अब हवा तरंगों के ज़रिये
यही बात लोगों से कही जाएगी
वही बातें जो 15 अगस्त 2014 को
भाषण देते हुए लाल किले से कही गई थीं
जिसे 5 सितंबर 2014 को
देश भर के लाखों स्कूल के
क्या आपने ऐसे किसी
नेता को कभी किसी भूगोल में देखा है
इतिहास में कभी हुआ हो ऐसा सुना है
जो चुनाव हो जाने के बाद भी
लगातार चुनावी भाषण देता फिरे
मानो इसी काम के लिए उसे चुना गया हो
2024 तक बने रहने की बात
वह इस तरह करता है जैसे
2019 का चुनाव वह किसी बड़े मैदान में
तमाम लोगों को इकट्ठा कर
हाथ उठवा के कर लेगा
और जैसी घोषणाएं की जा रही हैं
लाल किले से लेकर बच्चों के स्कूल तक
लगता है उसे सच साबित करने के लिए
किसी भी हद तक जाने की तैयारी कर ली गई है
देखी नहीं वो तस्वीर आपने दूर दक्षिण की
जिसमें एक महिला शिक्षक
पांचवीं के बच्चे के साथ ज्यादती कर रही थी
उसे बाहर जाने नहीं दे रही थी
वह घबड़ाई हुई नाराज़गी में कह रही थी
नौकरी लेगा क्या मेरी
चुपचाप बैठ भाषण सुन
यह कैसी मजबूरी पैदा की जा रही है
कि पेशाब करने तक को न जाने दिया जाए
भय जो मानवीयता के सामान्य रूप
को भी सामने आने से रोक दे
वही भय उसके शासन को बनाए रखेगा
जबतक यह भय होता है
निज़ाम को कोई भय नहीं होता है
लेकिन जिस जगह भय नहीं होता है
वही जगह एक दिन उसका वधस्थल बनती है
वे बच्चे जो सो गए थे वहीं फ़र्श पर बेसुध
उम्मीद वहां है
उनकी मासूमियत को बचाओ
अनुशासन को दरकिनार कर जो दिखी
उनकी बेखौफ़ लापरवाही
उनका मनमानापन उसे बचाना होगा
क्योंकि अनुशासन से नहीं
इन्हीं मौजों से
टूटती है भय की घेराबंदी
और केंद्रीय विद्यालय की कक्षा दस
की वह लड़की
जिसने भरी सभा में
पूरी दुनिया के सामने
पूछ दिया था कि लोग कहते हैं कि
आप हेडमास्टर की तरह हैं
आप बताइये कि आप सचमुच में क्या हैं
सवाल सुनकर वह अंदर से बेचैन हो उठा था
लेकिन उस लड़की ने जिस सहजता से
एक बड़ा सवाल उठा दिया था
उस सहजता को बचाए रखना
लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए जरूरी है
और हां पांचवीं कक्षा के उस लड़के को भी मत भूलिये
जिसका जि़क्र कविता में पहले आ चुका है
उसके माथे पर जो जि़द की लकीरें थीं
वह आगे जो शक्लें ले सकती हैं
उस पर विचार कीजिए
उन लकीरों का बचा रहना
आपकी संभावनाओं का बचा रहना है
कोशिश कीजिए कि जब तक वह
ढूंढता हुआ वैसी जगहों तक पहुंचे
आप उसके पहले वहां पहुंच जाएं
इतिहास उन्हीं जगहों से होता हुआ आगे बढ़ता है।
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