शिक्षकों के शिक्षण-प्रशिक्षण में क्या बदलाव लाना चाहती है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020


किसी भी देश के विद्यार्थियों का भविष्य उसके शिक्षकों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इस तथ्य को विज्ञान-सम्मत शोध व जनसामान्य दोनों का समर्थन प्राप्त है। दुर्भाग्य से भारत में विद्यालयी व उच्च शिक्षा दोनों के शिक्षकों की गुणवत्ता पर लगातार प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। ऐसे में यह अनिवार्य हो जाता है कि हम अपने सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों को न केवल शिक्षक बनने के लिए आमंत्रित करें, वरन् उन्हें उपयुक्त प्रशिक्षण भी दें।

इस तथ्य को रेखांकित करते हुए अभी प्रकाशित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि ’’हमारे छात्रों और हमारे राष्ट्र के लिए सर्वोत्तम संभव भविष्य सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों की प्रेरणा और सशक्तिकरण की आवश्यकता है।’’ इस संदर्भ में शिक्षा नीति स्वीकारती है कि शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए और परिणामस्वरूप शिक्षकों की गुणवत्ता वांछित मानकों को प्राप्त नही कर पा रही है। ऐसे में जनमानस द्वारा यह प्रश्न पूछना स्वाभाविक है कि ’’शिक्षक शिक्षा में क्या बदलाव चाहती है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020।’’

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षक शिक्षा पर चर्चा तीन शीर्षकों ’’शिक्षक’’, ’’शिक्षक शिक्षा का दृष्टिकोण’’ तथा ’’शिक्षक शिक्षा’’ के अन्तर्गत की गयी है। इस नीति में शिक्षक शिक्षा में पहला बड़ा बदलाव शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की अवधि व प्रकृति को लेकर है। वर्तमान में चल रहे 17 शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जगह इस नीति में तीन कार्यक्रमों की चर्चा की गयी है। पहला- चार वर्षीय एकीकृत बीएड कार्यक्रम, जो ’’डुअल मोड’’ का होगा अर्थात विद्यार्थी को प्रशिक्षित शिक्षक की उपाधि के साथ एक विशेष विषय में स्नातक डिग्री भी मिलेगी। दूसरा- द्विवर्षीय बीएड पाठ्क्रम। इस पाठ्यक्रम में विषय विशेष में स्नातक डिग्री (3 वर्षीय) हासिल कर चुके विद्यार्थी प्रवेश ले सकेंगे। इस कड़ी में तीसरा कार्यक्रम एक वर्षीय बीएड होगा, जिसमें विषय विशेष में 4 वर्ष की स्नातक डिग्री प्राप्त विद्यार्थी प्रवेश ले सकेंगे। इन तीनों पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए उत्कृष्ट उम्मीदवारों को आकर्षित करने की दृष्टि से यह नीति छात्रवृत्तियों की व्यवस्था दिये जाने का वादा भी करती है। इसके साथ ही यह नीति संस्थानों को अल्प अवधि के स्थानीय शिक्षक कार्यक्रम चलाने का विकल्प भी देती है। नीति में पारंपरिक व्यवस्था के साथ ओपन डिस्टेंस लर्निंग के माध्यम से भी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की भी व्यवस्था है।

शिक्षक शिक्षा में इंगित दूसरा बड़ा बदलाव शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करने वाली संस्थाओं की प्रकृति से है। नीति यह मंतव्‍य रखती है कि शिक्षक शिक्षा को केवल बहु-विषयक संस्थानों में ही संचालित किया जाना चाहिए। इस मंतव्‍य के दृष्टिगत यह नीति वर्ष 2030 तक सभी एकल शिक्षक शिक्षा संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों के रूप में बदलने का लक्ष्य रखती है। बुनियादी शैक्षिक मानदंडों को पूरा न करने वाले शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को गुणवत्ता की ओर अग्रसर होने के लिए यह नीति एक वर्ष का समय देती है। एक वर्ष के समय के उपरान्त भी सुधार न करने वाले संस्थानों के खिलाफ यह नीति कठोर कार्यवाही की अनुशंसा भी करती है।

शिक्षक शिक्षा को लेकर इस नीति में तीसरा बड़ा बदलाव शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश व पाठ्यचर्या को लेकर नजर आता है। नीति शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित योग्यता परीक्षणों के माध्यम से किये जाने का प्रस्ताव देती है। यह नीति शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ’’समाजशास्त्र, इतिहास, मनोविज्ञान, प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा, बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान, भारत से जुड़े ज्ञान और इसके मूल्यों/लोकचार/कला/परंपराएं’’ आदि के समावेशन पर बल देती है। शिक्षक शिक्षा में तकनीकी के प्रभावी प्रयोग पर भी इस नीति में विशेष आग्रह है। पाठ्यचर्या को लेकर एक अन्य गंभीर प्रयास के तहत यह नीति वर्ष 2021 तक एक नवीन और व्यापक अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफटीई) तैयार किये जाने की भी संस्तुति करती है। ज्ञातव्य रहे कि शिक्षक शिक्षा में एनसीएफटीई 2009 के बाद से ऐसी कोई पहल नहीं की गयी है।

