लेखक क्‍या हत्‍यारों के साझीदार हुए?

2013 में हिंदी साहित्‍य का लेखा-जोखा  रंजीत वर्मा  जब 2013 शुरू हुआ था तब दामिनी बलात्कार कांड को लेकर पूरा देश आंदोलनरत था और जब यह खत्म हुआ, तो खुर्शीद …

Read More

संदेह के महान क्षण में

‘लोकप्रिय’ आंदोलन और मार्क्‍स का आवाहन अभिषेक श्रीवास्‍तव  लोकप्रियता का मोह इतना तगड़ा होता है कि कल तक इंडिया अगेंस्‍ट करप्‍शन नाम का एक ”लोकप्रिय आंदोलन” आज राजनीतिक पार्टी बनने …

Read More

आप वामपंथी हैं, तो समलैंगिक तो होंगे ही…!

व्‍यालोक  व्‍यालोक जेएनयू से पढ़े हैं, मीडिया व एनजीओ में दर्जन भर नौकरियां कर के आजकल घर पर स्‍वाध्‍याय कर रहे हैं। लंबे समय बाद लिखे इस लेख में धारा …

Read More

377 के दुश्मन कौन हैं?

धारा 377  पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर जो चीख-पुकार मच रही है, वह इस लिहाज़ से अविवेकपूर्ण, षडयंत्रकारी और एक हद तक सनक भरी है क्‍योंकि अव्‍वल तो …

Read More

नेपाली क्रान्ति: विजय उन्माद से पराजय के कोहराम तक

नरेश ज्ञवाली नरेश ज्ञवाली पत्रकार हैं और नेपाली राजनीति पर लगातार लिखते रहे हैं। नेपाल में संविधान सभा के चुनाव संपन्‍न होने के बाद की स्थिति पर लिखा उनका यह …

Read More

जनसंघर्ष का नया अध्‍याय है प्रचण्‍ड लाइन की पराजय

विष्‍णु शर्मा  नेपाल संविधान सभा चुनाव 2013 के अब तक आए परिणामों से यह बात तय है कि पिछली संविधान सभा की सबसे बड़ी पार्टी एकिकृत कम्युनिस्‍ट पार्टी (माओवादी) को …

Read More

नेपाल चुनाव: इस बार कत्‍ल हुआ और खून भी नहीं बहा

आनन्द स्वरूप वर्मा / नरेश ज्ञवाली काठमांडो, 21 नवम्बर नेपाल में, जहां राजतन्त्र का विस्थापन कर गणतन्त्र स्थापित हुए महज 5 वर्ष हुए हैं, दो बार संविधान सभा का चुनाव संपन्न हो …

Read More

लोकसभा 2014: विक्षिप्‍तताओं का प्रत्‍याशी

अभिषेक श्रीवास्‍तव कौन है ये शख्‍स? पुराने दिनों की मशहूर फिल्‍म ”सिलसिला” में एक गीत है जिसके बोल कुछ यूं थे, कि तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो …

Read More