भीमा कोरेगांव: गिरफ़्तारियों के दो साल बाद जेल में मरने को अभिशप्त बुजुर्गों पर NAPM की अपील


भारत के मानवाधिकार उल्लंघन के इतिहास में 28 अगस्त, 2018 एक बहुत महत्वपूर्ण दिन बन गया है। उस दिन सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद स्थित अपने घर से पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसी दिन दिल्ली से गौतम नवलखा, मुंबई से अरुण फेरेरा व वर्णन गोंजाल्वेस और हैदराबाद से वरवरा राव की भी गिरफ़्तारी हुई। गौतम नवलखा को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कुछ समय तक राहत दी गयी, मगर कुछ महीनों पूर्व उनकी भी गिरफ़्तारी हो गयी।

‘भीमा कोरेगांव केस’ मे बेबुनियाद और झूठे तथ्य गढ़कर आपराधिक प्रकरण तैयार किया गया  है। यह गिरफ्तारियाँ, भीमा कोरेगांव में दलितों पर हिंसा के सूत्रधार हिंदुत्ववादी लोग मिलिंद एकबोटे व संभाजी भिड़े के आपराधिक कृत्य से ध्यान हटाने और सरकार के आलोचक सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबाने का शर्मनाक प्रयास है।

इस प्रकारण में अभी तक कुल 12 जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है जिसमें उपरोक्त लोगों के अलावा शोमा सेन, सुरेन्द्र गड्लिंग, सुधीर धवले, रोना विल्सन, महेश राउत, डॉक्टर आनंद तेलतुम्बडे और हनी बाबु भी शामिल है। इन सभी पर 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव (पुणे के करीब एक शहर) में ‘हिंसा भड़काने’ का झूठा आरोप लगा है। ज्ञात हो कि 1 जनवरी, 2018 का दिन भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200 वीं वर्षगांठ थी। सन् 1818 के इस युद्ध में दलितों ने पेशवाओं पर जीत हासिल की थीI दलित आन्दोलन के लिए यह एक महत्पूर्ण दिन है। भीमा कोरेगांव में हजारों लोग इस दिन इकठ्ठा होते हैं।

उल्लेखनीय है कि गिरफ्तार किए गए सभी लोग प्रगतिशील विचारधारा को मानते ही नहीं, अपितु जीते भी हैं! दुखद है कि कवि, वकील, अध्यापक, सामाजिक व मानव अधिकार कार्यकर्ता के रूप में दशकों से सक्रिय इन सबको कैद करने की खुली साजिश देखकर भी, न्यायालय न ही इस झूठे प्रकरण की खात्मा कर रही है और न ही इन्हें जमानत दे रही है! कोविड महामारी के दौरान भी ऐसे कई बुजुर्ग व्यक्तियों को जेेल में बंद रखना इस फासीवादी सरकार की क्रूरता को दर्शाता है! इन 12 लोगों के अलावा, ‘जांच’ के नाम पर NIA और भी कई मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों को प्रताड़ित कर रही है! 

सुधा भारद्वाज छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ लगभग 35 वर्षों से  काम कर रही थींं। उन्होंने लगातार आदिवासियों और मजदूरों के मुद्दे उठाए। आवश्यकता महसूस होने पर वकालत की पढ़ाई पूरी की। एक सफल मानवाधिकार वकील बनकर उन्होंने हजारों परिवारों को हक दिलाने का काम किया। छत्तीसगढ़ के भिलाई आदि फैक्ट्री एरिया के मजदूर हों  या आदिवासी समाज के हों,  वह आज उनकी कमी बहुत महसूस कर रहे हैं।  हम देश भर के जन आंदोलन  भी उनके साथ हैं।आज के दमन के माहौल में हम सुधा और भीमा कोरेगाँव केस में गिरफ्तार हुए सभी लोगों की बेहद कमी महसूस करते हैं।जेल में विचाराधीन बंदियों को दो साल तक रखना, जानबूझकर जमानत देने में देरी करना, केस में ट्रायल शुरू करने के बजाय उनके स्वास्थ्य को गंभीर संकट में धकेलना, कैदियों के अधिकारों का भी घोर उल्लंघन है। वैश्विक महामारी के समय जेलों में भीड़-भाड़ की स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य पर खतरा और बढ़ा हुआ है।

