भारत में रिन्यूएबल ऊर्जा क्षेत्र को 2014 के बाद से $42 बिलियन से अधिक का निवेश मिला है। 2030 तक 450 गीगावाट (GW) क्षमता तक पहुंचने के लिए भारत को US $500 बिलियन की आवश्यकता होगी। इसके लिए विदेशी निवेशक कतार लगाए खड़े हैं। ये बात अलग है कि देश भर में प्रधानमंत्री के आह्वान पर आत्मनिर्भरता अभियान आजकल ज़ोरों पर है।
एक ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो भारत के रिन्यूएबल एनेर्जी और ग्रिड प्रोजेक्ट्स में निवेश करने के लिए ग्लोबल निवेशकों का एक बड़ा पूल तैयार है। वजह है भारत में इस क्षेत्र की असीमित संभावनाएं और अनुकूल परिस्थितियां जिनके चलते यहाँ सौर ऊर्जा टैरिफ में रिकॉर्ड गिरावट के साथ-साथ सोलर मॉड्यूल की लागत में कमी, कम ब्याज दर और सरकार समर्थित 25-वर्षीय पावर परचेज़ एग्रीमेंट्स (बिजली खरीदने के समझौतों/पीपीए) की सुरक्षा, बड़े कारण होंगे निवेशकों को आकर्षित करने के लिए।
इस रिपोर्ट को पेश किया है इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) ने। रिपोर्ट के सह-लेखक और इसी संस्था में निदेशक, ऊर्जा वित्त अध्ययन, दक्षिण एशिया, टिम बकले, अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “भारत को अपने महत्वाकांक्षी रिन्यूएबल ऊर्जा लक्ष्यों के लिए जिस निधि की आवश्यकता है, वो पूंजी लगाने के लिए वित्तीय, कॉर्पोरेट, ऊर्जा, उपयोगिता और सरकारी क्षेत्रों में घरेलू और वैश्विक संस्थान तैयार हैं।”
आईईईएफए के अनुसंधान विश्लेषक सौरभ त्रिवेदी द्वारा सह-लिखित यह रिपोर्ट तब आती है है जब अन्तराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के ताज़ा भारत एनर्जी आउटलुक 2021 बताया गया है कि भारत को अगले 20 वर्षों में कम उत्सर्जन उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों के लिए 1.4 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होगी, जो कि वर्तमान नीतियों के आधार पर 70% अधिक है।
आगे, टिम बकले कहते हैं, “भारत के पास अपनी ऊर्जा प्रणाली को बदलने का अनूठा अवसर है, और ऐसा करने के अकल्पनीय लाभ हैं।” वो आगे कहते हैं, “भारत महंगे जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करके अपनी ऊर्जा सुरक्षा में प्रभावाशाली सुधार कर सकता है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की सीमांत ईंधन लागत से कम, अब लगभग रु .2 / kWh, की चल रही सौर ऊर्जा अपस्फीति, भारत को ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी लाने आर्थिक प्रोत्साहन देती है, और जलवायु संकट को सुलझाने में मदद करने के लिए एक विश्व नेता होने साथ ही, गंभीर वायु प्रदूषण और पानी की कमी का समाधान करने के लिए भी।
एक अनुमान बताते हुए वो कहते हैं, “हम अनुमान लगाते हैं कि 2030 तक अक्षय ऊर्जा के 450 गीगावाट के लिए प्रयास करने से आने वाले दशक में $500 बिलियन के निवेश की आवश्यकता होगी – जिसमें पवन और सौर अवसंरचना के लिए $300 बिलियन, गैस-पीकर्स, हाइड्रो और बैटरी जैसे ग्रिड फ़र्मिंग निवेशों पर $50 बिलियन, और प्रसारण और वितरण के विस्तार और आधुनिकीकरण पर $150 बिलियन, शामिल हैं।”
IEEFA की नई रिपोर्ट नई परियोजनाओं और अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvIT) संरचनाओं के लिए रिन्यूएबल्स क्षेत्र में आने वाली पूंजी की पहचान करती है, साथ ही परिचालन परियोजनाओं के लिए राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) के लिए पूंजी पुनर्चक्रण के अवसर भी।
बकले कहते हैं, “साल 2021 की शुरुआत अडानी ग्रीन में 20% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए फ्रांस के टोटल ऑफ़ फ्रांस के $2 बिलियन के निवेश से हुई।”
रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड (CPPIB) और दुनिया की सबसे बड़ी निजी इक्विटी फर्म KKR अब भारतीय RE क्षेत्र में प्रमुख विदेशी निवेशक हैं और इसका नेतृत्व कर रहे हैं। दिसंबर 2020 में, CPPIB ने SB एनर्जी इंडिया में $ 525 मिलियन के मूल्यांकन में 80% इक्विटी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया और KKR ने 2019 में इंडीग्रीड (IndiGrid) InvIT में प्रमुख़ हिस्सेदारी ली ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय नवीकरणीय क्षेत्र में प्रमुख स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (IPPs) का वर्चस्व है: रिन्यू पावर, ग्रीनको, अडानी ग्रीन, टाटा पावर, एक्मे, एसबी एनर्जी, एज़्योर पावर, सेम्बकॉर्प ग्रीन इंफ़्रा और हीरो फ्यूचर एनर्जीस, और वह प्रत्येक ने अंतरराष्ट्रीय उधार और इक्विटी बाजारों में निर्माण क्षमता में दृढ़ता से निवेश किया है।
लेकिन इन रिन्यूएबल ऊर्जा दिग्गजों को वेना एनर्जी / वेक्टर ग्रीन, ओ2 पावर, अयाना रिन्यूएबल पावर, टोरेंट पावर और स्प्रेग (Sprng) एनर्जी जैसों से बढ़ते मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही भारत सरकार जीवाश्म ईंधन की बड़ी कंपनियां, जैसे एनटीपीसी और एनएलसी, डीकार्बोनआईज़ेशन चुनौती का सामना करने की शुरुआत कर रही हैं, और कोल इंडिया लिमिटेड और भारतीय रेलवे भी तेज़ी से आगे बढ़ने के मौकों की तलाश में हैं।
ग्रिड ट्रांसमिशन सेक्टर में, अडानी ट्रांसमिशन, स्टरलाइट पावर और इंडीग्रीड के नेतृत्व में पावर ग्रिड कॉर्प के निजी क्षेत्र के दावेदार कम लागत पर ग्रिड विस्तार और आधुनिकीकरण चला रहे हैं।
रिपोर्ट के सह-लेखक सौरभ त्रिवेदी का कहना है कि नई परियोजनाओं में पूंजी को आकर्षित करने के साथ-साथ भारत को रिन्यूएबल परियोजनाओं में मौजूदा निवेशों को पुन: रीसायकल करने की आवश्यकता है।
उनका कहना है कि, “प्रमुख संस्थाएँ जो मौजूदा परिचालन रिन्यूएबल ऊर्जा परिसंपत्तियों को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, निजी इक्विटी, संप्रभु धन निधि, वैश्विक पेंशन और अवसंरचना कोष, वैश्विक जीवाश्म ईंधन उपयोगिताओं, और तेल और गैस की बड़ी कंपनियों हैं। संस्थागत निवेशक निर्माण जोखिम से सावधान हैं।”
भारत में यह निवेश न सिर्फ देश की, बल्कि दुनिया की जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में निर्णायक साबित हो सकते हैं।