काम के घंटे नहीं मजदूरी बढ़ाइए, मज़दूरों को सुरक्षित घर पहुंचाइए


इंदौर, 8 मई 2020. मज़दूरों को सरकार उनके घर पहुंचाने का निशुल्क इंतज़ाम करे। काम के घंटे बढ़ाने के बजाय मजदूरी बढ़ाई जाए और काम के घंटे कम किये जाएं। सख्ती, कर्फ्यू, दंड जैसी शब्दावली शासन इस्तेमाल ना करे, जिससे जनता में भय उपजे, बल्कि गरीबों का भरोसा जीतने वाली भाषा बोले।शराब बिकवाने की बजाय ज़रूरी चीजे मुहैया कराए। इन सब मांगो को लेकर अनेक राजनीतिक दलों की तरफ से संभागायुक्त को ई-ज्ञापन भेजा गया। ज्ञापन में विस्तार से सभी बिंदुओं पर अपनी बात रखी गई और अनेक सुझाव भी  दिये गए।

ज्ञापन देने वालों में भाकपा के वसंत शिंत्रे, वरिष्ठ अर्थशास्त्री जया मेहता, भाकपा के ही विनीत तिवारी, रुद्रपाल यादव, माकपा के कैलाश लिंबोदिया, भाकपा की सारिका श्रीवास्तव, एसयूसीआई (सी) की अर्शी खान व आम आदमी पार्टी के जयप्रकाश मुख्य रूप से शामिल थे। इनकी तरफ से कहा गया कि लॉक डाउन खोलने की प्रक्रिया में मज़दूरों से ८ की बजाय १२ घंटे काम लेना ठीक नहीं है। काम के घंटे कम किये जाएं और वेतन भत्तो को डेढ़ गुना किया जाए ताकि इस मुश्किल समय में उन्हें काम करने के लिए राजी किया जा सके। सफाई कर्मचारियों और नर्सिंग स्टाफ को पीपीई किट, मास्क और सेनेटाइजर दिये जाएं क्योंकि किसी भी महामारी से पहला वास्ता इनका ही पड़ता है। संक्रमण से ऐसे जिन कर्मचारियों की मृत्यु हुई है उनके लिए मात्र ५० हजार का मुआवजा घोषित करना शर्मनाक है। मुआवजा राशि बढ़ाई जाए। आशा, उषा कार्यकर्ता बगैर सुरक्षा उपकरणों के तपती धूप में सर्वेक्षण के काम कर रही हैं, उन्हें सुविधाएं दी जाएं और वेतन बढ़ाया जाए।

शहर छोड़कर जाने वाले मज़दूरों से बस वाले अनाप-शनाप पैसा वसूल रहे हैं। मज़दूरों को घर तक छोड़ने का इंतज़ाम शासन के खर्च पर हो। स्पेशल बसें व रेलें चलाई जाएं। जनता की सारी ज़रूरतों की आपूर्ति अगर की जाए तो लॉकडाउन ज्यादा सफल रहे। ज्ञापन में कहा गया है कि हमने पूर्व में भी आपको कई सुझाव दिये हैं। अगर लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही सारी आवश्यकताओं की पूर्ति व्यवस्थित रूप से की जाती तो लॉकडाउन ज्यादा सफल होता।

शासन ने महामारी का हवाला देकर विरोध, धरने प्रदर्शन के नागरिकों, श्रमिकों और कर्मचारियों के जनतांत्रिक हक छीन लिए हैं। ज्ञापन में कहा गया है कि अगर हमारी माँगों, शिकायतों और सुझावों पर ध्यान न दिया गया तो हम फिजिकल डिस्टेंस रखते हुए अपना विरोध प्रदर्शन करने सड़क पर उतरेंगे। ज्ञापन में प्रशासन पर यह इल्जाम भी लगाया गया है कि प्रशासन विपक्ष के नेताओं से कोई सलाह मशवरा नहीं करता, जबकि उनके पास भी शहर की बेहतरी के लिए अनेक सुझाव होते हैं। प्रशासन सभी दलों से समान व्यहवार करे। ज्ञापन में कोविड 19 के संक्रमण के संप्रदायीजरण के लिए भी प्रशासन और मुख्यमंत्री के गैर8जिम्मेदार और आधारहीन बयानों को ज़िम्मेदार बताया गया है।

ज्ञापन देने वालों की ओर से
विनीत तिवारी
9893192740


ज्ञापन

प्रति,
श्रीमान संभागायुक्त महोदय,
इंदौर सम्भाग,
इंदौर (मध्य प्रदेश)

विषय:- प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुँचाये जाने और लॉकडाउन के सम्बंध में इंदौर में अपनाई जा रही शासन-प्रशासन की नीतियों के सम्बंध में।

