NTPC पर गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज हो: तपोवन-रैणी से लौटे पर्यावरणकर्मियों की रिपोर्ट और मांगें


7 फरवरी, 2021 को तपोवन गांव स्थित बैराज के गेट बंद थे जिस कारण से तेजी से बहता पानी गेट से टकराकर बांयी ओर स्थित हेडरेस्ट टनल में घुस गया। आज अपने ही मजदूर व कर्मचारियों के परिवारों के जीवन की बर्बादी की जिम्मेदार एनटीपीसी है। यह दुर्घटना पूरी तरह सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। हम ग्लेशियर टूटने या ग्लोबल वार्मिंग को दोष देकर लोकल वार्मिंग के मुद्दे को नहीं छुपा सकते।

अफसोस है कि उत्तराखंड में सरकार ने एक दिन का शोक तक नहीं घोषित किया गया? एनटीपीसी ने भी एक शोक प्रस्ताव का स्टेटमेंट तक नहीं निकाला। क्या मात्र 4 लाख रुपये इन मेहनतकश मज़दूरों की जिंदगियों की कीमत है? जिन बांधों को विकास कहकर प्रचारित किया जाता है उन्हीं बांधों ने इन मज़दूरों की जान ली है।

माटू जनसंगठन ने 9 तारीख को पहले ही स्टेटमेंट में इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी। रोज़ निकल रहे शव शोक में डुबा रहे हैं। हमारे पास दुखित परिवारों को सांत्वना देने के लिए शब्द नहीं हैं। मृतकों को श्रद्धांजलि में आंखे नम हैं। हम नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स, आर्मी, आईटीबीपी, एसडीआरएफ व स्थानीय पुलिस के जवानों को सलाम करते हैं। उनकी कोशिशें सफल हों। जो लापता हैं वे सलामत मिलें। साथ ही जोशीमठ के गुरुद्वारे प्रबंधक कमेटी को भी ज़िंदाबाद जो इन जवानों के लिए रहने व खाने की लगातार व्यवस्था दे रहे हैं।

एनटीपीसी को 8 फरवरी 2005 में तपोवन विष्णुगाड परियोजना बनाने के लिए पर्यावरण स्वीकृति मिली थी। 2011 में यह परियोजना के पूरा होने की संभावित तारीख थी किंतु परियोजना लगातार क्षेत्र की नाजुक पर्यावरणीय स्थितियों के कारण रूकती रही है। सन 2011, 2012 व 2013 में काफर डैम टूटा, बैराज को कई बार नुकसान पहुंचा।

सन 2009 में हैड रेस्ट टनल को बनाने के लिए लाई गई 200 करोड़ की टनल बोरिंग मशीन टनल में ही अटक गई। फिर 2016 में दोबारा अटक गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक वहीं खड़ी है। इसी दौरान जोशीमठ के नीचे से टनल बोरिंग के कारण एक बहुत बड़ा पानी का स्त्रोत फूटा जो कि जोशीमठ के नीचे के जल भंडार को खत्म कर रहा है। इस दौरान संभवत कंपनी में टनल का डिजाइन भी बदला है जिसकी कोई आकलन रिपोर्ट सामने नहीं आई है। परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय परिस्थितियां परियोजना को नकार रही हैं।

याद रहे 1979 में स्थानीय प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण पर भी आपत्ति जताई गई थी क्योंकि जोशीमठ एक बड़े लैंडस्लाइड पर बसा हुआ शहर है। अभी यहां बड़े निर्माण कार्य तेजी से चालू हैं। तो क्या हम मात्र प्राकृतिक आपदा को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी से अलग हटेंगे?

इतनी बड़ी परियोजनाओं में कोई सुरक्षा प्रबंध, अर्ली वार्निंग देने का कोई सिस्टम का ना होना!

उत्तराखंड राज्य बनते ही जल विद्युत परियोजनाओं और पर्यटन को आमदनी का स्त्रोत और विकास का द्योतक माना गया। मगर इन परियोजनाओं की लाभ हानि को तो एक तरफ कीजिए बल्कि इन बांध परियोजनाओं की स्वयं की सुरक्षा और इन परियोजनाओं में काम करने वाले मजदूरों और बांधों के टूटने की दशा में क्या हो? या बांध संबंधी अन्य दुर्घटनाओं के बारे में कोई सुरक्षा प्रणाली अब तक नहीं बनाई गई। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन  2010 में टिहरी बांध को संभालने में नाकामयाब रही। उसकी टनल में मजदूरों के मारे जाने की कितनी ही घटनाएं हुईं।

2012 में अस्सी गंगा में बादल फटने पर भी कोई अलार्म सिस्टम नहीं था। कल्दी गाड (9.5 मेगावाट) परियोजना और मनेरी-भाली चरण-2, दोनों ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम की परियोजनाएं थीं मगर पानी कल्दीगाड से मनेरी भाली तक पानी को आने में घंटे भर से भी ज्यादा समय लगा, तब भी मनेरी भाली दो के गेट नहीं खुल पाए थे। 2006 में भी मनेरी भाली परियोजनाओ से 6 लोग मारे गए अचानक से पानी छोड़ने के कारण। 2013 की आपदा ने उत्तराखंड सहित पूरे देश को हिला दिया था। संसार भर में से हर तरह की राहत यहां पहुंची। अफसोस अर्ली अलार्म सिस्टम तब भी मौजूद नहीं रहा और 7 फरवरी 2021 को भी नहीं था। 

तो इसका दोषी कौन है? 

हमने तपोवन गांव व रैणी गांव का दौरा किया जहां पर ऋषि गंगा परियोजना का पावर हाउस है। उस दौरे में रैणी गांव के लोगों ने कहा हमें कोई राहत सामग्री की जरूरत नहीं है। हमने ही यहां पर आने वाले लोगों को अपने घरों में ठहराया है। सुरक्षाबलों और अन्यों को जलाने के लिए लकड़ियां दी हैं। हमें बस यह बांध नहीं चाहिए। अब इस बांध को बंद होना चाहिए। 

ज्ञातव्य है कि 13.5 मेगावाट की ऋषि गंगा परियोजना में लगातार दुर्घटनाएं होती रही हैं। परियोजना प्रयोक्ता की 2011 में चट्टान धसकने से मृत्यु हुई। उसके बाद भी अनेक दुर्घटनाओं में परियोजना को काफी नुकसान पहुंचा। यह सब बताता है कि पूरे क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थितियां काफी नाजुक हैं।

माटू जनसंगठन की मांगे:-

1- नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन पर प्रथमदृष्टया सरकार की ओर से गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दायर किया जाए।

2- इस पूरे प्रकरण की जांच तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा एक रिटायर्ड हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में हो।

3- मजदूरों के परिवारों को प्रति परिवार एक स्थायी रोजगार व 50 लाख करमुक्त राशि दी जाए।

4- सर्वोच्च न्यायालय तुरंत इस पर स्वयं संज्ञान लेकर इस संदर्भ में लंबित मुकदमे को अंजाम दे।

5- दोनों परियोजनाएं बंद होनी ही चाहिए।


विमल भाई, दिनेश पंवार व भरत चौहान
माटू जनसंगठन


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