Benares Grapevine-5: मोंछू-मौलाना संवाद




मोंछू के यहां मैंने पहली बार आज से करीब 14 साल पहले थम्‍स अप पीया था और उनके हाथ का लगा पान खाया था। उस वक्‍त उनकी मूंछें इतनी खूबसूरत नहीं हुआ करती थीं। वे इतने बूढ़े भी नहीं थे। बनारस छोड़ने के बाद जब-जब मैं लौटा और साकेत नगर कॉलोनी में रुका, उनके यहां पान खाया, लेकिन कभी भी उनसे- जिसे ”राब्‍ता” कहते हैं- नहीं बन सका। पिछले महीने बनारस में अरविंद केजरीवाल की रैली से पहले जब मैं आया था, तो मोंछू का बदला हुआ रूप मैंने पाया। गले में भारतीय जनता पार्टी का गमछा, सिर पर पार्टी की टोपी और दुकान के काउंटर पर ”मोदी को वोट क्‍यों दें” शीर्षक से लिखे परचों का गट्ठर। मैंने देखा कि हर नए ग्राहक को वे बातचीत में फंसाते और परचा बांटते थे। उनकी देह, लाल होंठ और उनके बीच मुस्‍कुराती मूंछें एक आकर्षण पैदा करती थीं। लोग उनसे बातचीत में बीच-बीच में निकलने वाली देसी प्रयोगात्‍मक गालियों के मुरीद हो जाते और सहज ही ”मोदी-मोदी” करने लगते। मोंछू खुलकर प्रचार कर रहे थे और भाजपा विरोधियों को रह-रह कर हड़का भी रहे थे। 


इस बार 22 मई को जब मैं साकेत नगर कॉलोनी पहुंचा तो सुफलजी के घर यानी अपने दूसरे घर पर जाने से पहले मोंछू के यहां रुका। एक पान लगवाया। उन्‍होंने मुझे मोदी का परचा पकड़ाया और मुस्‍करा दिए। मैंने रात में लौटने की बात कह के विदा ली। वो रात संकटमोचन संगीत समारोह की आखिरी से पहले वाली रात थी। खचाखच भीड़, पान-पत्‍ते और राजनीतिक चर्चाओं के बीच रात दस बजे मैं संकटमोचन पहुंचा। मोंछू से पान लगवाया और भीतर घुस गया। सुबह होने तक कई बार मैं उनके पास गया। हर बार नींद से भारी पलकों और पान के लगातार सेवन से भरभराई आवाज़ में उन्‍हें किसी न किसी ग्राहक को गरियाते या समझाते पाया। अगली रात फिर डेरा जमा संकटमोचन संगीत समारोह में। पूरी रात मोंछू के यहां रह-रह कर बैठक होती रही। फिर समारोह खत्‍म हुआ और मोंछू का टाइम टेबल बदल गया। दुकान का रात भर खुलना रुक गया। वे या तो सुबह की पारी में मिलते या शाम को, वैसे ही मुस्‍कराते, प्रचार करते और विरोधियों का खून जलाते हुए। मेरी धारणा उनके बारे में प्रबल हो चुकी थी जिसमें किसी भी बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं थी। मैं जाता रहा, वे मुझे खबरें देते रहे और मैं सुन-सुन कर सिर्फ मुस्‍कराता रहा। मैंने उनके सामने मोदी के खिलाफ़ एक शब्‍द नहीं कहा पिछले बीस दिनों में। एक तो डर था उनकी गालियों का, दूजे खबरों का एक स्रोत कट जाने की आशंका भी रही।

यह संयोग ही रहा कि 4 तारीख के बाद लगातार काम में जुट जाने और लहुराबीर के इलाके में मित्रों के साथ शिफ्ट हो जाने के कारण मैं चार दिन उनके यहां नहीं जा सका, लेकिन मित्र नवीन कुमार के शूट के सिलसिले में 9 की रात संकटमोचन जाना पड़ा जब अरविंद केजरीवाल की रैली खत्‍म हो चुकी थी और पूरा शहर एक सफेद सैलाब में तब्‍दील हो चुका था। रात दस बजे नवीन को संकटमोचन में कीर्तन शूट करना था। करीब घंटे भर का शूट रहा होगा। इस दौरान मैं मोंछू के यहां चला गया। वे देखकर मुस्‍कराए। मैंने थम्‍स अप मांगा और बैठ गया। उनके साथ एक मौलाना बैठे हुए थे। वे पान दबाए उनसे काफी देर से कुछ बातें कर रहे थे। जहां से मैं पकड़ पाया, वह अविकल संवाद नीचे दे रहा हूं:

मौलाना: … त का करीं…? देख भइयवा, ई कुल जेतना हमरे कौम के हैंन, सब झाड़ू चलइहें। एमा कौनो दू राय नहीं हौ।

मोंछू: एक कारण बतावा कि काहे झाड़ू के वोट देवे के चाही? चार-चार गो मेहरारू रखा तू लोग अउर झाड़ू टोपी लगा के ईमानदार क झांट भी बनबा?

