बात बोलेगी: ‘लोया हो जाने’ का भय और चुनी हुई चुप्पियों का साम्राज्य
तोड़ भी दीजिए चुप्पी! बोलिए, कहिए, सुनिए, सुनाइए, चिल्लाइए! दोस्तों के बीच, घर में, फोन करते वक़्त, दफ्तर में! और अगर इसका अभ्यास नहीं है तो आईने के सामने खड़े होकर खुद से खुद के लिए बोलिए… देखिएगा, अच्छा लगेगा फिर। हवा चलने लगेगी! रूत, बदलने लगेगी!
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