बलबन बाबा: महरौली के बियाबान में सुल्तान बलबन की सुनसान मज़ार |
अनुभव कभी-कभार इतिहास को धोखा दे देता है। ये बात मुझे हाल में पता चली जब मैं घूमते-टहलते कुतुबमीनार के पीछे महरौली के जंगलों में पहुंच गया। यहां मिली सुल्तान बलबन की मज़ार। वही बलबन, जो गुलाम वंश का नौवां शासक था, जिसने खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया था, उसके बावजूद जब बाबा फ़रीद के सामने जाता तो सिर नवा के अपराधी की तरह खड़ा हो जाता था।
मुझे वहां एक गार्ड ने बताया कि बाबा बलबन इस जंगल की रक्षा करते हैं। मैंने पूछना चाहा कि बाबा कहने का क्या संदर्भ, लेकिन चुप रहा। उसने मुझसे कहा कि जाने से पहले माथा टेकते हुए जाना मज़ार पर। मैंने तस्वीरें उतारने के बाद उसके सामने वैसा ही किया। और अचानक क्या हुआ बताऊं….
सिर टेकने के बाद उठाते ही इत्र की एक भीनी सी खुशबू आई। वो मुस्कराया। उसने कहा, मैंने कहा था न, माथा टेकते हुए जाना।
मुझे समझ नहीं आया। मैं जाकर वहां कुछ सूंघने की कोशिश करने लगा। कोई महक नहीं। फिर मत्था टेका। उठाते ही दोबारा वही खुशबू।
क्या मैं धोखे में था… पता नहीं। कम से कम दो दर्जन बार मैंने यही काम किया। जहां-जहां मत्था टेका, वहां-वहां नाक सटाकर सूंघा भी, लेकिन नतीजा हर बार एक ही। सूंघने पर कुछ नहीं, मत्था टेकने पर खुशबू।
बलबन के बाबा बनने का आखिर क्या यही राज़ है… कोई मुझे बतलाए… जाए, वहां एक बार होकर आए।