खबर है कि सीबीआइ की जोधपुर स्पेशल कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सहित कुछ लोगों पर तुरंंत मुकदमे दायर करने का आदेश दिया है. यह उदयपुर के लक्ष्मी विलास पैलेस होटल को कौड़ी के मोल बेच देने जैसे कारनामे के लिए किया गया है. श्री शौरी के विनेवेश मंत्री होते यह काम हुआ था.
दुनिया जानती है, आज़ादी के बाद नेहरू सरकार ने बड़ी मुश्किल से सार्वजानिक पूँजी का एक आर्थिक मंच तैयार किया था. यह सब उनके समाजवादी सोच का नतीजा था, जिसका नजरिया था, मुल्क की सारी मिलकियत किसी निजी हाथ में नहीं, जनता के हाथ में होनी चाहिए. रेल, जहाज से लेकर बड़े-बड़े कल-कारखाने और वह सब, जो कुछ खास है, जनता की मिल्कियत होगी. इसी का नतीजा था कि लक्ष्मी विलास होटल जैसे उपक्रम सार्वजानिक -सरकारी क्षेत्र में थे.
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व वाली भाजपा सरकार ने विनिवेश मंत्रालय बना कर औने-पौने कीमत पर सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रमों को बेच डाला. मजदूर-किसान और अन्य जन-पक्षधर लोग विरोध करते रहे, लेकिन फील गुड और इंडिया शाइनिंग का शाइन बोर्ड लगा कर अटल बिहारी सरकार ने जनता की पूँजी को व्यक्तिगत पूँजी में तब्दील कर दिया.
अब लक्ष्मी विलास होटल का मामला सामने आया है. आज भाजपा की सरकार है, लेकिन कितना बचाव कर सकती थी. सीबीआइ के स्पेशल कोर्ट के फैसले से जो रहस्य उभर कर आया है वह भयावह है. जिस वक्त होटल बेचा गया था, विनिवेश विभाग ने उसकी कीमत 6 .62 करोड़ तय की थी. ललित सूरी के भारत होटल लिमिटेड ने कुछ लाख अधिक (साढ़े सात करोड़) देकर वह होटल खरीद लिया. जांच से पता चला है कि विनिवेश करते समय भी होटल की जमीन का मूल्य एक हजार रुपये प्रति वर्गमीटर था. उस हिसाब से केवल जमीन का दाम, उस वक़्त भी, 150 (डेढ़ सौ) करोड़ रुपये था. भव्य पैलेस की कीमत अलग.
इस तरह सीबीआइ कोर्ट ने पाया कि उक्त होटल की कीमत ढाई सौ करोड़ रुपये से अधिक की होनी चाहिए थी. यह कम से कम कीमत है. अब इस संपत्ति को केवल साढ़े सात करोड़ में बेच देना भ्रष्टाचार और लूट नहीं तो और क्या है?
अरुण शौरी नामी-गिरामी पत्रकार रहे हैं. बोफोर्स मामले पर अंधाधुंध लेख लिख कर वह सुर्ख़ियों में आए थे. भाजपा को इस तरह के तीसमार खान खूब भाते हैं. अटल जी ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया. विनिवेश विभाग दिया. शौरी जी ने देश की दौलत को अमीरों की झोली में डाल दिया. कोई भी जान-समझ सकता है कि इस तरह के फैसलों की असली कमाई का विनिवेश कहाँ और कैसे होता है. इस पर कुछ कहना खतरे से खाली नहीं है, इसलिए चुप रहूँगा.
अरुण शौरी पर मुकदमा होगा. होना चाहिए. नेहरू की सरकार होती तो उन्हें टेलीफोन या बिजली के खम्बे पर हैंग कर दिया जाता. (दरअसल नेहरूजी ने ऐसे लोगों को ऐसी सजा देने की इच्छा जाहिर की थी!) लेकिन फिलहाल शौरी पर मुकदमा होगा. फैसला आने में अभी वक़्त लग सकता है.
लेकिन उन अटलबिहारी का क्या होगा ,जो अब दिवंगत हो चुके हैं? अटल ही थे उस वक़्त के प्रधानमंत्री. असली व्यक्ति तो अटलजी थे. नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में उस अटल बिहारी को भारत-रत्न से नवाजा था. गोधरा दंगों के वक़्त इन्हींं अटल बिहारी ने नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने का सार्वजनिक उपदेश दिया था. ठीक वही समय था, जब अटल बिहारी अपने राजधर्म का पालन करते हुए मुल्क की अरबों की संपत्ति को केवल साढ़े सात करोड़ में लुटाये जा रहे थे.
वक़्त का तकाजा है कि सभी विनिवेश मामलों की त्वरित जांच हो और जिस तरह लक्ष्मी विलास होटल को उदयपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट चेतन देवरा को तुरंत अपने अधिकार में लेने को कहा गया है, उसी तरह तमाम विनिवेश मामलों को कुर्क कर सरकारी संपत्ति के रूप में लिया जाना चाहिए.
अरुण शौरी पर मुकदमा जरूर हो, लेकिन राष्ट्रपति या जो भी समर्थ शक्ति हो उन्हें अटल बिहारी का भारत-रत्न अवार्ड भी वापस लेना चाहिए. ऐसे देशद्रोहियों को भारत रत्न नहीं कहा जाना चाहिए.
प्रेमकुमार मणि की फेसबुक दीवार से साभार