UP: 102, 108 और एडवांस लाइफ़ सपोर्ट एम्बुलेंस सेवा ठप, हड़ताल पर हजारों कर्मी, 700 से ज्यादा बर्खास्त


उत्तर प्रदेश में संचालित 102 सेवा के लिये 2,200, 108 सेवा के लिये 2,270 और एडवांस लाइफ़ सपोर्ट युक्त 250 एंबुलेंस 25 जुलाई की रात 12 बजे के बाद से ही अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इन एम्बुलेंसों पर तैनात 23,000 चालकों व इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन अपने 6 सूत्रीय माँगों के समर्थन में प्रदेश के सभी ज़िलों और 6 हज़ार की संख्या में लखनऊ के ईको गार्डन में हड़ताल पर बैठे हुए हैं। मामूली वेतन पर काम करने को मजबूर यह कर्मचारी 2012 से ही योजना के लागू करने के बाद से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आरोप है कि लंबे समय से ठेका कंपनी के शोषण के शिकार हैं और अपने 1000 साथियों के निकाले जाने सहित अन्य माँगों को लेकर हड़ताल पर हैं।

गोरखपुर के सहजनवां स्थित मुरारी इंटर कॉलेज में सैकड़ों की संख्या में एंबुलेंस खड़ी हैं। शहर में लोगों को परेशानी न हो इसलिए कर्मियों ने प्रदर्शन के लिये इसी स्थल को चुना है। सभी ज़िलों में प्रदर्शन से पूर्व एंबुलेंस कर्मियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 3 एंबुलेंस गाड़ियों को इमरजेंसी सुविधा के लिये सीएमओ को सौंप दिया है। जिससे आम लोगों को थोड़ी राहत मिल सके। गोरखपुर शहर कर्मचारियों की हड़ताल के कारण लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

एंबुलेंस कर्मियों के हड़ताल पर सरकार ने भी सख़्त रवैया अपना रखा है। सरकार की सख़्ती को देखते हुए एंबुलेंस संचालन करने वाली कंपनी जीवीके ईएमआरआई ने एंबुलेंस संघ के प्रदेश अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों समेत 14 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ख़ुद कह चुके हैं कि “लापरवाही के कारण यदि प्रदेश में किसी भी मरीज़ की मौत हुई तो संबंधित अधिकारी और कर्मचारी के ख़िलाफ़ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा विभाग और गृह विभाग कड़ाई से पालन कराए। सरकारी कर्मचारी और आउटसोर्सिंग से संबंधित कर्मचारी अपनी ड्यूटी और दायित्वों को निभाएँ। हर मरीज़ को तुरंत इलाज मिलना चाहिए।” मुख्यमंत्री ने सभी ज़िलाधिकारियों को एंबुलेंस संचालन की व्यवस्थाओं की निगरानी के आदेश दिए हैं।

एंबुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी ने 31 अगस्त तक 700 कर्मियों को बर्खास्त कर दिया है। 31 जुलाई रात 12 बजे तक शपथ पत्र भरकर ड्यूटी पर वापस लौटने को कहा है और ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने पर बर्खास्त करने की चेतावनी दी है।

1,000 कर्मचारियों को निकालने से बढ़ा विवाद

वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में 108 इमरजेंसी सेवा की शुरुआत की गई थी। तभी से जीवीके ईएमआरआई कंपनी इसका संचालन कर रही है। साल 2014 में प्रदेश में 102 सर्विस की शुरुआत हुई, इसके संचालन का ज़िम्मा भी जीवीके ईएमआरआई को मिला। 2017 में योगी सरकार ने आते ही एएलएस सेवाओं का शुभारंभ किया। ख़ुद योगी आदित्यनाथ ने हरी झंडी दिखाकर इन एडवांस लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंस की रवानगी की। इसके संचालन का ज़िम्मा भी निजी कंपनी जीवीके ईएमआरआई को मिला।

2020 में जीवीके ईएमआरआई कंपनी ने पेमेंट इशू के कारण सेवा देने में असमर्थता जताते हुए सर्विस सरेंडर करने का पत्र शासन को भेजा। पेमेंट का मामला कोर्ट भी पहुँचा पर बाद में आपसी सहमति बनी और कंपनी फिर से 102 व 108 एंबुलेंस के संचालन को तैयार हुई। सरकार ने एएलएस सेवाओं के लिये दिसंबर में टेंडर निकाल दिया। जून में जिगित्सा हेल्थकेयर लिमिटेड को टेंडर मिल गया। टेंडर प्रक्रिया में जीवीके ईएमआरआई शामिल ही नहीं हुई।अहम बात यह है कि जीवीके जहां एंबुलेंस संचालन क़रीब 18 रुपये प्रति किमी की दर से कर रही है। वहीं जिगित्सा को यह टेंडर क़रीब 24 रुपये में मिला है।