चौथे बदलाव के रूप में इस नीति में सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भी सुध ली गयी है। नीति में सेवारत शिक्षकों तथा विद्यालयों के प्रधानाचार्यो दोनों से प्रत्येक वर्ष में 50 घण्टे के सतत् व्यावसायिक विकास (सीपीडी) कार्यक्रमों में भाग लेने की अपेक्षा की गयी है। सेवारत प्रशिक्षण के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कार्यशालाओं के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी प्रशिक्षण देने की बात इस नीति में है। एक अन्य सुझाव के तहत इस नीति में उच्च शिक्षा के शिक्षकों को भी सतत् व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों के दायरे में लाया गया है। इस नीति में एक नयी पहल के रूप में शिक्षकों के मार्गदर्शन व सलाह (मेंटरिंग) के लिए एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित करने की मंशा जाहिर की गयी है। इस कार्यक्रम/मिशन में उत्कृष्ट कोटि के वरिष्ठ व सेवानिवृत्त संकाय सदस्यों को जोड़ने की योजना है।

नीति में पांचवां बड़ा बदलाव शिक्षक शिक्षा की नियामक संस्था ’’राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद’’ की भूमिका को लेकर है। यह नीति ’’एनसीटीई’’ की रेगुलेटरी पावर को राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद (एनएचईआरसी) को सौंपने की सिफारिश करती है। नीति एनसीटीई से सामान्य शिक्षा परिषद् (जीईसी, जो स्थापित की जाएगी) के सदस्य के रूप में पाठ्यक्रम संरचना, शैक्षणिक मानकों को निर्धारित करने, विभिन्न विषयों के शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपेक्षा रखती है।

नीति में छठा बदलाव विशिष्ट शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा को शिक्षक शिक्षा के विमर्श के दायरे में लाया जाना है। विद्यालयी शिक्षा में दिव्यांग व सीखने में कठिनाई वाले विद्यार्थियों की शिक्षा हेतु यह नीति सामान्य शिक्षकों को विशेष शिक्षकों के रूप में तैयार करने पर बल देती है। इस हेतु शिक्षकों को सेवाकालीन और पूर्व-सेवाकालीन मोड में विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध किये जाने की सिफारिश की गयी है। नीति में एनसीटीई और आरसीआई के बीच व्यापक तालमेल पर भी जोर है। इस नीति में ’’वर्ष 2005 तक स्कूल और उच्चतर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50ः विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा का अनुभव’’ का लक्ष्य रखा गया है। इस परिप्रेक्ष्‍य में यह नीति व्यावसायिक शिक्षा के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण की प्रासंगिकता भी स्वाकारती है तथा इस ओर उपयुक्त कदम उठाये जाने की वकालत करती है।

एक अन्य स्वागत योग्य बदलाव के रूप में यह नीति किसी भी विषय के नये पीएचडी प्रवेशकर्ताओं को प्रशिक्षण अवधि के दौरान शिक्षा/अध्यापन सम्बन्धित पाठ्यक्रम लेने का प्रस्ताव देती है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से यह नीति उन्हें शैक्षणिक प्रक्रियाओं, पाठ्यक्रम निर्माण व मूल्यांकन प्रणाली आदि का ज्ञान दिये जाने की योजना प्रस्तुत करती है। नीति में पीएचडी विद्यार्थियों हेतु वास्तविक शिक्षण अनुभव के न्यूनतम घंटे पूर्ण करने की भी शर्त रखी गयी है। इन बदलावों के साथ यह नीति शिक्षकों के लिए व्यावसायिक मानकों का निर्धारण, उच्चतर शिक्षा संस्थानों के पास सघन जुड़ाव के साथ काम करने के लिए विद्यालयों और विद्यालय परिसरों का एक नेटवर्क, शिक्षा विभाग में संकाय सदस्यों की प्रोफाइल में विविधता जैसे प्रयास प्रारम्भ किए जाने की सिफारिश भी करती है।

शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में शिक्षा नीति 2020 द्वारा सुझाये गये यह सभी बदलाव स्वागत योग्य हैं, परन्तु पूर्व के तमाम अनुभव यह बताते हैं कि अच्छी नीतियां या तो क्रियान्वयन के स्तर पर दम तोड़ देती हैं या लेटलतीफी का शिकार हो जाती हैं। हम देश का भविष्य तय करने वाली शिक्षक शिक्षा के साथ ऐसा नहीं होने दे सकते। आशा की जा सकती है कि शिक्षा नीति में सुझाये गये बदलावों के आलोक में नीति नियन्ताओं का अगला पड़ाव ’’शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी नीति के क्रियान्वयन के तात्कालिक, मध्यावधि व दीर्घकालिक लक्ष्य तय करना तथा उन्हें प्राप्त करने के तरीकों का स्पष्ट उल्लेख किया जाना होगा। इस क्रियान्वयन योजना के निर्माण व प्रकाशन से यह संदेश भी जाएगा कि शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की ’’नीति’’ व ’’नीयत’’ में कोई विरोधाभास नही है।

किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सबसे पहले वहां की शिक्षक शिक्षा व्यवस्था को ही सुधरना होता है, आशा की जाती है कि शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में इस सिद्धान्त की अनदेखी नहीं की जाएगी।


लेखक चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के शिक्षा विभाग के पूर्व डीन और प्रमुख हैं तथा कॉमनवेल्थ अकेडमिक फ़ेलो हैं


About प्रदीप कुमार मिश्र

View all posts by प्रदीप कुमार मिश्र →

One Comment on “शिक्षकों के शिक्षण-प्रशिक्षण में क्या बदलाव लाना चाहती है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020”

  1. अत्यंत सारगर्भित लेख।। नमस्कार एवं बधाई सर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *