विस्साव शिंबोर्स्का (2 जुलाई 1923-1 फरवरी 2012) |
मौत की घड़ी में
स्मृतियों का आवाहन करने के बजाय
मैं फरमान दूंगी
ग़ुम हो चुकी चीज़ों की वापसी का।
खिड़कियों से, दरवाज़ों से
लौट आएं छाते, एक सूटकेस, मेरे दस्ताने, एक कोट
ताकि कह सकूं मैं:
ये मेरे किस काम के?
एक सेफ्टी पिन, ये वाली या वो वाली कंघी,
एक पेपर रोज़, एक धागा, एक छुरी
ताकि कह सकूं मैं:
मुझे किसी का कोई अफ़सोस नहीं।
चाबी, तुम जहां कहीं भी हो,
पहुंच जाना वक्त पर
ताकि मैं कह सकूं:
हर चीज़ में ज़ंग लग चुकी है, मेरे दोस्त, ज़ंग।
मान्यताओं और सवालों के बादल घुमड़ पड़ें तब
छा जाएं मेरे ऊपर
तब मैं कह सकूंगी:
कि सूरज डूब रहा है।
ओ घड़ी, निकल आओ तैर कर नदी से बाहर
थाम लेने दो मुझे अपना हाथ
ताकि कह सकूं मैं:
अब तो वक्त बतलाने का नाटक मत करो।
हवा में पिचका, सिकुड़ा खिलौने वाला गुब्बारा
भी उतर आए नज़र में
और मैं कह सकूं:
अब यहां बच्चे नहीं रहते।
(अंग्रेजी से अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्तव)
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बेहतरीन
bahut badhiya…padhvane ke liye dhanyvaad
bahut sunder…yadon ka flashback hai ye rachna–
behterin