आज योग दिवस के मौके पर सोशल साइट्स पर योग क्रियाओं में लिप्त तस्वीरों को देखकर व जेल में योग दिवस मनाए जाने वाली खबरें अखबारों में पढ़कर मुझे बरबस जेल का योग दिवस याद आ गया।
पिछले साल 2019 में आज के दिन मैं बिहार के शेरघाटी उपकारा में बतौर विचाराधीन कैदी बंद था। एक दिन पहले ही जेल में साफ-सफाई अभियान शुरु हो चुका था, जिसे देखकर मुझे अंदाजा हो गया था कि यह सब योग दिवस की ही तैयारी है। साथी बंदियों से इस साफ-सफाई के बारे में पूछने पर बोला कि हो सकता है कल कोई बड़ा जेल अधिकारी आये, क्योंकि वहाँ बंदी जानते थे कि किसी बड़े जेल अधिकारी के आने के कारण ही जेल में साफ-सफाई होती है। खैर, मुझे जेल गये अभी 13 दिन ही हुए थे, इसलिए मैं चुप ही रहा। वैसे मुझे पक्का विश्वास हो गया था कि कल योग दिवस पर कोई कार्यक्रम होगा और हो सकता है उसमें जेल का कोई बड़ा अधिकारी भी शिरकत करे।
21 जून को जेल की दिनचर्या नियत समय पर प्रारंभ हुई। लगभग 5:40 बजे सुबह में सभी वार्ड का ताला खुला और लोग पाखाना रूम की ओर दौड़ पड़े, कुछ अंदर घुस चुके थे, तो कई बंदी पाखाना करने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। तभी जेल का बड़ा जमादार आया और मेरे ‘सोन खंड’ के सभी ‘राइटर’ को बोला कि सभी वार्ड से एक-एक बंदा चाहिए, जो कि फील्ड की सफाई कर सके और सभी बंदी को 8 बजे मैदान में हाजिर होना है, क्योंकि आज ‘योग दिवस’ है और सभी को योग करना है।
दरअसल शेरघाटी उपकारा में पुरुषों के लिए चार खंड (सोन खंड, फल्गू खंड, गंडक खंड और कृष्णा खंड) है, जिसमें से कृष्णा खंड जुवेनाइल (नाबालिग) बंदियों के लिए है, जो बंद ही रहता है। बांकी बचे तीन खंड में 4-4 वार्ड है। महिलाओं के लिए एक खंड सरस्वती खंड है। सभी खंड के बगल में एक पाखानाघर है, जिसमें दो पंक्तियों में आमने-सामने 8 पाखाना करने की सीट लगी हुई है, जिसमें दो फीट ऊंचा गेट भी है लेकिन खड़ा होने पर सामने वाले में पाखाना कर रहे व्यक्ति को नंग-धड़ंग साफ देखा जा सकता है। इस 8 पाखाना सीट में से हरेक खंड में 2-3 जाम ही रहता है, जबकि हरेक खंड में कम से कम 70-80 बंदी हर समय होते हैं।
खैर, सोन खंड के वार्ड नंबर-2 में मेरा बसेरा था और एक नंबर वार्ड के खुलने के बाद मेरा वार्ड खुलता था, तो मैं जब पाखाना घर के पास पहुंचता था, तो मुझे एक न एक पाखाना सीट खाली मिल ही जाता था और खाली नहीं रहने पर खाली होते ही उसमें जाने के लिए सभी बंदी पहले मुझे ही ऑफर करते थे। इस कारण जब जमादार ने ‘योग दिवस’ में शामिल होने का आदेश दिया, तो मैं पाखाना कर रहा था।
जमादार के हुक्म के अनुसार सभी ‘राइटर’ ने अपने-अपने वार्ड से सबसे दबे-कुचले व्यक्ति को मैदान की सफाई के लिए भेज दिया। मैं भी मैदान में ही रही सफाई देखने के लिए पहुंचा, तो वहाँ पहले से मौजूद जेलर सुशील गुप्ता से मुलाकात हो गई। जेलर ने मुझे देखते हुए कहा कि ‘तब पत्रकार साहब, योग करनी है ना?’ मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि दो दिन से मेरे गर्दन में जकड़न है, इसलिए मैं योग नहीं करूंगा। जेलर ने कहा कि योग से आपके गर्दन की जकड़न भी खत्म हो जाएगी। फिर भी मैंने उनको मना करके अपने वार्ड की ओर चल पड़ा। रास्ते में मेरे ही वार्ड में रहनेवाले एक मुस्लिम बंदी मिल गये, वे आरएसएस व बाबा रामदेव को गरियाने लगे और योग को मुस्लिम धर्म के खिलाफ बताया। उनसे बात करते-करते अपने वार्ड के पास आ गया, तभी मुझे जमादार सबको योग में शामिल होने के लिए हड़काते हुए मिल गये। मैंने उन्हें साफ-साफ कह दिया कि योग इस्लाम धर्म के खिलाफ है, इसलिए कोई मुसलमान जबरदस्ती योग दिवस में शामिल नहीं होगा। जमादार भी ‘योग को इस्लाम धर्म के खिलाफ’ होने की बात सुनकर अचंभित हुआ और उसने कहा कि जिसको शामिल होना हो, जिसको शामिल होना न हो, तो कोई जबरदस्ती नहीं है।
मुझे तो सच में दो दिन से गर्दन में जकड़न थी और जेलर की कही यह बात कि योग से जकड़न ठीक हो जाएगी, मेरे मन में घूम रही थी। फिर भी मैंने योग दिवस में शामिल नहीं होने के अपने निर्णय पर कायम रहा, तभी वही मुस्लिम बंदी मेरे पास आया और योग दिवस में चलने की जिद करने लगा। मैंने उनकी कही बात ‘योग इस्लाम के खिलाफ’ ही उन्हें याद दिलायी, तो उसने कहा कि जब ऐसा लगेगा, तो वैसे शब्द का उच्चारण नहीं करेंगे। मैंने भी ‘गर्दन की जकड़न’ ठीक होने के लोभ से योग में शामिल होने की हामी भर दी।
