साम्राज्यवादी वैश्वीकरण के दौर में भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता

अर्जुन प्रसाद सिंह ‘अंग्रेजों की जड़े हिल चुकी हैं। वे 15 सालों में चले जायेंगे, समझौता हो जायेगा, पर इससे जनता को कोई लाभ नहीं होगा। काफी साल अफरा-तफरी में …

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क्‍या बनारस से काशीनाथ सिंह की उम्‍मीदवारी वास्‍तविकता बन सकती है?

काशीनाथ सिंह  मैं पूरी गंभीरता से एक सवाल या कहें खुला प्रस्‍ताव आप सब के सामने रख रहा हूं: ”क्‍या लेखक काशीनाथ सिंह को बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ …

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गांधीवाद को भ्रम की टोपी पहना रहे आनंदमार्गी प्रोफेसर!

अभिषेक रंजन सिंह  जनता को सब्ज़बाग़ दिखाने में माहिर आम आदमी पार्टी अब गांधीवादियों को भी बरग़लाने लगी है. हाथ में तिरंगा, सिर पर गांधी टोपी और मुंह से राजनीतिक …

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नांदेड़ से लौटती पंजाबी लड़की के लिए

ये 18 अप्रैल सन 2013 की तपती दोपहर है और मैं नांदेड़ से चली उस ट्रेन के स्‍लीपर डिब्‍बे में बैठा हूं जिसकी पहली से लेकर आखिरी बोगी तक चौड़े …

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लोकतांत्रिक व्‍यभिचार का राष्‍ट्रीय प्रहसन

अभिषेक श्रीवास्‍तव  इतिहास गवाह है कि प्रतीकों को भुनाने के मामले में फासिस्‍टों का कोई तोड़ नहीं। वे तारीखें ज़रूर याद रखते हैं। खासकर वे तारीखें, जो उनके अतीत की …

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