बात बोलेगी: बीतने से पहले मनुष्यता की तमाम गरिमा से रीतते हुए हम…

हम पिछली सदी से ज़्यादा नाकारा साबित हुए। हमने संविधान को अंगीकार किया और अपनी आवाजाही और बोलने की आज़ादी पर बलात् तालाबन्दी को भी अंगीकार किया। हम एक अभिशप्त शै में तब्दील हो गये। हम न मनुष्य रहे, न नागरिक हो सके। हम कुछ और बन गये, जिसके बारे में अगली सदी में चर्चा होगी।