गाहे-बगाहे: वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ…

मुझे लगता है कि हमारी चुरा ली गई संवेदना और हड़प ली गई आज़ादी ने हमें इतना पंगु तो बनाया ही है कि विज्ञान और गणित के बावजूद और टेक्नोलाजी के भयंकर विस्तार के बाद भी हमारा कोई मूल्यवान तत्व खो गया है. हम वास्तव में चुप हो गए हैं.