जयपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरुद्ध त्रैमासिक पत्रिका ”भोर” का वक्‍तव्‍य


जयपुर साहित्य महोत्सव महज महोत्सव नहीं है और वे भी इस बात को छिपा नहीं रहे हैं। अगर यह सिर्फ महोत्सव होता तो मौखिक भर्त्‍सना ही काफी होती या महज उपेक्षा ही इनको मार देने के लिए पर्याप्त होती। अगर मकसद सिर्फ दुनिया भर के लेखकों का आपस में मिल कर मानवता के दुख पर बात करना होता तो भला किसे आपत्ति होती। हां, इतना ज़रूर कोई कह उठता कि मानवता के दुख पर बात करने के लिए ये हर बार जयपुर को ही क्यों चुनते हैं। और वहां भी बातचीत के लिए महल में क्यों जा बैठते हैं। या इसी तरह के कुछ और सवाल होते जिनसे बचने के लिए हो सकता है वे अपने कार्यक्रम में कुछ तब्दीली भी ले आते, लेकिन मामला सीधे तौर पर देखा जाए तो इतना भर ही नहीं है। यहां वे कार्यक्रमों में कुछ बदलाव लाकर कोई सुधार नहीं कर सकते क्योकि मामला बेहद गंभीर है और लेखकों के हाथ से बाहर है। क्योंकि वे खुद को आयोजकों के हाथों सुपुर्द किए होते हैं और सच पूछा जाए तो आयोजक की भी वहां कोई हैसियत नहीं होती बल्कि वह प्रायोजकों का कारिंदा भर होता है। 
दरअसल, यह सारा खेल प्रायोजक का है जिसके पीछे उसकी अपनी सोची-समझी राजनीति है। लेकिन हम यह भी नहीं कह सकते कि जो लेखक वहां जाते हैं वे उनकी राजनीति का शिकार होते हैं क्योंकि इनमें से कई लेखकों के लेखन का आधार वही राजनीति होती है। ऐसे लेखक साहित्य में खुद को सही सिद्ध करने के लिए कॉर्पोरेट ताकत का सहारा लेने वहां जाते हैं जबकि जो कॉर्पोरेट ताकतें हैं वे विरोध के एकमात्र क्षेत्र साहित्य को अपने अनुकूल करना चाहती हैं, साथ ही अपनी छवि मानवीय और खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रहरी के तौर पर स्थापित करना चाहती हैं। इसके अलावा ये कॉर्पोरेट ताकतें खुद को सही भी साबित करना चाहती हैं क्योंकि उनकी ताकत जिस पूंजी पर टिकी होती है उसका बहुत बड़ा भाग वे लूट, हत्या और दलाली से पैदा करती हैं। उनका तर्क होता है कि जिसका कहीं कोई विरोध नहीं होता वह सही होता है। इसलिए वे तमाम तरह के विरोध को या तो खरीदने की कोशिश करती हैं या उसे हमेशा के लिए खत्म कर देने की।

बहुत दिनों से जबकि एक ओर लोग इस बात को लेकर परेशान थे कि हिंदी साहित्य में आखिर कोई भी बड़ा साहित्यकार ऐक्टिविस्ट क्यों नहीं हुआ, वहीं दूसरी ओर कॉर्पोरेट ताकतें इस कमजोरी को सेंध लगाने के एक तैयार मौके के रूप में देख रही थीं। आज जो यह जयपुर साहित्य महोत्सव इतना विशाल दिख रहा है, उसके पीछे ऐसे आरामतलब साहित्यकारों की एक पूरी फौज का खड़ा हो जाना है जो नवमध्यवर्ग से आए हैं। यह नवमध्यवर्ग भूमंडलीकरण की देन है, और यह भूमंडलीकरण कॉर्पोरेट ताकतों की मानसिक उपज है जिसे दुनिया भर के शासक सच साबित करने पर न सिर्फ खुद तुले हैं बल्कि उन्हें भी उसने छूट दे रखी है कि वे अपनी ताकत भी अपनी इस मानसिक उपज को सच साबित करने में लगाएं। 

कोई पूछ सकता है कि आखिर इन सबका अभिप्राय क्या है? तो जैसा कि ऊपर कहा गया, इन सबका एकमात्र मतलब अपनी लूट को बेरोकटोक बनाए रखना है, इसलिए वे तमाम सोचने वाले दिमागों को अपनी सोच के अनुकूल बनाना चाहते हैं। हालांकि उन्हें पता होता है कि चाहे वे जितनी भी ताकत लगाएं कई ऐसे लोग होंगे जो तब भी उनका विरोध करेंगे। ये तमाम बड़े कार्यक्रम किए ही इसलिए जाते हैं ताकि ऐसे विरोधियों को हाशिये पर फेंका जा सके, ठीक उसी तरह जैसे ये किसानों को फेंक देते हैं जब गांव के गांव हथियाने निकलते हैं; ठीक उसी तरह जैसे आदिवासियों को धकिया देते हैं जब जंगल के जंगल अपने कब्जे में करने का नक्शा कागज़ पर तैयार करते हैं। साहित्य का असल मकसद क्या है, उसे वे तय करना चाहते हैं जिसे वे स्वान्तः सुखाय से शुरू करते हैं। वे कई बार अपने यहां विरोध के स्वर को भी उठने देते हैं ताकि विरोधियों को लगे कि वह एक खुला मंच है और वे वहां जाने में कोई पाप न देखें। लेकिन यह मुआवज़े से ज्यादा कुछ नहीं होता है। जैसे वे किसानों को देते हैं, आदिवासियों को देते हैं, ठीक उसी तरह वे विरोधी विचारों को भी मुआवज़ा देने में कोई गुरेज़ नहीं करते। इस तरह वे विरोधी विचार को एक तरह से खरीद लेते हैं और उसकी धार को कुंद कर देते हैं। मुआवज़ा लेने के बाद जिस तरह किसान या आदिवासी अपनी ज़मीन या जंगल की लड़ाई जारी रखने का नैतिक अधिकार खो देता है, उसी तरह लेखक भी अपने विचार की लड़ाई फिर नहीं लड़ पाता।
’’भोर’’ पत्रिका ऐसे किसी भी महोत्सव, समारोहों या आयोजनों की भर्त्‍सना करती है और तमाम साहित्यकारों से अपील करती है कि वे जयपुर साहित्य महोत्सव का बहिष्कार करें और अपनी भूमिका पर गंभीरता से विचार करें।
  
”भोर” पत्रिका की ओर से 
रंजीत वर्मा और अंजनी कुमार द्वारा जारी   
  
    
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One Comment on “जयपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरुद्ध त्रैमासिक पत्रिका ”भोर” का वक्‍तव्‍य”

  1. lag raha hai ye dono bhai ko jane ka mauka nahi mila esliye dukhi hai. are bhai sahab jaipur men kya hota hai ye janpath padhne wale sabhi jante hai aap kya jana chate ho aur mude ki kami hai kya? ya aap bhi virodh kr ke jane ka Rasta talsh rahe ho.

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