शुक्रवार को चीन के साथ जारी सीमा विवाद पर हुई ऑनलाइन सर्वदलीय बैठक से धीरे-धीरे छन कर जानकारियां बाहर आ रही हैं. विपक्षी दलों की तमाम दुश्चिंताओं के बीच मीडिया ने जिस ख़बर को सबसे ज्यादा तवज्जो दी वह है प्रधानमंत्री का बयान. नरेंद्र मोदी ने कहा, “न वहां हमारी सीमा में कोई घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है. ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है.”
प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के समय के साथ एक जबर्दस्त संयोग देखने को मिला है. चीनी पक्ष जो अभी तक सिर्फ अपने प्रवक्ताओं के बयान के जरिए गलवान घाटी और पैंगॉन्ग झील के इलाके पर अपना दावा जता रहा था, उसने दिल्ली में मौजूद अपने दूतावास की वेबसाइट पर एक विस्तृत बयान जारी करके गलवान घाटी के आधिकारिक रूप से चीन का हिस्सा होने की घोषणा कर दी. चीनी दूतावास के इस आधिकारिक बयान में साफ कहा गया है- “गलवान घाटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के चीनी हिस्से में है. कई सालों से चीनी सैनिक इस इलाके में गश्त करते आ रहे हैं और यहां उनकी नियुक्तियां हैं.”
यह दुर्लभ स्थिति है. प्रधानमंत्री कहते हैं- “न कोई घुसा है, न घुसा हुआ है.” चीनी दूतावास ने साथ-साथ, पहली बार यह घोषणा की है कि गलवान वैली उसके हिस्से में आती है. तो फिर लड़ाई किस बात की है? सवाल यह भी उठता है कि जब शीर्ष नेता ने ही सबकुछ कह दिया तब इस मुद्दे पर आगे लड़ने, बहस-मुबाहिसा करने या किसी और तरह के प्रयास करने का कोई भी अर्थ शेष रह गया है? सेना के लिए भी अब कुछ और करना बाकी है? शीर्ष नेतृत्व ने सबकुछ सुरक्षित बोल दिया और चीन ने उनके बयान को टेक देते हुए गलवान घाटी को अपना घोषित कर दिया.
लेकिन ये सवाल उठाना और उस पर बहस करना जरूरी है. इसके लिए उन परिस्थितियों के बारे में जानना जरूरी है जिसमें यह सारा घटनाक्रम हुआ. साथ ही इस विषय के जानकारों की राय जानना भी जरूरी है ताकि आप समझे सकें कि असल में हुआ क्या है. क्या भारत का राजनीतिक नेतृत्व जिसकी कमान नरेंद्र मोदी के हाथों में है, वो देश के सामने सही तस्वीर रख रहे हैं. ऐसे चार महत्वपूर्ण पड़ाव जून के महीने में सामने आए हैं जो प्रधानमंत्री के दावे से विरोधाभास पैदा करते हैं, ये बताते हैं कि असलियत कुछ और भी हो सकती है.
पहले हम चीन के उस दावे की पड़ताल कर लें कि क्या गलवान घाटी कभी भी चीन का हिस्सा था. जवाब है नहीं.
यह जाहिर बात है कि गलवान घाटी हमेशा से एलएसी के भारतीय हिस्से में रही है. यह बात भारतीय सेना के हर उस दस्तावेज का हिस्सा है जो लद्दाख इलाके में कार्यरत है. यह तथ्य किसी भी संदेह से परे है. यह जिम्मेदारी अब भारत सरकार की है कि वह चीनी पक्ष के इस दावे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे जिसमें वह गलवान घाटी पर अपना दावा कर रहा है.
मई महीने से ही लद्दाख में स्थिति गलवान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील के इलाके में चीनी सेना की घुसपैठ और हाथापायी की खबरें आने लगी थीं. इस बाबत तमाम वीडियो भी प्रसारित हुए. घटनाक्रम जिस तरीके से आगे बढ़ा उसमें सैन्य स्तर पर लगातार बातचीत शुरू हुई. इसके बाद 6 जून को भारत और चीनी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में चरणबद्ध तरीके से अपनी-अपनी स्थितियों से पीछे हटने की घोषणा की गई. लेकिन 15 जून की रात हालात ने बेहद भयावह मोड़ ले लिया. चीन ने घात लगाकर 20 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी. 76 भारतीय सैनिक घायल हुए. 10 भारतीय सैनिकों को बंधक बना लिया गया जिन्हें 18-19 जून को रिहा किया गया. यह है अब तक की स्थिति.
अब हम बात उन चार पड़ावों की करते हैं जो प्रधानमंत्री के दावे को चुनौती देते हैं.
6 जून: डिसएंगेजमेंट एग्रीमेंट
दोनों देशों की तरफ से हालात को सामान्य बनाने वाले बयानों के बाद 6 जून को दोनों सेनाओं के कॉर्प्स कमांडर के बीच बैठक हुई. इस बैठक में चरणबद्ध तरीके से डिसएंगेजमेंट को लेकर सहमति बनी. साथ में 10 जून के बाद नियमित सैन्य बैठकें करने पर भी सहमति बनी. इन बैठकों का मुख्य ध्येय घोषित किया गया कि किसी भी तरह का एस्केलेशन यानी टकराव में तेजी न आने पाए और हालात सामान्य की तरफ बढ़ें.