हाल ही में हमने देखा कि देश-दुनिया भर के हजारों लोगों के दबाव के बाद ही, सरकार ने 80 साल के बीमार वरवरा राव को एक अच्छे अस्पताल में भर्ती किया! तब तक उनकी ज़िंदगी को ही जोखिम में डाल दिया! अभी सुधा भारद्वाज के संदर्भ में खबर है कि जेल की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार वो इस्केमिक हार्ट डिजीज से पीड़ित हैं, जो हृदय की धमनियों के संकुचित होने के कारण होती हैI इस बीमारी में हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह की कमी होती है जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। यह बेहद चिंताजनक है।

उनकी बेटी मायशा के अनुसार 28 अगस्त, 2018 को हिरासत में लिए जाने से पहले सुधा भारद्वाज को दिल से जुड़ी कोई शिकायत नहीं थी। यद्यपि उनको मधुमेह और रक्तचाप है और कुछ साल पहले तपेदिक भी था, जिस कारण उनको कोविद के संक्रमण से सामान्य से अधिक खतरा है। उनकी बैरक में रहने वाले अन्य बंदियों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के रूप में केवल एक मास्क दिया गया है। भीड़भाड़ वाले बैरक में एक दूसरे से अनिवार्य दूरी बनाये रखना असंभव है। बायखुला जेल ने कहा है कि शारीरिक दूरी के मानदंडों को बनाए रखने के लिए जेल में अधिकतम 175 कैदी  ही रह सकते है – फिर भी, 28 जुलाई तक इस जेल में 257 कैदी थे। इस जेल के डाक्टर और अधीक्षक को कोरोनोवायरस पॉसिटिव पाया गया था।यह हैरत की बात है कि सुधा की विशेष जमानत याचिका पर पर ढाई महीने में 11 बार तारीख लगने के बावजूद भी अभी तक निर्णय नहीं हुआ हैI

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, डॉ. आनंद तेलतुम्बडे, सुरेन्द्र गड्लिंग, वरवरा राव, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वर्नन गोंजाल्वेस, सुधीर धवले,  रोना विल्सन, महेश राउत, हनी बाबु की गिरफ़्तारी और उनके ऊपर लगाए गए बेबुनियाद आरोपों की निन्दा करता है ! हम इन सभी और देश भर के तमाम राजनीतिक कैदियों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं, जो UAPA और ‘राजद्रोह’ जैसे दमनकारी कानूनों के शिकार बन रहे हैं !

इस प्रकरण में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है। यह मात्र गरीब, दलित, पीड़ित शोषित समाज, आदिवासी, किसान, मजदूर समाजों की चिंताओं और सवालों से ध्यान हटाने और राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पटल पर उन चिंताओं को लाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों व मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के स्वयं के मानव अधिकारों का हनन है। उन्हें पीड़ित करने और उनके मनोबल को तोड़ने की पूरी साजिश है। आज हर उस आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है जो इस कॉर्पोरेट-हिन्दुत्ववादी सरकार को चुनौती दे रहे है! मगर जरूरी है कि आम लोगों को सरकार की इन साजिशों का पोल-खोल करके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, अमन-शांति-न्याय के मुद्दों पर अडिग रहना होगा!

हम माँग करते हैं कि:

·      भीमा कोरेगांव केस के सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए। खासकर कोविड-19 के खतरे को देखते हुए उन्हे तत्काल जमानत दी जाए।

·      भीमा कोरेगांव हिंसा के सूत्रधार मिलिंद एकबोटे व संभाजी भिड़े पर कड़ी कार्यवाही की जाए।

·      जेल अधिकारियों से अपील है कि वे जेलों में भीड़ कम करें, सभी बंदियों का नियमित रूप से कोविड परीक्षण करें और जेल में कोविड से बचाव के सारे उपाय करें।

·      UAPA और राजद्रोह जैसे दमनकारी कानूनों को खारिज किया जाय।


(NAPM की प्रेस विज्ञप्ति)


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