सीमा आजाद के बहाने विरोध की आवाज को कुचलने की साजिश

सीमा और विश्‍वविजय पर आए निचली अदालत के फैसले के बाद ज़रूरी हो गया है कि विरोध की आवाज़ों को कुचलने की ऐसी सरकारी साजि़शों का पुरज़ोर विरोध हो। बिनायक …

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न्याय की बैसाखी पर मौत की इबारत

अंजनी कुमार 8 जून 2012… सेशन कोर्ट, इलाहाबाद। सुबह 11 बजे से न्याय के इंतज़ार में हम लोग खड़े थे। सीमा आज़ाद और विश्वविजय कोर्ट में हाजि़र नहीं थे। वकील …

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नेपाल पर कुछ ज़रूरी सवाल: विष्‍णु शर्मा का पत्र

समकालीन तीसरी दुनिया के ताज़ा अंक में नेपाल पर लिखे संपादकीय और आवरण कथा पर विष्‍णु शर्मा का यह पत्र आज आया है। कायदे से यह पत्र तीसरी दुनिया के …

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बिहार में लगी आग, तो दिल्‍ली के संपादकों ने छोड़ा धुआं…

पिछले हफ्ते मुखिया की हत्‍या के बाद उधर बिहार जल रहा था, इधर राष्‍ट्रीय कहे जाने वाले अखबारों के संपादकों के पश्चिम से धुआं उठ रहा था। यह लेख दिल्‍ली …

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भूमिहारों का परचा और आइसा की स्‍याही: मुखिया के बहाने एक फ्लैशबैक

व्‍यालोक बिहार में ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या के बाद दो दिनों तक बिहार की पूरी व्यवस्था को कुछ ‘सौ’ गुंडों के हवाले कर तमाशबीन बने नेताओं और प्रशासकों की ज़रा …

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एक ‘ठहरी हुई विचारधारा’ से संवाद की इतनी उतावली क्‍यों राकेश जी?

हेडगेवार के जीवनीकार प्रो. राकेश सिन्‍हा के लेख का जवाब कवि-पत्रकार रंजीत वर्मा ने भेजा है। उन्‍होंने अपने जवाब में आवाजाही को लेकर फैले आग्रहों के पीछे की राजनीतिक साजि़श को पकड़ा …

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साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं…

प्रो. राकेश सिन्‍हा ने अपने ब्‍लॉग और फेसबुक पर आवाजाही के संदर्भ में वामपंथियों के खिलाफ जो लेख लिखा था जिसे हमने बाद में जनपथ पर साभार लगाया, उसका जवाब चंचल …

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अब ज़रा संघ के आइने में देखिए वामपंथी संकीर्णता का अक्‍स!

(पिछले डेढ़ महीने से आवाजाही पर जो बहस चल रही थी, उसमें वाम दायरे के बाहर से पहला संगठित और सक्रिय हस्‍तक्षेप आया है। मंगलेश डबराल जिस संस्‍थान के मंच …

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