अगर प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि- न कोई घुसा है, न कोई घुसा हुआ है. न किसी पोस्ट पर किसी बाहरी का कब्जा है- तो फिर 6 जून को किस जगह से डिसएंगेजमेंट का समझौता हुआ था? किसको डी-एस्केलेट करना था? कहां से चीन की सेना को चरणबंद्ध तरीके से पीछे हटना था और कहां पर टकराव को खत्म करना था?
प्रधानमंत्री के बयान से ये सभी सवाल अधर में अटक गए हैं.
16 जून: विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव का बयान
15 जून को हुई हिंसक वारदात में 20 भारतीय सैनिकों के मरने की ख़बर सेना और सरकार ने दी. इसके बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बयान दिया– “चीनी पक्ष गलवान घाटी में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का सम्मान करने की जो हमारी सहमति थी, उससे पीछे हट गया है. भारत की सभी गतिविधियां एलएसी के भारतीय हिस्से के भीतर ही सीमित हैं. हम चीन से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा करते हैं.”
तीन दिन पहले का यह बयान साफ कहता है कि चीन एलएसी का सम्मान नहीं कर रहा है, उसकी गतिविधियां एलएसी के अपने हिस्से तक सीमित नहीं हैं, वह समझौते से पीछे हट गया है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान इस संदर्भ के साथ देखा जाना चाहिए जब 15 जून को 20 भारतीय जवानों की हत्या चीन ने कर दी थी. तो फिर तीन दिन बाद ही प्रधानमंत्री अपनी ही सरकार के प्रवक्ता की “आधिकारिक स्वीकरोक्ति” का खंडन क्यों कर रहे हैं?
17 जून: विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीनी विदेश मंत्री से बातचीत
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी समकक्ष वांग यी से फोन पर बात कर कठोर शब्दों में भारत का विरोध दर्ज करवाया. विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया, “भारत और चीन जिम्मेदारी से 6 जून को हुए डिएंगेजमेंट समझौते के तहत हालात को सामान्य बनाएंगे.”
लगे हाथ भारत ने 20 सैनिकों की हत्या पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए चीनी पक्ष को कहा- “यह घटना दोनों देशों के रिश्ते पर गहरा असर डालेगी.” बयान के मुताबिक- “डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया के दौरान ही चीनी पक्ष ने गलवान घाटी में भारत के हिस्से में एक ढांचा खड़ा करने की कोशिश की. जिसकी वजह से यह टकराव हुआ.”
बयान में आगे कहा गया, “यह टकराव की एक वजह था लेकिन चीनी पक्ष ने पूर्वनियोजित और योजनाबद्ध तरीके से कार्रवाई की जिससे इतनी जानें गईं. यह उनकी मंशा को दिखाता है कि वो जमीन पर तथ्यों को बदलना चाहते हैं, जो कि हमारे बीच वस्तुस्थिति बनाए रखने के लिए हुए तमाम समझौतों का उल्लंघन है.”
यानि 17 जून को भी विदेश मंत्रालय साफ कह रहा है कि चीन समझौतों का उल्लंघन कर, भारतीय सीमा में ढांचा खड़ा कर रहा था. उसने सुनियोजित तरीके से 20 सैनिकों की हत्या की. लेकिन इसके महज दो दिन बाद प्रधानमंत्री का बयान इस पूरी सच्चाई से मुंह मोड़ने वाला है.
20 जवानों की मौत क्यों हुई?
यह चौथा और महत्वपूर्ण सवाल है. जिन 20 सैनिकों की हत्या चीनियों ने की वो भारत की ज़मीन पर थे या चीन की ज़मीन पर थे. विदेश मंत्रालय एकाधिक मौकों पर यह कह चुका है कि भारत की गतिविधियां एलएसी के भारतीय क्षेत्र में ही सीमित हैं. वह यह भी कह चुका है कि भारत के हिस्से में स्थायी निर्माण कर रहा था. तो जाहिर है कि इन 20 जवानों की हत्या चीन ने भारतीय इलाके में ही की होंगी. और इन सबसे महत्वपूर्ण है चीन का वह ताजा आधिकारिक बयान जिसमें उसने पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा कर दिया है. प्रधानमंत्री का बयान न तो इस सच्चाई पर कोई रोशनी डालता है न ही चीन की घुसपैठ का संज्ञान लेता है.
अब चूंकि प्रधानमंत्री का बयान भी हमारे सामने और और चीन का आधिकारिक दावा भी हमारे सामने आ चुका है तो अब बस इतनी सी जिज्ञासा शेष बची है कि जिस जगह पर थ्री ईडियट नामक इस फिल्म का यह दृश्य फिल्माया गया था क्या उसी स्थान पर आज एक और भारतीय फिल्म की शूटिंग हो सकती है!!!
ये कहानी न्यूज़लौंड्री हिंदी से साभार प्रकाशित है. मूल कहानी पढ़ने के लिए इस लिक पर जाएं.
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