श्रीमान संभागायुक्त महोदय,

इंदौर में कठोर लॉकडाउन को लागू किए हुए डेढ़ माह हो चुका है। इतनी लंबी अवधि तक मजदूर वर्ग और गरीब तबका तो क्या, मध्यम आय वर्ग भी जरूरी सामानों की कमी से परेशान हो चुका है। यद्यपि प्रशासन लोगों तक जरूरी सामान और राशन पहुँचाने के अपने प्रयासों की स्वयं काफी प्रशंसा करता रहा है और इस सच्चाई को झुठलाता रहा है कि लोगों को जरूरी चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने, राशन पहुँचाने जैसे जीवन आवश्यक कार्यों व सेवाओं की आपूर्ति में बड़ी तौर पर नाकाम रहा है। हम समझ सकते हैं कि कोविड 19 की इंदौर पर आई विपत्ति असामान्य और अभूतपूर्व है और प्रशासनिक अमले की अपनी सीमाएँ हैं लेकिन प्रशासन को भी यह समझना चाहिए कि ऐसे अभूतपूर्व संकट के दौर में उसे एक समावेशी रणनीति बनाकर काम करना चाहिए था। इस विषय में हम पूर्व में भी आपको ईमेल तथा व्हाट्सएप के माध्यम से ज्ञापन भेज चुके हैं।

डेढ़ माह से शहर में और शहर के बाहर कोने-कोने में बिखरे हजारों प्रवासी मजदूर कभी राशन, कभी दवाओं, तो कभी सही सूचनाओं के अभाव में बुरी तरह छटपटा रहे हैं। हमने पहले भी कहा था कि जिला प्रशासन और सरकार सख्ती से कर्फ्यू का पालन करवाने के बजाए और बैचेन होकर कलेक्ट्रेट पर इकट्ठा होने वाले और बेघर होने के कारण यहाँ-वहाँ छत की तलाश में भटकने वाले मजदूरों और सामान्य हैसियत के नागरिकों पर डंडे बरसाने के बजाए अगर व्यवस्थित तरह से सिलसिलेवार पहले से ही उन्हें उनके घर भेजने का प्रबन्ध करती तो आज उनके विश्वास को जीतकर उन्हें उनके घर भेजा जा सकता था और समस्या को विकराल होने से रोका जा सकता था।

1. अब जब सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने सम्बन्धी निर्देश जारी किए हैं तो देखा जा रहा है कि अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है। वे अपने ठिकानों तक सरकारी खर्च पर (पूर्ण या आंशिक) भेजे जाएँगे या उनसे उनका किराया वसूल किया जाएगा। कल दिनाँक 6 मई 2020 के दैनिक भास्कर में प्रकाशित समाचार के अनुसार इंदौर से बड़वानी जाने के लिए चन्द मजदूरों को बस के भाड़े के लिए रुपए 63,000/- का भुगतान करना पड़ा। यह एक इकलौता प्रसंग नहीं है इंदौर में हजारों मजदूरों के साथ हजारों विद्यार्थी भी फंसे हुए हैं। न तो अब तक सरकार ने इन मजदूरों और विद्यार्थियों के लिए कोई स्पेशल ट्रेन चलाई है और न ही अभी तक इस बारे में  अपनी कोई योजना घोषित की है। हमारी माँग और सुझाव है कि शीघ्र अतिशीघ्र इंदौर में बाहर के रहने वालों को चाहे वे प्रदेश के हों या प्रदेश के बाहर के उनके घर-परिवार तक पहुँचाने की व्यवस्था शासकीय खर्च पर की जाए।

2. आपके माध्यम से हम प्रदेश व केंद्र शासन तक अपनी यह माँग भी पहुँचाना चाहते हैं कि लॉकडाउन को क्रमशः खोलने की प्रक्रिया में जिन कारखानों और सेवाओं को बहाल किया जा रहा है, उनमें काम करने वाले कर्मचारियों-मजदूरों से 8 या 12 घण्टे का काम लेने की बजाए उनके श्रम के घण्टे कम किए जाएँ और ऐसे खतरनाक हालात में उनसे काम लेने के एवज में उनके वेतन भत्तों को डेढ़ गुना बढ़ाया जाए। साथ ही उनकी स्वास्थ्य सुरक्षा को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाए ताकि ठप्प पड़ी अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने में इनके योगदान का महत्त्व रेखांकित हो। यहीं हम इस बात का विशेष उल्लेख करना चाहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियाद सफाई कर्मचारी और नर्सिंग स्टाफ होता है जिनका संक्रमण से सबसे पहले वास्ता पड़ता है। इन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण के साथ-साथ पीपीई किट्स, मास्क और सेनेटाइजर्स पर्याप्त मात्रा में दिए जाने चाहिए। हाल में एक सफाई कर्मचारी की कोविड 19 के संक्रमण से मृत्यु हुई  जिसके लिए सरकार की ओर से केवल रुपए 50,000/- का मुआवजा घोषित किया गया। जो निंदनीय और शर्मनाक है। इसी तरह आँगनबाड़ी, आशा-उषा कार्यकर्ताओं के द्वारा जो सर्वे कार्य करवाया जा रहा है, उसमें भी हमने देखा है कि वे बिना पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के तपती दोपहर में कॉलोनियों, मोहल्लों और बस्तियों में भटक रही हैं, गलियों के भूखे कुत्तों का शिकार बन रही हैं और इस सब में डर, हड़बड़ाहट और बैचेनी के चलते वे सही डाटा भी इकट्ठा नहीं कर पा रहीं। इसमें उनका नहीं बल्कि उनके अधिकारियों का दोष अधिक है। उनके लिए भी पर्याप्त प्रशिक्षण, सुरक्षा उपकरण और काम करने के लिए अधिक वेतन शासन को सुनिश्चित करना चाहिए।

