लॉकडाउन की मार झेल रहे गरीब मजदूरों-छात्रों के समर्थन में भूख हड़ताल


देश में जगह-जगह फंसे मजदूरों और छात्रों की जांच कर उन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था करो !

देश के सभी गरीब मजदूरों-मेहनतकशों और छात्रों के लिए राशन और आर्थिक मदद की तत्काल व्यवस्था करो !!

पिछले 30 दिनों से जारी लाॅकडाउन की सबसे अधिक मार गरीब मजदूरों और छात्रों को भुगतनी पड़ रही है। बिना तैयारी के किए गए लाॅकडाउन की वजह से लाखों मजदूर और छात्र अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं। मजदूरों की स्थिति इतनी बुरी है कि लाॅकडाउन की घोषणा होते ही लाखों की संख्या में मजदूर पैदल हजारों किमी दूर अपने घरों की ओर चल दिए। विदेशों से प्लेन में अमीरों को बैठाकर लाने वाली हमारी सरकार इन मजदूरों के प्रति आंखे मूंदे रही। अभी भी पूरे देश में लाखों मजदूर फंसे हुए हैं। उन्हें सुरक्षित अपने घर पहुंचाने के बजाए सरकारें उनका दमन कर रही हैं। सूरत, बांद्रा की घटनाएं इसका उदाहरण हैं।

अपने घरों से दूर रह रहे छात्रों की स्थिति भी बुरी है। दिल्ली जैसे शहरों में पढ़ाई के लिए आए छात्र अब भी यहीं फंसे हुए हैं। किराए के कमरे में रहने वाले छात्रों को मकान मालिकों द्वारा परेशान किया जा रहा है। सरकार किराया माफी की बात तो कह रही है परंतु जमीन पर तो मकान मालिकों की ही चल रही है। सरकारी घोषणाएं हवा में हैं।

एक तरफ समाज का बहुसंख्यक तबका लाॅकडाउन की मार से कराह रहा है वहीं दूसरी ओर हमारा मीडिया सरकार पर सवाल उठाने के बजाए देश को हिन्दू-मुस्लिम में बांटने में लगा हुआ है। स्पष्ट है कि हमारे देश का मीडिया गरीब मजदूर, छात्र, किसान विरोधी है। ऐसे में गरीब मजदूरों-छात्रों की समस्याओं को समाज के सामने लाने के उद्देश्य से पछास द्वारा 12 घंटे की भूख हड़ताल का आयोजन किया गया है।

लॉक डाउन की मार झेल रहे गरीब मजदूरों-छात्रों के समर्थन में भूख हड़तालदेश में जगह-जगह फंसे मजदूरों और छात्रों की जांच…

Posted by Parivartankami Chhatra Sangthan Pachhas on Thursday, April 23, 2020

भूख हड़ताल में कुल 90 साथियों ने भागीदारी की। इसमें 44 पछास के छात्र साथी, 20 इंकलाबी मजदूर केंद्र के साथी, 18 प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के साथी, 5 क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के साथी और 3 अन्य साथी शामिल हैं।

इंकलाब जिंदाबाद !
छात्र-मजदूर एकता जिंदाबाद !!

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
परिवर्तनकामी छात्र संगठन
(पछास)


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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