग से चैप्टर दिया गया है। संविधान में भी वेतन के साथ भत्तों का भी जिक्र है। इससे समझा जा सकता है कि संविधान निर्माताओं ने वेतन के साथ भत्तों को महत्वपूर्ण माना था। बिना आर्थिक आपातकाल लगाए सरकार मंहगाई भत्ते को नहीं रोक सकती। कोरोना महामारी के संकट के समय में जबकि ज्यादातर कर्मचारी कोरोना वारियर की भूमिका में जीवन का रिस्क लेकर जनता के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे समय में कर्मचारियों व उनके परिजनों को आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। पेंशनभोगियों के पास तो आय का कोई और जरिया भी नहीं है। सभी साठ वर्ष से अधिक उम्र के हैं जो हाइ रिस्क के दायरे में आते हैं।
शिक्षक कर्मचारी नेता ने कहा कि लोकमोर्चा के द्वारा कर्मचारियों-शिक्षकों के हितों के लिए संघर्ष जारी रहेगा। जरूरत हुई तो उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता केके राय भी कर्मचारियों की ओर से बहस करेंगे। उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि माननीय उच्च न्यायालय कर्मचारियों शिक्षकों को न्याय देगा और सरकार के शासनादेश को रद्द कर देगा।
Like!! I blog frequently and I really thank you for your content. The article has truly peaked my interest.
I always spent my half an hour to read this web site’s articles or reviews daily along with a mug of coffee.
These are actually great ideas in concerning blogging.