3. “सख्ती”, “कर्फ्यू” और “दण्ड” जैसी भय पैदा करने वाली शब्दावली को त्याग करके नागरिकों को विश्वास में लेने वाली शब्दावली को विकसित करने का एक मौका पुलिस-प्रशासन को कोविड 19 के दौर ने दिया है। हमारा आरोप है जिला प्रशासन पर कि उसने एक सम्प्रदाय विशेष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरह से कोविड 19 के संक्रमण को फैलाने का जिम्मेदार प्रचारित किया। हमारे सारे सुझावों को नजरअंदाज किया। हम कहना चाहते हैं कि यदि शुरू से सोशल डिस्टेंडिंग, जो दरअसल फिजिकल डिस्टेंसिंग है, की हिदायत के साथ अगर जनता को दूध, राशन, सब्जियों, फलों, चिकित्सकीय,  इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल आवश्यक सेवाओं को निश्चित समयावधि के भीतर जारी रखा जाता तो कोविड 19 का यह प्रकोप इंदौर को इतना नहीं झेलना पड़ता। जिस तरह की सख्ती के कदम उठाए गए उनका तार्किक जवाब आज नहीं तो कल जिला प्रशासन को देना होगा। बड़े सरकारी ओहदों पर बैठे, निर्णय लेने में सक्षम अधिकारियों को इस भारतीय यथार्थ को जानना चाहिए कि शहरों के भीतर अभी भी 60 से 70 फीसदी आबादी तंग बस्तियों में रहती है जहाँ 10×10 की खोली में 6, 7 या 8 का परिवार बसर करता है। लोगों को घरों में बन्द करके या दड़बेनुमा क्वारनटाइन केंद्रों में कैद करने से कोविड 19 के संक्रमण को फैलने में और सुविधा हुई। अगर लोगों को ये यकीन होता कि प्रशासन उनकी जरूरतों की देखभाल करेगा तो वे झुंड के झुंड निकलकर दूध, सब्जी या राशन की दुकानों पर न टूट पड़ते। देशभर से आ रही खबरें बताती हैं कि विपन्न लोग कोविड 19 से ज्यादा बड़ा खतरा भूख को मान रहे हैं जो उन्हें अक्षम सरकारी प्रबन्धन की वजह से निगलती जा रही है।

4. पिछले 4-5 दिनों से मीडिया की सुर्खियों में शराबखाने खोले जाने या न खोले जाने के विषय में विवाद बना हुआ है, हमारा मानना यह है कि शराब या नशे के अन्य पदार्थों के बिक्री केंद्र खोलने के बजाए शासन तथा प्रशासन को जीवन आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति जनसामान्य को सुलभ करवाने के लिए अधिक ध्यान देना चाहिए।

5. प्रशासन ने कोविड 19 का हवाला देकर मेहनतकश लोगों के धरने प्रदर्शन के और शासकीय नीतियों के विरोध के जनतांत्रिक अधिकार को भी छीन लिया। मध्य प्रदेश में और इंदौर में यह देखा गया कि प्रशासन सत्तासीन राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों से मेल-मुलाकात और विचार-विमर्श कर रहा है किंतु विपक्षी दलों और अन्य विचारधारा रखने वाली सामाजिक-नागरिक संस्थाओं और संगठनों से पक्षपात कर रहा है। हम प्रशासन के इस व्यवहार की निंदा करते हैं और माँग करते हैं कि ऐसी महाआपदा के समय वह सभी राजनीतिक दलों का सहयोग ले और समान व्यवहार करे। मिलजुलकर ही हम इस महाविपत्ति से निपटेंगे और विजय प्राप्त करेंगे। अंत में हम आपसे यह निवेदन करना चाहते हैं और साथ ही आपको सूचित करना चाहते हैं कि यदि हमारी माँगों, सुझावों और शिकायतों पर शीघ्र कार्यवाही न की गई और उन्हें पहले की तरह नजरअंदाज किया गया तो हम आपके फिजिकल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का पूर्ण पालन करते हुए निकट भविष्य में आम परेशान जनता के साथ विरोध प्रदर्शन करेंगे।

निवेदन, सुझाव देने वाले, माँग करने वाले और आपके सहयोगी-

वसन्त शिंत्रे (भाकपा)
डॉ. जया मेहता (वरिष्ठ अर्थशास्त्री),
विनीत तिवारी (भाकपा)
एस के दुबे (भाकपा)
रुद्रपाल यादव (भाकपा)
कैलाश लिम्बोदिया (माकपा)
अरुण चौहान (माकपा)
सारिका श्रीवास्तव (भाकपा)
अर्शी खान (एस यू सी आई, सी)
जयप्रकाश (आम आदमी पार्टी)

संपर्क: 94253 45219, 98931 92740.


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जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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