DUTA में जवाबदेही और जनतंत्र वापस लाने के लिए DU शिक्षक द्वारा सत्याग्रह का पांचवां दिन!


दिल्ली विश्वविद्यालय की मनमानी और मजदूरों की विपदा पर सरकार की उदासीनता के खिलाफ डूटा से असहयोग आंदोलन शुरू करने की अपील की!

हमारा देश लॉकडाउन के कारण एक अभूतपूर्व संकट की स्थिति है| इस दौरान हम रोज़ मजदूरों और अन्य सामाजिक-आर्थिक हाशिये के समुदायों की विपत्ति और पीड़ा की खबरें सुन रहे हैं| इन संकट का सबसे ज्यादा बोझ समाज के सबसे वंचित हिस्सों को उठाना पड़ रहा है| इंडिपेंडेंट टीचर्स कलेक्टिव (आईटीसी) जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वतंत्र शिक्षकों का एक नया, गैर-चुनावी संगठन है, वो दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) से अपील करता है कि इस संकट के मौके पर देश के मजदूरों के साथ खड़ा हो| 

जहां आज देश में हर तरफ अफरा-तफरी है, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन बिलकुल ही संवेदनहीन और मनमाने तरीके से काम कर रहा है| ज्ञात हो कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने हाल ही में बेहद संवेदनहीन तरीके से ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा को लागू किया है, यह मालूम होते हुए कि यह कदम पूर्णतः गलत है| साथ ही, प्रशासन ने वैधानिक संस्थाओं जैसे अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद, जिनमें निर्वाचित शिक्षक प्रतिनिधि और शिक्षाविद होते हैं, उनसे बिना सलाह किए अधिसूचनाएं जारी करने का भी काम किया है| आज विश्वविद्यालय में और उसके बाहर संकट के दौर में, डूटा, जो कि शिक्षकों के सबसे बड़े ट्रेड यूनियनों में एक है, वो निष्क्रिय और आत्म-संतुष्टता की स्थिती में है| उसकी पहलकदमियां सिर्फ कुछ प्रेस विज्ञप्ति जारी करने और डीयू अधिकारियों को ज्ञापन लिखने तक ही सीमित रही हैं| साथ ही, डूटा विभिन्न कॉलेजों की मजबूत स्टाफ असोशिएशन से सलाह करने और उन्हें डीयू प्रशासन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मनमाने कदमों के खिलाफ लामबंद करने में भी असफल रहा है| साथ ही, शिक्षकों में एक सुगबुगाहट है कि डूटा उनकी समस्याओं के प्रति पूरी तरह से उदासीन है|

सरकार और डीयू प्रशासन की उदासीनता, और इस संकट के समय इसके खिलाफ खड़े होने में डूटा की विफलता को उजागर करने के लिए, एक डीयू शिक्षक, डॉ. माया जॉन पिछले 5 दिनों से सत्याग्रह पर हैं! उनका संपर्क 9540716048, और उनकी ईमेल आईडी maya.john85@gmail.com है| 

उनके सत्याग्रह में:
(1) बिना नमक और मसाले के सिर्फ एक वक्त का भोजन करना
(2) वातानुकूलक और पंखे का प्रयोग नहीं करना 
(3) ज़मीन पर सोना 
(4) कंघा न करना और शीशे का प्रयोग न करना 
(5) टीवी, यूट्यूब जैसे मनोरंजन से दूर रहना, शामिल है 

जिन मांगों पर वो सत्याग्रह कर रही हैं, वो निम्नलिखित हैं:

राष्ट्रीय मांगें

1.      प्रवासी कामगारों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करो और अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम में निर्धारित यात्रा भत्ता दो|

2.      विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा वैधानिक श्रम कानूनों के स्थगन के फैसले को तुरंत वापस लो|

3.      कामगार गरीबों के लिए राशन और तीन-महीने का मूलभूत न्यूनतम वेतन का प्रावधान करो|  

4.      शहरी गरीबों के किराए पर रोक लागू करो|

5.      कामगार गरीबों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दमनकारी कदम बंद करो|

6.      स्वास्थ्य क्षेत्र में सभी फ्रंटलाइन कामगारों, और ज़रूरी सेवाओं (सफाई कर्मचारी, आदि) में लगे कामगारों को महामारी भत्ता और सुरक्षा उपकरण सुनिश्चित करो|  

7.      कॉर्पोरेट घरानों पर टैक्स बढ़ाने के साथ-साथ उनपर पुनः संपत्ति-कर और उत्तराधिकार-कर लगाओ|

8.      कोविड-19 से ज़्यादातर मौतें सहरुग्णता (कोविड-19 का अन्य बीमारियों के साथ होना) के कारण हुई है| इसलिए अन्य बीमारियों को नज़रअंदाज़ करना और सिर्फ कोविड-19 को प्रमुखता देना पूरी तरह से गलत है| ऐसी स्थिति में, सार्वजनिक अस्पतालों में तुरंत बाह्य रोगी विभाग (ओपीड़ी) सेवा शुरू करो|

विश्वविद्यालय समुदाय की मांगें

1.      ऑनलाइन परीक्षा का फैसला तुरंत वापस लो|

2.      छात्रों से व्यापक सलाह किया जाए, जिससे सही तरीके से उनके पढ़ाई-संबंधी अनुभवों और जरूरतों को समझा जा सके|

3.      एमएचआरडी, यूजीसी और विश्वविद्यालयों द्वारा चुनी गयी समितियों की अनुशंसाओं को रद्द करो, और शिक्षकों और कर्मचारियों से सलाह की मांग करो|

4.      रेगुलर कालेजों, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) और एनसीडबल्यूईबी के नियमित और कांट्रैक्ट कर्मचारियों, और गेस्ट शिक्षकों को वेतन दो, जिन्हें इस लॉकडाउन के दौरान भुगतान नहीं किया गया है|

डूटा के अलावा, आईटीसी शिक्षकों के अन्य समूहों जैसे एआईएफ़यूसीटीओ, फेडकूटा, विभिन्न स्टाफ एसोसिएशन एवं अन्य समूहों से तुरंत एक असहयोग आंदोलन शुरू करने की अपील करता है जिसमें तुरंत सभी आधिकारिक कार्यों को रोकने जैसे कदम शामिल हों, ताकि सरकार और विश्वविदायले प्रशासन मजदूरों और विश्वविद्यालय समुदायों की मांगों पर ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य हों|

सधन्यवाद,
इंडिपेंडेंट टीचर्स कलेक्टिव, दिल्ली विश्वविद्यालय


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