कुमार मुकुल की एक उपयोगी कविता

जो हलाल नहीं होता…मेरे सामने बैठामोटे कद का नाटा आदमीएक लोकतांत्रिक अखबार कारघुवंशी संपादक हैपहले यह समाजवादी थापर सोवियत संघ के पतन के बादआम आदमी का दुख इससे देखा नहीं …

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सबसे अच्‍छा होता है मौन से निकला सवाल…

अविनाश ने मोहल्‍ले में मेरे सुबह के पत्र को जगह दे ही दी, कम से कम टिप्‍पणी में ही सही। उसका जवाब भी दिया है…जवाब क्‍या सवाल है बाकायदा। अब …

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अविनाश भाई, आपका अविकल पत्र आखिर मीडियायुग पर एक टिप्‍पणी के रूप में आया…यह बात समझ में नहीं आई कि आपने जनपथ पर टिप्‍पणी क्‍यों नहीं की, जबकि दोनों ही …

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जो हलाल नहीं होता, वो दलाल होता है…

भाई पंकज पराशर ने ठीक ही कहा था, कि मोहल्‍ले में इतना लोकतंत्र नहीं कि वहां की जम्‍हूरिया उस पत्र को प्रकाशित कर सके…मैं अब तक अपने जनपथ पर इसे …

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एक प्रयास के लिए एक अपील…

साथियों,बहुत छोटे में बात रखना चाहूंगा। दरअसल, पिछले काफी वक्‍त से दिल्‍ली में काम कर रहे कुछ पत्रकार, लेखक इस बात को बहुत शिद्दत से महसूसते रहे हैं कि कम …

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हर सवाल का जवाब…नहीं मिल सकता…

पिछले कई दिनों से मैं अपने चिट्ठे को अपडेट नहीं कर रहा हूं, कुछ व्‍यस्‍तताओं की वजह से और कुछ दिमागी उलझनों के कारण। खैर, पिछले तीन दिनों के भीतर …

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बहाना चाहे कुछ भी हो, बात हो…

दोस्‍तों, अच्‍छी बात है कि मेरे विवादास्‍पद पोस्‍ट की भाषा के बहाने वैयक्तिक स्‍तर पर ही सही, भाषा को लेकर चिट्ठाकारों के बीच कुछ सनसनी पैदा हुई है। मेरी मंशा, …

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चौधरी की भाषाई किड़िच-पों

साथियों, दो दिन पहले इस ब्‍लॉग पर किन्‍हीं सज्‍जन जितेंद्र चौधरी का कमेंट आया कि आपके ब्‍लॉग को नारद पर से हटाया जा रहा है। दरअसल, वह टिप्‍पणी मेरे एक …

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75 वर्ष बनाम डेढ़ घंटे: हिंदी साहित्य उर्फ़ पेज थ्री संवेदना

27 जनवरी 2007 को एक अद्भुत घटना घटी…पता नहीं यह पहले ही हो गया या हमें पता बाद में चला, एक समूचा शहर अपनी तमाम संवेदनाओं, दावों और मानवीयता के …

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स्मृतिशेष: कमलेश्वर

कमलेश्वर जी के निधन की ख़बर मुझे तीन घंटे बाद मिली…और आश्चर्य मानिए कि जिस सकते में मैं था उससे ज्यादा अफ़सोस था कि तीन घंटे ग़ुज़र गए राजा निरबंसिया …

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