प. बंगाल: TMC और BJP की सीधी लड़ाई में खुलता राजनैतिक हिंसा का नया अध्याय


पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और किसी भी कीमत पर अबकी बार सत्ता पाने को उन्मादी बीजेपी के बीच राजनैतिक हिंसा का जो दौर फिर से शुरू हुआ है, वह इस बात का संकेत है कि राज्य में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में क्या होने वाला है. इस बार भी बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है और यह दोनों दलों की नाक की लड़ाई है.

हकीकत यह है कि बंगाल के चुनावी मैदान में कांग्रेस की कहीं गिनती भी नहीं कर रहे हैं वहां के लोग. कांग्रेस-वाम गठबंधन अब भी नदारद है. मैंने दक्षिण 24 परगना और सुंदरवन के जितने भी लोगों से इस विषय में बात की, उनके मुंह से सिर्फ टीएमसी और बीजेपी ही निकला है.

करंजली के एक निवासी के अनुसार उनके यहां सब लोग बीजेपी को चाहते हैं. कारण पूछने पर बताया कि टीएमसी की अराजकता और वाम का जमीन से गायब होना ही एक कारण है. दूसरा, वहां के युवाओं को बीजेपी में अपना भविष्य दीखता है. यही हाल, मथुरापुर, जयनगर में भी है. बरुइपुर में अब कामरेड सुजन चक्रबर्ती का नाम बहुत कम लोग लेते हैं.

CAA पर सिलीगुड़ी में नड्डा का ऐलान बंगाल चुनाव की ज़मीन तैयार कर चुका है!

बंगाल में जहां पहले लाल झंडे लगे दीखते थे वहां अब कमल छाप पताका टंगी दि‍खती है. बंगाल में चुनाव प्रचार की विधिवत शुरुआत बीजेपी ने अक्टूबर में ही कर दी थी जब अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कोरोना संकट के बीच 19 अक्टूबर को सिलीगुड़ी जाकर राज्य में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने का ऐलान किया था.

सिलीगुड़ी में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि सीएए को लागू करने में कोरोना वायरस महामारी की वजह से देरी हुई, लेकिन अब जल्द ही इस कानून को लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पारित होने के बाद कानून बन चुका है और भाजपा इसे लागू करने को लेकर प्रतिबद्ध है.

बीजेपी अध्यक्ष द्वारा कोविड संकट के बीच फिर इस मुद्दे को छेड़ देना कोई आम बात नहीं थी. यह सब कुछ पश्चिम बंगाल में आगामी चुनाव के मद्देनजर बीजेपी की रणनीति का हिस्सा था, जिसके बाद वहां ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच न सिर्फ राजनीतिक हलचलें तेज हो गयीं बल्कि बीजेपी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और ममता बनर्जी की सरकार को अस्थिर कर गिराने की मुहीम तेज कर दी.

बंगाल में राजनैतिक हिंसा का नया दौर

पिछले लोकसभा, विधानसभा और उससे पहले हुए पंचायत चुनावों में बंगाल में हिंसा का जो दौर चला था और फिर कोरोना लॉकडाउन और उमपुन (अम्फान) चक्रवात के कारण जो कुछ समय के लिए शांत पड़ा था, जेपी नड्डा, अमित शाह और अन्य भाजपा नेताओं की बार-बार बंगाल यात्रा और बीजेपी-टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक संघर्ष ने अंगार में हवा का काम किया है.

बीते 5 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प के दौरान कुछ लोग घायल हो गए जबकि कुछ घरों में भी तोड़फोड़ की गई.

इस हिंसा के लिए दोनों दलों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाये. भाजपा ने आरोप लगाया कि टीएमसी समर्थकों ने उसके कार्यकर्ताओं को पीटा जबकि प्रदेश में सत्ताधारी दल ने आरोपों को खारिज करते हुए इस घटना को भाजपा की ‘अंदरूनी लड़ाई’ करार दिया. केंद्रीय मंत्री और आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो ने आरोप लगाया कि इस घटना के पीछे स्थानीय टीएमसी नेताओं का हाथ है. उन्होंने कहा, ”हमले के पीछे स्थानीय टीएमसी नेता हैं. कोयला खनन माफिया से जुड़े लोगों का हाथ भी इस घटना में है. यह पश्चिम बंगाल की हकीकत है.”

