भारत में लॉकडाउन से बहुत पहले ही स्वीडन की पारुल शर्मा ने कोरोना की बीमारी के बारे में बताया था. होली के दिन जर्मनी से मेरे दोस्त हेनरिक अपने दोस्त पीटर के साथ बनारस आये. लॉकडाउन से पहले के मेरे सार्वजनिक जीवन के आखिरी समय तक वे उनके साथ पांच दिन यहां रहे. दोनों बर्लिन की Charitie Medical University के चिकित्साशास्त्र के विद्वान हैं. जून में हेनरिक की शादी है, वे न्योता देने आये थे मुझे और श्रुति जी को. मैंने हेनरिक से कहा कि मेरे पासपोर्ट के नवीनीकरण को दिल्ली में एक फर्जी मुकदमे के मद्देनजर मेरे शत्रु वर्ग ने फंसा रखा है और भारत में भी चूंकि जल्द ही लॉकडाउन करना होगा, तो शादी में शायद न आ सकूं. फ़िर पीटर, हेनरिक, कबीर और श्रुति के साथ मैंने एक खूबसूरत शाम गुज़ारी.
हम लोग उसी समय से शारीरिक दूरी बनाने और सैनिटाइज़ करने का काम शुरू कर दिये थे. श्रुति जी बहुत खुश थीं कि सफाई का विरोधी अघोरी लेनिन अब कई बार हाथ धोने लगा था.
मैं लॉकडाउन से पहले ही एकांतवास में चला गया था. एकांतवास की मुझे 2015 से आदत पड़ गयी है. जब फर्जी मुकदमे में फ़ंसाया गया, तब तक़रीबन तीन महीने बिना मोबाइल के लॉकडाउन में रहा. तभी से कुछ समय से साधना करने की प्रक्रिया से मैं जुड़ा. एकांतवास से प्रेम इस बात का लक्षण है कि हम में ज्ञान की खोज करने की प्रवृत्ति है, परंतु स्वयं का ज्ञान केवल तभी प्राप्त होता है जब हम भीड़भाड़ के बीच, संग्राम और हाट-बाजार के भीतर एकांतता का स्थायी बोध प्राप्त कर लेते हैं. यही स्थायी श्मशान वैराग्य है.
देश के प्रधानमंत्री और वाराणसी के सांसद नरेन्द्र मोदी जी टीवी पर आकर लॉकडाउन की घोषणा किये और कोरोना के विषाणु की भयावहता के बारे में उन्होंने बताया. जिन्दगी का यह एक विचित्र समय है. पहली बार काफी समय कबीर, श्रुति और परिवार के सदस्यों के साथ रहने का मौका मिला है. श्रुति और मैं समाज के कामों में लगे हैं, तो अब माता-पिता जी के लिए सामूहिक रसोई से खाना आ रहा है. इस बीच भूख के कारण मुसहरों के बच्चों द्वारा अकरी खाने का मामला उठाने के कारण हमारे साथी मंगला प्रसाद राजभर को फर्जी मुकदमे में फंसा दिया गया और जनसन्देश टाइम्स के संपादक विजय विनीत को जिलाधिकारी ने नोटिस दे दिया. वहीं, बनारस को दिल्ली और नोएडा में जीने वाले अभिषेक श्रीवास्तव को कॉर्पोरेट वाली मानसिकता ने वैसे ही झटका दिया है, जैसा काशी में महादेव के साथ किया गया. भुखमरी और प्रवासी मजदूरों की समस्या जटिल हुई है. कम्युनिस्ट, समाजवादी, कांग्रेसी और सामाजिक संगठन भोजन का इंतज़ाम कर रहे हैं. इन अनुभवों ने जीवन के बारे में मेरा नज़रिया ही बदल दिया है. ऐसा लगता है कि दुनिया एक साथ सिमटकर छोटी और फैलकर बड़ी हो गयी है. मेरा मतलब है कि मेरे चलने-फिरने का दायरा छोटा हो गया है, लेकिन घट बहुत कुछ रहा है.