मौलाना: देखिए… ए… मोंछू… सुना… (मेरी ओर देखते हुए) मैं पहली बार आपको साफ-साफ बता रहा हूं कि मुसलमान अरविंद केजरीवाल को वोट क्‍यों करेगा। लिख लीजिए… अबही ले हमहन कई गलती कइली… आजादी के एतने साल में कौन हराम क जना हमहन के पुछलेस? त एक गलती और सही एदा पारी… क्‍या होगा? कुछ नहीं करेगा, यही न? ठीक है…

मोंछू (दांत पीसते हुए): गलतिये करे के ह त मोदीजी के संगे काहे न करता बुजरोवाले? हई भगोड़वा के संगे तोर कवन रिस्‍ता हौ?

मौलाना: देखा भाय, सच बताई… कलिहां मोदीजी के सम्‍मान में पूरा मदनपुरा सड़क पर खड़ा रहा… पालटिक्‍स अपनी जगह, तहज़ीब भी कोई चीज़ होती है? का मोंछू… मोदी हमार मेहमान रहलन। पूरा मदनपुरा खड़ा रहा बेसब्री से कि मोदी का स्‍वागत करना है। जब अइलन, त पता चलल कि रोड शो के नाम पर गाड़ी में बइठा हैं। चेहरवो नाहीं देख पाए मियां… बतावा, हम कहां स्‍वागत करे बदे खड़ा हई अउर ई ससुर सरसरात निकल गइलन… क्‍या भाई सा‍हब (मेरी ओर देखते हुए)… गलत कह रहे हों तो बताइए…।

मोंछू: अरे यार सब छोड़ा… ई बतावा अपने परिवार में से एक वोट मोदी के दियइबा की नाहीं?
(मैं हंसने लगा)

मोंछू: हंसिए मत… हम लोगों की दोस्‍ती 22 साल पुरानी है… कहो, जावेद?
(मौलाना का नाम जावेद था, अब पता चला)

जावेद: हां भयवा… (मेरी ओर देखते हुए)… हम लोग एक साथ सुख-दुख में रहे हैं। हमरे इहां कुछ हो जाए त मजाल है कि मोंछू न आवें?

मोंछू: सुना… कोई मोदी-फोदी हमहन क व्‍यवहार नाहीं खराब कर सकत… मत देवे क ह मत दा वोट… आपन आपन नजरिया हौ… मैं अपना काम कर रहा हूं, ये अपना काम करेंगे। सबसे ऊपर व्‍यवहार है, बाकी तो सब पालटिक्‍स है।
(इसके बाद मौलाना ने मोंछू को गले लगाया और चलने को उठे)

मोंछू: अइसन का नाराजगी… एक ठे पनवा बंधवा ला…

जावेद: जल्‍दी करा… जाए के है…

मोंछू: काहे? दुसरकी जोहत ह का?

जावेद: अइसन मत बोला भाय… ई सब पुरानी बात हो गई। अब हम लोग उतने जाहिल नहीं हैं।

मोंछू: लग गल मरचा… तुम लोग देस को पेल-पेल के आबादी बढ़ाए जा रहे हो और टोपी पहिन के ईमानदार बनने चले हो… 

(जावेद ने एक पान दबाया, एक बंधवा लिया)

जावेद: जात हई, कल केजरीवाल क रैली ह…

मोंछू: हूं… जा… मरवावा झाड़ू से…।

(जावेद स्‍कूटर स्‍टार्ट करते हुए)

जावेद: पहिली बार झाड़ू से मरवाइब… तू त 20 साल से कमल से मरवावत हउवा… का मिलल? झांट?

(पहिला गियर लगाते हुए जावेद)

मोंछू: अउर का मिली… मोदी आवें चाहे केजरीवाल… बरक्‍कत होवे के चाही बस… याद हौ ऊ सेरवा जावेद?

जावेद: कवन? आबो-हवा वाला?

मोंछू: हां…

(जावेद एक्सिलेटर लेते हुए)

मोंछू: आबो-हवा के असर से चिंघुरा हुआ हूं मैं…

(मैंने कहा मुकर्रर, तो मोंछू रुक गए)

जावेद: आबो-हवा के असर से चिंघुरा हुआ हूं मैं…

मोंछू: तुम क्‍या समझ रहे हो सुधरा हुआ हूं मैं?    

दुकान पर खड़ा तीसरा व्‍यक्ति: बारज्‍जा… गजब सेर मरला चच्‍चा…

जावेद: एह… सुना… शेर पढ़ा जाता है… मारा नहीं जाता… शेर हमारा मेहमान है।

मोंछू: ई कइला न बात कायदे क…

(जावेद ने क्‍लच छोड़ा, दुकान पर ठहाका)

     
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