टिटिहरी बोध

चीज़ें फिसल रही हैं खुली मुट्ठियों से…   जाने क्‍यों लगता है अब तक नहीं हुआ जो, वो बस हो जाएगा अभी-अभी।   एक डर तो है ही,   बल्कि पहले से कहीं …

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