इससे पहले नवंबर में भी कोलकाता में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई थी. 26 नवंबर को बीजेपी ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया जिसके बाद पुलिस को प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा. दरअसल बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर पत्थर फेंके थे, जिसके बाद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हल्का बलप्रयोग करना पड़ा.

अब हाल ही में डायमंड हार्बर जाते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और कैलाश विजयवर्गीय के काफिले पर हमले की जो तस्वीरें बीजेपी ने पेश की, उसने आगामी चुनाव में होने वाली हिंसा के साफ़ संकेत दिए हैं. बीजेपी का दावा है कि ममता बनर्जी के इशारे पर नड्डा के काफिले पर तृणमूल कार्यकर्ताओं ने ईंट-पत्थरों से हमला किया जिससे विजयवर्गीय सहित कई बीजेपी कार्यकर्ता घायल हुए और कई गाड़ियों के शीशे टूटे. नड्डा की गाड़ी बुलेटप्रूफ होने के कारण उन्हें कोई चोट नहीं आई.

जबकि बंगाल पुलिस ने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया और कहा कि नड्डा के काफिले को कुछ नहीं हुआ है और वे सुरक्षित डायमंड हार्बर के कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गये थे. मामले की जांच की जा रही है.

जांच पूरी होने से पहले ही हमेशा की तरह बीजेपी के नीचे से लेकर ऊपर तक के नेताओं ने मीडिया से लेकर सोशल मीडिया और मुंबई से लेकर इंदौर तक प्रदर्शन शुरू कर दिया. दिल्ली से भी बंगाल के मुख्य सचिव और पुलिस मुखिया को तलब कर लिया गया.

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से 11 दिसंबर को राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर मिली रिपोर्ट के बाद गृह मंत्रालय ने मुख्य सचिव और डीजीपी को 14 दिसंबर को तलब किया था. ममता बनर्जी ने अपने दोनों अधिकारियों को दिल्ली भेजने से मना कर दिया है.

दरअसल नड्डा के काफिले पर हमले के बाद गृह मंत्रालय ने भोलानाथ पांडे (एसपी, डायमंड हार्बर), प्रवीण त्रिपाठी (डीआईजी, प्रेसीडेंसी रेंज) और राजीव मिश्रा (एडीजी, दक्षिण बंगाल) को केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर बुलाया था। तीनों अधिकारियों पर राज्य में नड्डा के दौरे के दौरान सुरक्षा का जिम्मा था.

ममता  बनर्जी ने ज्यादा संख्या में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नहीं होने के कारण उन्हें भेजने से मना कर दिया है.

गवर्नर की भूमिका

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के साथ ममता सरकार का कोई तालमेल नहीं है. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कई बार पद की मर्यादाओं को ताक पर रख कर बीजेपी कार्यकर्ता जैसा काम किया है. याद कीजिए जब 20 सितम्बर को जादवपुर यूनिवर्सिटी में गाली गलौज और मारपीट के आरोप में छात्रों ने केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो को घेर लिया था तब राज्यपाल जगदीप धनखड़ सभी प्रोटोकॉल तोड़ कर एक पार्टी कार्यकर्ता की तरह उन्हें छुड़ाने पहुंच गये थे.

बाबुल सुप्रिय उस दिन विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा आयोजित एक निजी कार्यक्रम में हिस्सा लेने गये थे, जहां छात्रों ने उन पर मारपीट और अभद्र भाषा और नक्लसी आदि कहने का आरोप लगाया था.

इस बार भी जेपी नड्डा के काफिले पर टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा कथित हमले के बाद राज्यपाल ने बिना देरी ममता बनर्जी पर हमला बोल दिया और केंद्र को रिपोर्ट भेज दी.