जब मैं योग के लिए चयनित मैदान में पहुंचा, जो मेरे वार्ड के ठीक सामने ही था, तो वहाँ पर माईक व स्पीकर लग चुका था, योग शिक्षक पतंजलि योग पीठ के कार्यकर्त्ता डॉक्टर बृजेश गुप्ता अपने एक चेले के साथ पहुंच चुके थे। मुझे देखकर सबसे अधिक खुश जेलर ही हुआ और उसने हम लोगों को सबसे अगली सीट ऑफर किया। थोड़ी ही देर में पूरा मैदान बंदियों से भर गया और योग शिक्षक के कहे अनुसार सभी ने उसका अनुसरण करने शुरु कर दिया, लेकिन जब वे ‘ओम’ का उच्चारण करते थे, तो मुस्लिम बंदी चुप्पी साध लेते थे। खैर, एक घंटे तक योग शिक्षक का ‘शो’ चलता रहा और बंदी योग करने की जगह पर दर्शक ही ज्यादातर बने रहे। महिला बंदी को इस योग कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया था।
जेल के किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में यह मेरे पहला दिन था और जेलर जो एक रिटायर्ड आर्मी का हवलदार था, उसके मुंह से निकल रहे ‘अमृत वचन’ को भी पहली बार सुनने को मिल रहा था। इस कार्यक्रम में महिला बंदी तो नहीं थी, लेकिन महिला जेल सिपाही जरूर कार्यक्रम के वक्त ड्यूटी पर तैनात थी। जेलर के मुंह से ‘अमृत वचन’ बार-बार ‘माँ-बहन की गालियों व अश्लीलता की हद तक निकले शब्दों’ के रूप में निकल रहा था।
खैर, जेल में ‘योग दिवस’ सरकारी डायरी में सफल हो चुका था और इस ‘महती’ कार्यक्रम के लिए सरकारी खजाने में चपत लग चुकी थी। अब सभी लोग जाने की तैयारी में थे और मेरे मन भन्नाया हुआ था, तभी एक जेल सिपाही ने मुझे चुपके से बोला कि ‘पत्रकार साहब, आप तो एक रूपया भी घूस देने के खिलाफ में हैं, लेकिन आपकी पत्नी से मुलाकाती के दौरान एक सिपाही ने 500 रूपये लिए थे।’ यह सुनते ही मेरा पारा गरम हो गया और वहाँ मौजूद जेल के बड़ा बाबू को एक तरफ बुलाकर मैंने सारी बात बतायी।
दरअसल, कुछ दिन पहले मेरी जीवनसाथी ईप्सा और परिजन मुझसे मिलने आए थे और उस दिन इन लोगों को आने में कुछ देर हो गया था क्योंकि ये लोग झारखंड से जाते थे, जो कि लगभग 200-250 किलोमीटर पड़ता था। मुलाकाती का समय समाप्त हो चुका था और बाद में मुलाकाती कराने के एवज में जेल पुलिस ने 500 रूपये की डिमांड कर दी। वैसे जेल का यह नियम था कि दूसरे राज्य से आने वाले लोगों को बाद में भी मुलाकात कराया जाएगा, लेकिन मेरे परिजन इससे अवगत नहीं थे।
बड़ा बाबू ने मुझे इस पूरी बात को जेलर को बताने बोला, मैंने कहा कि ऑफिस में आकर बता दूंगा, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि अभी ही बोल दीजिए। फिर क्या था, मैंने सबके सामने ही पूरी बातें जेलर को बता दिया, जेलर ने कहा कि मैं पता करके आपको बताऊंगा, लेकिन इस मामले में आपके परिवार के लोग भी दोषी हैं कि उन्होंने घूस क्यों दिया!
जेलर को इस तरह से सबके सामने भ्रष्टाचार के बारे में बताने के कारण जमादार तिलमिला उठा और बोलने लगा कि उस दिन क्यों नहीं बताये? आप मेरे जवान की बेइज्जती कर रहे हैं। जमादार के पक्ष में कुछ जेल दलाल बंदी भी हो लिए।
जेल में मेरा 13 दिन हो चुका था और जेल के तमाम भ्रष्टाचार के बारे में मुझे सारा कुछ पता भी चल चुका था। जमादार के तिलमिलाते ही मैं और भी जोर-जोर से चिल्लाकर जेल के तमाम भ्रष्टाचार के बारे में बोलने लगा। जब सभी बंदियों ने देखा कि मैं तो सबकुछ सही-सही बोल रहा हूँ, फिर कई बंदी मेरे पक्ष में होकर जमादार और उसके दलाल बंदी के खिलाफ में एकजुट हो गये। तब जमादार ने अपने दलाल बंदियों को वहाँ से भगा दिया और मुझे बोला कि जेलर साहब बोले हैं ना कि पता करके आपको बताऊंगा, तो कुछ दिन इंतजार कर लीजिए। जमादार को समर्पण करने के बाद हम सभी बंदी वहाँ से हट गये।
तो जेल में ऐसा बीता था मेरा ‘योग दिवस।’ योग दिवस के दिन जेल में सिर्फ औपचारिकता ही निभाई जाती है, लेकिन इसके लिए एक बड़ा बजट पास होता है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और UAPA के आरोप में छह महीने जेल में बिता चुके हैं
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