अधिक दर पर टेंडर मिलने के बावजूद भी जिगित्सा हेल्थ केयर लिमिटेड इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन को 10,700  ड्राइवरों को प्रति माह 10,200 भुगतान करने की बात रही है। मुरारी इंटर कॉलेज सहजनवां में प्रदर्शन कर रहे राजकुमार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “डीज़ल व पेट्रोल सहित सभी चीजों के दाम तेज़ी से बढ़ रहे हैं। फिर भी सरकार हमारा वेतन बढ़ाने के बजाए घटा रही है। हमारे पास अपने हक़ के लिये लड़ने के अलावा कोई और चारा नहीं। माँगें पूरी होने से पहले हम क़तई पीछे नहीं हटेंगे।“

कर्मचारी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और ओडिशा में ब्लैकलिस्टेड कंपनी को यूपी स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपये का ठेका दिया गया है। राजस्थान में जिगित्सा हेत्थ केयर लिमिटेड के ख़िलाफ़ सीबीआई जाँच तक चल रही है।

मामूली वेतन और सुविधाएं नहीं के बराबर

प्रदेश में 2012 से इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन को 9,634 रुपये और ड्राइवर को 8,900 रुपये मिलते थे।  2019 वेतन में बढ़ोत्तरी की माँग को लेकर हड़ताल के बाद ड्राइवर को वेतन 12,200 और ईएमटी का 12,725 रुपये कर दिया गया था। तब से कर्मचारियों के वेतन में किसी तरह की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। कभी सैलरी स्लीप भी नहीं दी जाती है। हालाँकि की हड़ताल के बाद कर्मचारियों का दावा है कि श्रम विभाग के साथ हुई बैठक में तय किया गया था कि इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन को करीब 16,500 रुपये और ड्राइवर को 16,000 दिये जाएँगे।लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। लगातार बढ़ती महंगाई के बीच घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है।

एंबुलेंस तैनात कर्मियों को अक्सर दूसरे ज़िलों से लखनऊ एसजीपीजीआई या केजीएमसी मरीज़ों को लेकर जाना पड़ता है। ऐसे में ड्राइवरों को 4-5 घटों तक लगातार गाड़ी चलानी पड़ती है लेकिन उन्हें किसी तरह का अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाता है। रास्ते में सारा खर्चा उन्हें ख़ुद की जेब से ही करना पड़ता है। यहाँ तक कि गाड़ी पंचर होने या गाड़ी संबंधी ऐसे ही अन्य ख़र्चों का वहन भी ख़ुद से करना पड़ता है। गोरखपुर में मुरारी इंटर कॉलेज परिसर में प्रदर्शन कर रहे ड्राइवर राजकुमार ने बताया “गाड़ी की साफ-सफाई का खर्चा भी ख़ुद ही उठाना पड़ता है। अगर गाड़ी दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो जाती है संबंधित ड्राइवर को तब तक काम पर वापस नहीं रखा जाता जब तक कि वह संभावित ख़र्चों से अधिक का डिमांड ड्रॉफ्ट न जमा करवा लिया जाये।”

2012 में एंबुलेंस संचालन की योजना को शुरू करते समय सभी कर्मियों की तैनाती प्रतिदिन 8 घंटे के काम और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का वादा करके की गई थी। कर्मचारियों ने बताया कि 2015 से ही छुट्टी के लिये रिलीवर की व्यवस्था को ख़त्म कर दिया। इसके बाद से कर्मचारियों को महीने में कोई छुट्टी नहीं मिलती है। कर्मचारियों को किसी भी त्योहार की भी छुट्टी नहीं मिलती है। एंबुलेंस पर 12-12 घटों की शिफ़्ट के आधार पर कर्मचारियों की तैनाती की जाती है। किसी एक के छुट्टी पर जाने पर दूसरे को दोनों शिफ़्टों में काम करना पड़ता है।  कर्मचारी आपस में ही तय कर लेते हैं कि किस त्योहार पर कौन छुट्टी पर रहेगा।