खंगालने पर महामहिम के ऐसे और भी कर्मों का लेखा जोखा मिल जाएगा. खुद राज्यपाल महोदय के आधिकारिक ट्वि‍टर हैन्डिल पर कई प्रमाण मौजूद हैं.

इस बातचीत में राजपाल महोदय की अपनी पीड़ा से अधिक कुछ और महसूस कर सकते हैं आप? क्या राज्य के लोग सरकार और न्याय व्यवस्था के खिलाफ वहां आंदोलन कर रहे हैं? किस पार्टी की स्थापना दिवस न मना पाने का दुःख है महामहिम जी को? क्या राज्यपाल राज्य सरकार के बारे में सार्वजानिक बयान देने के लिए नियुक्त किये जाते हैं?

सुबेंदु अधिकारी अब बीजेपी में हैं, मुकुल राय की तरह.

बर्धमान, डायमंड हार्बर सहित तमाम जगह जहां-जहां दोनों दलों के बीच झड़पें हुईं वहां स्थानीय लोगों से किसी मीडिया ने बात नहीं की. सभी मीडिया ने केवल पार्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं के बयान पेश किये. बंगाल राजनीति और सामाजिक आंदोलन का पुराना केंद्र रहा है. वहां धर्म नहीं उत्सव मनाए जाते रहे हैं, अब बीजेपी वहां धर्म मनाना चाहता है. हिन्दुओं को स्वाभिमान याद दिला रहा है. क्यों?

बंगाल में वाम शासन के पतन के बाद ममता बनर्जी ने ‘’माँ माटी मानुष’’ और ‘’परिवर्तन’’ का नारा देकर सत्ता में आई थीं, किन्तु वाम दलों के प्रति ममता के दिल से नफरत कभी मिटी नहीं. यही हाल वाम दलों का भी रहा और इसी का फायदा उठाकर आरएसएस के मार्गदर्शन में बीजेपी ने वहां अपनी जमीन मजबूत की. इस दौरान वहां राजनैतिक हिंसा का दौर कभी थमा ही नहीं.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक जो राजनैतिक संघर्ष वामपंथी दलों और टीएमसी में चल रहा था, वह टीएमसी बनाम बीजेपी में शिफ्ट हो गया हालांकि इस दौरान कई वाम कार्यकर्ताओं की भी हत्या हुई.

ममता का डर

ममता बनर्जी को इस वक्त सबसे अधिक डर अपनी ही पार्टी के लोगों को लेकर है. बीजेपी ने पैसे और पद नाम पर तृणमूल में जो सेंधमारी शुरू की थी उसमें उसे भारी सफलता मिली है और बीते एक साल में सैकड़ों टीएमसी कार्यकर्ता और कई दर्जन नेता और पार्षद ममता का आंचल छोड़ बीजेपी की भगवा पताका थाम चुके हैं.

ताज़ा घटनाक्रम में कल ही 11 विधायक सहित एक सांसद और एक पूर्व सांसद अमित शाह की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हो गये. न केवल तृणमूल से बल्कि कांग्रेस और वाम दलों से भी बीजेपी में भर्ती अभियान निरंतर जारी है.

ममता दीदी सत्ता में हैं और बंगाल के बाहर उनकी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है, यही उनके डर का मुख्य कारण भी है.

वाम ने किया बीजेपी का रास्ता आसान

पिछले चुनाव में वाम मतदाताओं ने ममता को हराने के लिए बीजेपी को वोट दिया था, यह बात खुद सीताराम येचुरी स्वीकार कर चुके हैं. वहीं ग्रामीण और जिला स्तर पर भी कई वाम कैडरों और नेताओं ने बीजेपी के साथ गठजोड़ कर लिया था. इस बार भी सीपीएम ने घोषणा की है कि बंगाल में वह कांग्रेस का साथ मिलकर टीएमसी और बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेगी.

बीजेपी की ताकत है धन. हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कोलकाता में नौ कार्यालयों का उद्घाटन किया और कोलकाता में एक भव्य ऑफिस निर्माण का भी ऐलान किया है. भव्यता हमेशा आकर्षित करती है और पैसा सब कुछ खरीद सकता है.


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