दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे जीएन साईबाबा इन दिनों नागपुर सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. साईबाबा के वकील आकाश सोर्डे ने जेल अधीक्षक अनूप कुमरे को एक शिकायत भरा पत्र लिख कर बताया है कि जेल प्रशासन की अनुमति मिलने के बाद वे जो सामान खुद देने के लिए गये थे उनमें से अधिकतर चीजें जेल के सुरक्षाकर्मियों ने लेने से मना कर दिया है.
आकाश सोर्डे ने लिखा है कि 24 दिसंबर दिन में करीब 1 बजे अपने मुवक्किल प्रोफेसर जीएन साईबाबा- जो कि शारीरिक तौर पर विकलांग, व्हील चेयर पर हैं और कई गंभीर बीमारियों ग्रस्त हैं- के निर्देश पर जेल प्रशासन की अनुमति और जानकारी के बाद भेजी गई सूची के अंतर्गत मानवता के आधार पर खुद चल कर कुछ जरूरी समान देने गया था, सुरक्षा जांच के बाद वो सामान उन तक पहुँचाने के लिए सुरक्षा कर्मियों को दिया था किंतु जेल के सुरक्षा अधिकारियों ने सामानों की प्राप्ति का लिखित पर्चा देने से मना कर दिया और कहा कि वे केवल सूची में दर्ज उन वस्तुओं के आगे टिकमार्क लगायेंगे जो वे मेरे मुवक्किल को बाद में देंगे.
आकाश सोर्डे ने लिखा:
आपके सुरक्षा अधिकारियों ने जो सामान लेने से इंकार किया है उनमें सबसे जरूरी मेडिकल किट, ठंड से बचने के लिए टोपी और पढ़ने लिखने की वस्तुएं हैं.
उन्हें जो तीन किताबें देने के लिए दी गई थीं उनमें हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित गौतम भाटिया की किताब ट्रांसफारमेटिव कंस्टीटूशन, तमिल बेस्ट सेलर ‘अम्मा’ का अंग्रेजी अनुवाद और मिर्ज़ा वाहिद की किताब ‘टेल हर एव्रीथिंग’ थी जिसमें एक डॉक्टर अपनी बेटी को पत्र लिख कर सब कुछ कह देने की बात कहता है. ये किताबें और 200 सादे कागज जो कि एक बुद्धिजीवी को कुछ लिखने, नोट करने के लिए चाहिए और इंडिया टुडे मैगज़ीन को सुरक्षा अधिकारियों ने साईबाबा को देने से इंकार कर दिया.
एडवोकेट आकाश सोर्डे ने अपने पत्र में लिखा है कि जेल के सुरक्षा अधिकारियों ने इस कड़ाके के ठण्ड में साईबाबा के लिए दिए गये टोपी, रुमाल, तौलिया और टी शर्ट तक उन्हें देने से मना कर दिया है जबकि जो सामान जेल को दिये गये वह सूची जेल अधीक्षक के अनुमति के बाद साईबाबा ने अपने वकील को भेजी थी.
आकाश सोर्डे ने जेल अधीक्षक से इसके पीछे का कारण पूछते हुए लिखा है कि जब आपकी अनुमति और दया भाव के बाद ये सूची भेजी गयी तब क्यों उन्हें ये वस्तुएं नहीं दी गईं?
आकाश सोर्डे ने अपने पत्र में लिखा है:
मेरा मुवक्किल जो सिर की खुजली और खुश्की के कारण परेशान हैं, उन्हें बाल धोने के लिए दिए गये शैम्पू तक को जेल अधिकारियों ने लेने से इंकार कर दिया.
साईबाबा के वकील आकाश सोर्डे ने अपने पत्र के साथ सामानों की सूची भी संलग्न की है।
जेलों में बंद तमाम राजनैतिक कैदियों के साथ यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ और सिपर मामले को याद कीजिए और हाल ही में इसी तलोजा जेल में कैद गौतम नवलखा का चश्मा जब चोरी हुआ और तीन दोनों तक उन्हें घरवालों को इसकी सूचना तक नहीं देने दी गयी और फिर जब डाक से उनके लिए नया चश्मा भेजा गया तो जेल प्रशासन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए उसे लेने से मना कर दिया था.
इस घटना के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि जेल अधिकारी मानवता भूल गये हैं और जेल अधिकारियों को कैदियों की जरूरतों को समझने और मानवता दिखाने के लिए कार्यशाला का आयोजन करने की जरूरत है.
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साईबाबा के वकील आकाश सोर्डे द्वारा नागपुर जेल अधीक्षक अनूप कुमरे लिखे गये पत्र और सामानों को सूची यहां पढ़ सकते हैं.
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