कोरोना योद्धा संक्रमित हुए तो वेतन भी काट लिया

कोरोना संक्रमण के पहले और दूसरे लहर के दौरान 102 व 108 एंबुलेंस कर्मियों को कोरोना योद्धा कहकर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित स्थानीय अधिकारियों ने इनका हौसला बढ़ाया। गोरखपुर में तैनात कर्मचारियों को यूपी सरकार और जीवीके ईएमआरआई दोनों की ओर से प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। ड्राइवर शशिधर बताते हैं कि “कोरोना महामारी के दौरान लोग डर की वजह से अपने ही सगे संबंधियों के कमरों तक में नहीं जाते थे ऐसे में हम लोगों ने ख़ुद बुजुर्गों और असहाय लोगों को पकड़कर एंबुलेंस में बैठाया। परिजनों के अभाव में कुछ लाशें तक मैंने जलाई हैं। जबकि मेरी लंबाई अधिक होने के कारण मुझे पीपीई किट तक नहीं मिला था। अब हमारी सरकार हमारी मेहनत का यह ईनाम दे रही है कि हमें नौकरी से बेदख़ल किया जा रहा है।”

वह आगे कहते हैं, “हमारे ज़्यादातर साथी पॉज़िटिव हो गए थे। हम ख़तरे के काफ़ी नज़दीक थे इसलिये कोरोना काल के दौरान अपने परिवार से दूर रहे।” इन परिस्थितियों में भी कोरोना योद्धाओं को न तो ज़रूरी सहूलियतें नहीं दी गईं। इतना ही नहीं कोरोना मरीज़ों को लेकर दिन रात सफ़र करने वाले चालकों और ईएमटी जब ख़ुद संक्रमित हुए तो उन्हें मेडिकल लीव देने की बजाए उनके वेतन काट लिया गया। आदित्य कुमार चौहान कहते हैं, “मई महीने में मैं कोरोना संक्रमित हो गया था। डॉक्टर ने दवा देकर होम आइसोलेट रहने को कहा। इसके बाद भी मेरे अधिकारी मुझे जबरन काम पर बुला रहे थे। मैंने ख़ुद के संक्रमित होने के सारे सबूत दिए जिन्हें प्रबंधन ने फ़र्ज़ी बता दिया और उस महीने का वेतन मुझे केवल 1,200 रुपये दिया गया।“ 

प्रदेश में 108, 102 और एडवांस लाइफ़ सपोर्ट एंबुलेंस का संचालन करने वाली कंपनी जीवीके ईएमआरआई के मुख्य अधिशासी अधिकारी के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने 1 अगस्त 2020 को वजीरगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। कंपनी पर आपदा प्रबंधन अधिनियम, आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम में रिपोर्ट इसलिये दर्ज कराई गई थी क्योंकि चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग और एनएचएम ने कंपनी को पूरा भुगतान कर दिया था लेकिन कंपनी ने अपने अधीनस्थ एंबुलेंस कर्मियों को वेतन व अन्य भत्ते नहीं दिए थे, जिसके कारण कर्मचारी हड़ताल पर जाने की बात कह रहे थे।  

जीवनदायिनी स्वास्थ्य विभाग एम्बुलेंस कर्मचारी संघ के गोरखपुर महामंत्री राजाराम का कहना है, “संचालक कंपनी ने ज़्यादातर कर्मियों को बर्खास्त कर दिया है और जल्द ही सभी को कर देगी। कोरोना काल में जान जोखिम में डालकर हमने काम किया और अब हमारे साथ यह दुर्व्यवहार किया जा रहा है। नौकरी रहे या जाये हम माँगें पूरी होने तक प्रदर्शन करते रहेंगे।”

कर्मचारियों की मांगें-

1- सभी कार्यरत एएलएस कर्मचारियों को ठेका लेने वाली कंपनी के बदलने के बाद भी निकाला नहीं जाए।
2- कोरोना महामारी के दौरान योद्धा का ख़िताब देने वाली सरकार एंबुलेंस कर्मचारियों का सम्मान करते हुए उन्हें ठेका प्रथा से मुक्त करे।
3- कोरोना काल में शहीद हुए कर्मियों के आश्रितों को जल्द से जल्द 50,00,000 की बीमा राशि का भुगतान किया जाए। साथ ही कंपनी बदलने पर वेतन में किसी तरह की कटौती नहीं की जाए।
4- जब तक सभी एम्बुलेंस कर्मचारियों को नेशनल हेल्थ मिशन के अधीन नहीं किया जाता है तब तक प्रति वर्ष मिनिमम वेज के तौर पर 23,000 चार घंटे का ओवर टाइम की दर से भुगतान और प्रति वर्ष महंगाई भत्ता भी दिया जाए।
5- कर्मचारियों को सहानभूति पूर्वक यथास्थिति नौकरी पर रखा जाए प्रशिक्षण शुल्क के नाम पर कर्मचारियों से डीडी न लिया जाए।
6- ठेका कंपनी को बीच से हटाकर सरकार स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से स्वयं एम्बुलेंसों का संचालन करे।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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