कोरोना वायरस और ‘चेर्नोबिल मोमेंट’ का प्रहसन

इसी तरह की अदृश्यता का आतंक 26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल के निवासियों ने झेला जब उन्हें घंटों के अन्दर अपना सब कुछ जैसे-का-तैसा छोड़कर जाना पड़ा. जैसे अभी गली-चौराहों पर लोग बायोटेक्नोलॉजी और एपिडेमियोलॉजी की शब्दावली में दीक्षित हो रहे हैं वैसे ही चेर्नोबिल और उसके बाद फुकुशिमा दुर्घटना ने रेडियेशन से जुड़ी पारिभाषिकी को जिंदा रहने की शर्त बना दिया.