उत्तर प्रदेश की जनजातियों के लिए जनगणना-2021 और पंचायत चुनाव की अहमियत


आगामी त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जनजाति के विभिन्न संगठन अपनी हिस्सेदारी को लेकर बेहद गंभीर है। इस सम्बन्ध में गाजीपुर जिले के अनुसूचित जनजाति के लोगों से बात करने पर पता चला कि इस विषय पर उनकी समस्या क्या है। इस समुदाय का कहना है कि विगत 2015 के चुनाव में उनको उस अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया था जिस अनुपात में वो उत्तर प्रदेश में निवासरत हैं।

इसके पीछे की वजह पूछने पर वो बतलाते हैं कि जब गाँव में सीटों का जातिगत आधार पर आरक्षण तय किया जाता है तो प्रशासन द्वारा जनगणना के आधार पर या फिर गाँवों में लेखपाल एवं ग्राम विकास अधिकारी के निर्देशन में सर्वे कराया जाता है जिसकी रिपोर्ट उच्च स्तर पर भेजी जाती है, फिर उचित संख्याबल का प्रतिनिधित्व कर रही जाति के अनुसार सीटों को आवंटित किया जाता है।

एक रिपोर्ट दिखलाते हुए वो कहते हैं कि 2015 में हुए चुनावों में अनुसूचित जनजाति के लिए प्रशासन की तरफ से ग्राम प्रधान के लिए पूरे प्रदेश स्तर पर 336 सीटें आरक्षित थीं। झांसी, कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर एवं उन्नाव के ग्राम प्रधान की सीटें खाली रह गयीं क्योंकि शासन के अनुसार मौके पर अमुक गाँव में कोई भी जनजाति से सम्बंधित आबादी नहीं पाई गई, इस वजह से वहां ग्राम पंचायतें गठित नहीं हो पाई।

अपने बात के समर्थन में जनजातीय समुदाय के लोगों द्वारा दिखलाया गया प्रकाशित समाचार

प्रादेशिक खरवार सभा, उत्तर प्रदेश के जिला मंत्री गोपाल राम खरवार का कहना है कि 2015 के चुनावों में जनजाति सीटों का आरक्षण 2011 के जनगणना के अनुसार किया गया था। जनगणना की रिपोर्ट एक प्रामाणिक रिपोर्ट मानी जाती है, फिर भी ये दर्शाना कि अमुक गाँव में जनजाति आबादी नहीं मिली जिस वजह से सीटें खाली रह गयीं। ये उत्तर प्रदेश सरकार को आईना दिखाने जैसा है कि आप उत्तर प्रदेश के जनजातीय मुद्दों एवं हितों को लेकर कितने गंभीर हैं।

इस समबन्ध में आगामी रणनीति तैयार करने हेतु जिले के स्तर पर लिए जारी सार्वजानिक विज्ञप्ति

इस संगठन के सूत्रधार एवं वरिष्ठ सदस्य वृंदावन खरवार इस मुद्दे पर और प्रकाश डालते हुए बतलाते हैं कि वास्तव में असल मुद्दा ये नहीं है कि आबादी नहीं मिली या अमुक गाँव की जनजाति सीट आरक्षित होने के बावजूत खाली रह गई। असल मुद्दा ये कि जनगणना की रिपोर्ट प्रामाणिक रिपोर्ट मानी जाती है जिसके अनुसार वहां आबादी होनी चाहिए थी पर नहीं मिली, ऐसा क्यों?

बात को आगे बढ़ाते हुए संगठन के वरिष्ठ सदस्य जगदीश एवं ब्रह्मदेव खरवार कहते हैं कि जनजाति गणना से संबंधित जो रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के पास मौजूद है उसमें तमाम खामियां हैं जिस कारण 2011 की जनजातीय गणना समुचित रूप से यहाँ निवासरत लोगों की संख्या को सही रूप से नहीं दर्शाती है, जिस कारण जनजातीय समुदाय का हित प्रभावित हो रहा है। ऐसे में प्रशासन को चाहिए है कि सरकार को आगामी चुनावों से पहले गंभीरता के साथ उत्तर प्रदेश की जनजाति सम्बंधित जनगणना करा ले ताकि पूर्व में हुई त्रुटि का दोहराव न हो।

संगठन के सक्रिय सदस्य अशोक कुमार, अरविन्द, त्रिलोकीनाथ, शुभम ,गुलाल, सत्यदेव इत्यादि द्वारा यह सहमति प्रकट की गई कि वो प्रादेशिक खरवार सभा अध्यक्ष तुंगनाथ खरवार के नेतृत्व में प्रशासन से पूर्व ही पूरे गाजीपुर जनपद में अपने स्तर से जनजातीय समुदाय की जनगणना कराएंगे ताकि अगर प्रशासन के स्तर पर पंचायती चुनाव या 2021 की जनगणना रिपोर्ट में किसी भी तरीके से जनजातीय हितों को प्रभावित किया जाता है तो आंदोलन एवं कानूनसम्मत प्रकिया अपनाई जा सके। साथ ही उत्तर प्रदेश के जनजातीय लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाने की बात कही।

प्रादेशिक खरवार सभा की मीटिंग में भाजपा के अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रकोष्ठ के जिला मंत्री विनोद खरवार अपनी बात रखते हुए

इस सम्बन्ध में गाजीपुर जिला के भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रकोष्ठ के मंत्री विनोद खरवार का कहना है कि इस समस्या को उनके द्वारा संज्ञान में लिया गया है तथा इसकी गंभीरता को वो समझते हैं इसलिए अपने जिले के जनजातीय संगठनों की बात को प्रशासन तक पहुँचाने में पूर्ण सहयोग देंगे ।

अब ये देखना होगा कि उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा इस समस्या को कितनी गंभीरता से लिया जाता है ताकि आगामी जनगणना एवं पंचायती चुनावों में जनजातीय लोगों का किसी भी प्रकार से हित प्रभावित न हो सके एवं प्रशासन की पूर्व की गलतियों को सुधारा जा सके।


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