देशान्तर: तानाशाही व्यवस्था में प्रतिरोध का स्वर है चीन की सिविल सोसाइटी

2008 के ओलिंपिक ने चीन को दुनिया के पटल पर आर्थिक और राजनैतिक दोनों क्षेत्रों में न सिर्फ सुपर पावर के तौर पर स्थापित किया बल्कि यह आत्मबल भी दिया किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय व्यापारिक और बाज़ारी व्यस्था के आगे मानवाधिकारों के हनन को मुद्दा नहीं बनाने वाला। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने एडवोकेसी संस्थाओं पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया जिसके कारण कुछ ही वर्षों में कई संस्थाएं बंद हो गयीं या फिर देश छोड़ कर चली गयीं।