अनेक खूबसूरत सिनेमा देने वाले, दिल से बहुत ही खूबसूरत इंसान इरफ़ान खान, हम लोगों को छोड़ कर चले गये हैं. उनकी यादों में ही मैंने साधना पर तीन घंटे का लम्बा समय दिया. तब अनेक विचार दिल और दिमाग में ऐसे आये, जैसे प्रकृति संवाद कर रही हो. जननी कुछ कह रही हो- कि इंसानों ने अपने मुनाफे व स्वार्थ के लिए प्रकृति को प्रदूषित किया, हिंसा और युद्ध किया, औरतों पर अत्याचार किये, लोगों का शोषण किया और आज प्रकृति के एक छोटे से विषाणु ने दुनिया को लॉकडाउन कर दिया है.
धर्म की बातें करते-करते धर्म के मर्म से उलट आपने कुछ लोगों के मुनाफे के लिए जातियों का निर्माण कर दिया और वसुधैव कुटुम्बकम् की जगह लोगों को ‘ये मेरे लोग और ये तेरे लोग’ वाला छोटे चित्त का बना दिया है. साधनास्थल पर ऊर्जा के एक स्रोत ने कहा कि साधक महात्मा बुद्ध को यही तो ज्ञान मिला था. उसने बताया था धम्म का मर्म और जीवन जीने का अष्टांगिक मार्ग. बुद्ध के साथ दार्शनिक रूप से विरोधी आदि शंकाराचार्य को चांडाल बन कर ज्ञान दिया था, किन्तु तुम लोग सब कुछ भूलकर हमें भी अपने मुनाफे के लिए बेच रहे हो? कहां है तुम्हारे परमाणु बम की ताकत? प्रकृति के एक छोटे से विषाणु से लॉकडाउन हो गये?
साधना का दीपक हिलने लगा था. दिल और दिमाग में हलचल हो रही थी. पाखंडियों के साथ मुनाफाखोरों पर गुस्सा आ रहा था. और तभी जैसे बटुक भैरव ने कहा कि माँ को ध्यान से देखो. मैं क्रिं क्रिं का जाप करने लगा. माँ कह रही थी मैं ही प्रकृति हूं और देखो, मैंने पुरुषों के सिर की माला पहन रखी है, क्योंकि पुरुषों के लालची दिमाग ने प्रकृति के साथ औरतों पर अत्याचार किये हैं. अपनी ताकत और सत्ता के लिए हिंसा और युद्ध फैलाया है. इसीलिए तो महादेव ने पुरुषों के अहंकार को खत्म करने के लिए मेरे कदमों में आकर मेरे (प्रकृति) गुस्से को शांत किया था. किन्तु आज तो महादेव के प्रिय काशी में उनके फक्कड़पन के खिलाफ बाजारीकरण किया जा रहा है! मुझे लगा कि कहीं कारण (सोमरस) तो नहीं लगा लिया है? किन्तु कारण तो था ही नहीं. तभी ऊर्जा ने कहा कि अब तो दुनिया के लोग विषाणु से लड़ने के लिए अपने हाथ में कारण (सोमरस) लगा रहे हैं.
साधना से उठ कर सोच रहा था कि महादेव ने प्रेम विवाह करते हुए श्रेष्ठता के अहंकार के प्रतीक दक्ष प्रजापति का वध क्यों किया? श्मशान को क्यों चुना? महादेव और माँ का रास्ता जातिवाद और पितृसत्ता के द्वारा लोगों की गरिमा और आज़ादी को ख़त्म करने के खिलाफ़ रहा.
जब तक श्रेष्ठता के अहंकार के साथ लोगों को गुलाम बनाने वाली प्रक्रिया और प्रकृति के खिलाफ़ अत्याचार को ख़त्म करने की शुरुआत नहीं की जाएगी, तब तक हम केवल लक्षण से लड़ते रहेगे और विषाणु को हरा नहीं पाएंगे.
(आवरण तस्वीर मशहूर चित्रकार एस. एच. रज़ा की पेंटिंग “प्रकृति और पुरुष” है )
लेलिन जी का कालम छान घोटकर
बेहद अद्भुत है। सराहनीय।
दार्शनिक चिंतन सदैव धर्म की मांग करता रहा है।
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